जीरो ले बाबू हुए, काटे मेरिट घास ।
डिग्री पैसों में बिके, ज्ञान हुआ बकवास ।।
बदले सुर में गा रहे, अब शादी के ढोल ।
दूल्हा कितने में बिका, पूछ रहे हैं मोल ।।
बँटवारे को देखकर, बापू बैठा मौन ।
दौलत सारी बांट दी, रखे उसे अब कौन ।।
नए दौर में देखिये, नयी चली ये छाप ।
बेटा करता फैसले, चुप बैठा है बाप ।।
पानी सबका मर गया, रही शर्म ना साथ ।
बहू राज हर घर करे, सास मले बस हाथ ।।
कुत्ते बिस्कुट खा रहे, बिल्ली सोती पास ।
मात-पिता दोनों कहीं, करें आश्रम वास ।।
चढ़े उम्र की सीढियाँ, हारे बूढ़े पाँव ।
अंत बुढ़ापे में कहीं, ठौर मिली ना छाँव ।।
कैसा युग है आ खड़ा, हुए देख हैरान ।
बेटा माँ की लाश को, रहा नहीं पहचान ।।
रिश्तों नातों का भला, रहा कहाँ अब ख्याल ।
मात-पिता को भी दिया, बँटवारे में डाल ।।
अपराधी अब छूटते, तोड़े सभी विधान ।
निर्दोषी हैं जेल में, वाह। जी, संविधान ।।
थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार ।
तब ‘सौरभ’ नारी दिवस, लगता है बेकार ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )