इंसान की शक्ल में फरिस्ते कैसे उतर आते हैं, यह पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में देखने को मिला है। यहां पांच नौजवानों ने कैंसर से जूझ रही एक 14 साल की बच्ची की जान बचाई है। ट्रीटमेंट के लिए उसे खून की तत्काल जरूरत थी। इनमें से एक लड़के को इसका पता चला। फिर सभी खून देने के लिए अस्पताल पहुंच गए।
नई दिल्ली । इंसानियत से बड़ा भला कौन सा धर्म हो सकता है। पांच मुस्लिम नौजवानों ने वही धर्म निभाया है। उन्होंने कैंसर से जूझ रही एक 14 साल की लड़की की जान बचाई है। इस बच्ची को तुरंत खून की जरूरत थी। इन नौजवानों ने ब्लड डोनेट करने के लिए अपना रोजा तोड़ दिया। लड़कों का मानना है कि ऊपर वाले ने भी शायद इस नेक काम के लिए उन्हें चुना था। बच्ची की जान बचाकर उन्हें जो सुकून मिला है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। रमजान के मुबारक समय में जरूरतमंद बच्ची को समय से खून देकर इन लड़कों ने इंसानियत की सच्ची मिसाल पेश की है। खास बात है कि ये परिवार को जानते तक नहीं थे। बच्ची के लिए ये फरिस्ते बनकर आ गए।
क्या था पूरा मामला?
मामला उत्तराखंड का है। देहरादून के बाहरी इलाके डोईवाला का है। एक प्राइवेट अस्पताल में अंकिता को भर्ती कराया गया था। उसे पांच यूनिट खून की तुरंत जरूरत थी। अंकिता को ब्लड कैंसर है। अंकिता के पिता ब्यासमुनि एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। मूल रूप से वह बिहार के हैं। पिछले 10 साल से परिवार हरिद्वार में रह रहा है। अंकिता ने हाल ही में 8वीं की परीक्षा पास की है। करीब एक हफ्ते पहले परिवार को अंकिता के ब्लड कैंसर होने का पता चला। यह उनके लिए किसी झटके से कम नहीं था। अंकिता के ट्रीटमेंट में ब्लड ट्रांसफ्यूजन अहम हिस्सा है। उसकी जिंदगी के लिए और ऐसे ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ेगी।
अंकिता के पिता बताते हैं कि उनके लिए ये लड़के बिल्कुल अजनबी थे। समय पर बेटी को खून देने के लिए वह उनक शुक्रगुजार हैं। ये तब पहुंचे जब उन्होंने सारी उम्मीद छोड़ दी थी। ब्यासमुनि इन्हें फरिस्तों से कम नहीं बताते हैं।
कौन हैं ये लड़के, कैसे पहुंचे अस्पताल?
कैंसर पीड़ित बच्ची को खून देने वाले इन लड़कों में शाहरूख मलिक, जिशान अली, आसिफ अली, सावेज अली और साहिल अली शामिल थे। इनकी उम्र 24 से 26 साल के बीच है। शाहरुख बताते हैं कि उन्हें लगता है कि ऊपर वाले ने उनका रोजा स्वीकार कर लिया है। उन्होंने बच्ची की जान बचाने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें खुशी है कि खुदा ने इसके लिए उन्हें चुना।
नौजवानों ने बताया कि बच्ची की जरूरत देखते हुए उन्होंने रोजा तोड़ने का फैसला किया। रमजान में सूरज ढलने से पहले कुछ खाने-पीने की इजाजत नहीं होती है। न ही इंजेक्शन लिया जा सकता है। शाहरुख डोईवाला में अपने पिता की डेरी दुकान चलाने में मदद करता है। जिशान, आसिफ और सावेज प्लंबर का काम करते हैं। साहिल परिवार के फर्निचर पॉलिशिंग के कारोबार में हाथ बंटाता है। शाहरुख को खून की जरूरत के बारे में सोशल मीडिया के जरिये पता चला था। उसने तुरंत अपने कुछ और दोस्तों को इसके लिए तैयार किया। मैसेज मिलते ही वे अस्पताल खून देने के लिए पहुंच गए।