बिहार के बाहुबली आनंद मोहन के जेल से बाहर आने पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Aanand Mohan: एक वक्त था जब बिहार और उत्तर प्रदेश माफिया राज में नंबर 1 पर आता था। आज जहां उत्तर प्रदेश के हालात में कुछ सुधार हुआ है और माफियाओं में पुलिस का खौफ पैदा हुआ है, वहीं बिहार में माफियाराज खत्म होना तो दूर की बात है एक बार फिर से शुरू होता है नजर आ रहा है। ये हम क्यूं कह रहे हैं, क्योंकि 27 अप्रैल की सुबह तड़के 4.30 बजे पूर्व सांसद और बिहार के बाहुबली आनंद मोहन(Aanand Mohan) की जेल से रिहाई ने बिहार की सियासत में एक भूचाल ला दिया है। हद तब हो गई, जब आनंद मोहन की रिहाई के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेल कानून में ही संशोधन कर दिया। एक ऐसा बाहुबली जो 14 साल जेल की सजा काटने के बाद कानून में संशोधन के ज़रीए रिहा हुआ। अब इस मामले में एक नया मोड़ सामने आया है, दरअसल, बाहुबली कि रिहाई के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में DM जी कृष्णैया की पत्नी उमा की अर्जी के बाद, 8 मई को सुनवाई होगी। इन सबके के साथ, लोगो के मन में एक सवाल आता है कि आखिरी आनंद मोहन सिंह है कौन? तो आपको हम बताते हैं आनंद मोहन सिंह का पूरा चिट्ठा। लेकिन सबसे पहले हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें।

बिहार के जेल कानून में संशोधन के बाद, बिहार के बाहुबली आनंद मोहन के जेल से रिहाई के बाद, बिहार की सियासत में गर्मा- गर्मी तेज़ हो गई थी। बहुत से civil servants के साथ-साथ, बहुत से राजनेताओं ने भी इसके खिलाफ आवाज़ उठाई थी। अब, DM जी कृष्णैया की पत्नी उमा ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट 8 मई को इस केस की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।

कौन है बिहार के आनंद मोहन सिंह? 

आनंद मोहन सिंह का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। सिंह के दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक आनंद मोहन का सियासी सफर 17 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने 1974 में जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा और इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल तक जेल में रहना पड़ा। 1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की। इसे आनंद मोहन की प्राइवेट आर्मी कहा जाता था। इसके बाद आनंद मोहन का नाम अपराधियों की list में शुमार होता गया।

आनंद मोहन की 1990 में हुई राजनीति में एंट्री

आनंद मोहन की कहानी basically उस समय शुरू होती है, जब बिहार में जात की लड़ाई अपने चरम पर थी। आए दिन राज्य में जाति के नाम पर हत्याएं हो रही थीं, और इसी दौर दौर में बाहुबली राजनेता आनंद मोहन का नाम खूब चर्चा में था। 90 का दशक था जब आनंद मोहन को जनता दल ने माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, और उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थान की और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया। 1994 में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता। 1995 आते-आते आनंद मोहन का नाम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा और नतीजन वह लालू यादव का मुख्य विरोधी चेहरा माने जाने लगे। सन 1995 में आनंद मोहन की पार्टी ने बिहार में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया, लेकिन, खुद आनंद मोहन को हार का सामना करना पड़ा। 1996 में आनंद मोहन ने शिवहर लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और समता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की। गौरतलब है कि आनंद का रसूख इतना था कि उस समय जेल में रहते हुए भी उन्होंने जीत हासिल की थी। फिर 1999 में आनंद मोहन ने एक बार फिर जीत हासिल की। यूं तो आनंद मोहन पर हत्या, लूट और अपहरण जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे, लेकिन आनंद मोहन का सूर्य तब अस्त होना शुरू हुआ, जब उनका नाम गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णनैया की हत्या में शामिल हुआ।

सन 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी के नेता ओर गैंगस्टर छोटन शुक्ला को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। जिसके बाद उसकी शवयात्रा में हजारों लोग इकट्ठा हुए, और इसी भीड़ का नेतृत्व खुद आनंद मोहन कर रहे थे। भीड़ को संभालने की जिम्मेदारी तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या की थी। इसी दौरान दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और डीएम को उनकी सरकारी कार से बाहर खींच लिया गया और पीटने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई। आपको बता दें कि 1985 बैच के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। भीड़ को कथित रूप से भड़काने का आरोप आनंद मोहन पर लगा, और ये मामला अदालत में पहुंचा, जिसके बाद आनंद को निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी। आजाद भारत के वह ऐसे पहले नेता थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, एक साल बाद 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। तब से लेकर अब तक आनंद मोहन जेल की सलाखों के पीछे थे, लेकिन जेल नियम में बदलाव होने का बाद 24 अप्रैल को आनंद मोहन जेल से रिहा हो गए। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, बिहार सरकार ने उनकी रिहाई का आदेश जारी किया और इसके साथ 27 अन्य कैदियों को छोड़ने के प्रस्ताव पर सहमति बनी।

आनंद मोहन की रिहाई पर किसने क्या कहा? 

आनंद मोहन की रिहाई के बाद से जी कृष्णैया के परिवार समेत बहुत से सिविल सर्वेंटस और विपक्ष के नेता लगातार नीतीश सरकार के इस फैसले पर विरोध जता रहे हैं। आनंद मोहन की रिहाई को जी कृष्णैया की बेटी ने दुखद बताया, उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अन्याय है। वहीं जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने कहा था, ”जनता आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करेगी, उसे वापस जेल भेजने की मांग करेगी। आनंद मोहन को रिहा करना गलत फैसला है। सीएम नीतीश को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अगर वह (आनंद मोहन) चुनाव लड़ेंगे तो जनता को उनका बहिष्कार करना चाहिए। मैं उन्हें (आनंद मोहन) वापस जेल भेजने की अपील करती हूं।”

AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी 

AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर कहा कि ये दूसरी बार कृष्णैया की हत्या है। कहा कि 5 दिसंबर 1994 को एक दलित आईएएस की हत्या की गई, जब वह महज 37 साल का था. उन्होंने कहा कि आखिर अब कौन सा आईएएस अधिकारी बिहार में जान जोखिम में डालेगा. कृष्णैया ने मजदूरी कर पढ़ाई की थी. उन्होंने कहा कि वह कृष्णैया के परिवार के साथ हैं और ये भी उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर इस मामले को लेकर सोचा जाएगा।

IAS एसोसिएशन ने जताई निराशा 

भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) एसोसिएशन ने आनंद मोहन की रिहाई पर बिहार सरकार की निंदा करते हुए कहा कि ये फैसला सही नहीं है। आईएएस एसोसिएशन ने ट्वीट किया कि आनंद मोहन को रिहा किए जाने का फैसला बहुत ही निराश करने वाला है. उन्होंने (आनंद मोहन) जी. कृष्णैया की नृशंस हत्या की थी. ऐसे में यह दुखद है. बिहार सरकार जल्दी से जल्दी फैसला वापस ले. ऐसा नहीं होता तो ये न्याय से वंचित करने के समान है।

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