Abortion Law : Supreme Court ने अविवाहित महिला को 24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात करने की अनुमति दी।
क्या गर्भपात के लिए महिलाओं का विवाहित होना जरूरी है? जब संविधान आपसी सहमति से सम्बन्ध बनाने का अधिकार देता है, तो गर्भपात कराने का अधिकार क्यों नहीं? हाल ही में दिल्ली High Court ने एक अविवाहित महिला के गर्भपात की याचिका को खारिज कर दिया था। इस फैसले को बदलते हुए Supreme Court ने अविवाहित महिला को 24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात करने की अनुमति देने का फैसला लिया।
क्या था ये पूरा मामला।
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दिल्ली हाई कोर्ट 16 जुलाई 2022 को एक अविवाहित महिला के गर्भपात कराने की याचिका ये कहते हुए खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता अविवाहित है और वह सहमति से गर्भवती हुई है। गर्भ 23 सप्ताह का है और ये Medical Termination of Pregnancy Rules, 2003 के तहत किसी भी प्रावधान में नहीं आता।
लेकिन Supreme Court ने बीते दिनों महिलाओं के हित में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया। दिल्ली High Court के इस फैसले को पलटते हुए Supreme Court ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों का दायरा अविवाहित महिलाओं तक बढ़ाते हुए, अविवाहित महिला को 24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात करने की इजाज़त दे दी है। और साथ ही एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया है, जो ये देखेगा कि गर्भपात से महिला के जान को कोई खतरा तो नहीं है। जानकारी के मुताबिक, इस मामले की याचिकाकर्ता एक लिव-इन रिलेशनशिप में थी और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई थी।
Supreme Court ने इस फैसले पर क्या कहा?
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ अपने इस फैसले पर कहा कि इस कानून की व्याख्या केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रह सकती क्योंकि ऐसा करने से अविवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव होगा। एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात कराने की इजाज़त न देना उसकी निजी अधिकार और आज़ादी का उल्लंघन होगा।
Supreme Court ने कहा कि एमटीपी एक्ट में संशोधन के ज़रिए मंशा अविवाहित महिलाओं को भी इसके दायरे में लाने की रही होगी, इसलिए संशोधित कानून में ‘पति’ की जगह ‘पार्टनर’ शब्द जोड़ा गया है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला को इस कानून के तहत मिलने वाले लाभ से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वो शादीशुदा नहीं है। बच्चे को जन्म देने या न देने की मर्ज़ी महिला को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजी स्वतंत्रता के अधिकार का भी अभिन्न हिस्सा है। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर महिला को गर्भपात की मंज़ूरी नहीं दी गई तो ये क़ानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा।
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मान लीजिए कि अपनी Pregnancy के चौथे महीने में कुछ ऐसी स्थिति आ जाए,जिसके चलते आपको गर्भपात कराना पड़ जाए,तो क्या कानून आपको इसकी अनुमति देता है? क्या इसके लिए कोई कानून है?
जी हाँ! गर्भपात के लिए भी एक कानून बनाया गया है।
क्या है गर्भपात कानून?
1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट बनाया गया। इसमें 2021 में संशोधन किया गया और गर्भपात करवाने की मान्य अवधि को कुछ विशेष परिस्थितियों के लिए 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया। पुराने एक्ट में ये प्रावधान था कि अगर किसी महिला को 12 हफ़्ते का गर्भ है तो वो एक डॉक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है। वहीं 12-20 हफ़्ते में गर्भपात करवाने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह अनिवार्य थी।
लेकिन संशोधित कानून में 12-20 हफ़्ते में गर्भपात कराने के लिए एक डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी बताया गया है। इसके अलावा अगर भ्रूण 20-24 हफ़्ते का है, तो इसमें कुछ श्रेणी की महिलाओं को दो डॉक्टरों की सलाह लेने के बाद ही इजाजत दी जाएगी।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट ने गर्भपात करवाने के अधिकारों को तीन भाग में बांटा है।
पहले चरण में प्रेगनेंसी के पहले हफ्ते से 20 हफ्ते के दौरान अगर गर्भवती मानसिक रूप से माँ बनने को तैयार ना हो या फिर गर्भनिरोधक लेने के बाद भी वो काम नहीं करता, तो गर्भपात कराया जा सकता है।
दूसरे चरण में प्रेगनेंसी के 20 से 24 हफ्ते के दौरान अगर माँ और बच्चे की Health पर किसी कारण से कोई बुरा असर पड़ रहा हो तो ही गर्भपात करवाया जा सकता है।
तीसरा चरण यानी 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने के लिए कुछ खास वजह में ही अनुमति मिल सकती है।
अगर गर्भवती किसी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हो, या किसी अपने के साथ भी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हो या फिर गर्भवती का Marital Status बदल जाए, या गर्भवती Physically disabled हो या बच्चे के Health के बारे में कुछ ऐसा पता चल जाए जिससे बच्चे को पैदा होने के बाद Survival में दिक्कत हो, या अगर गर्भवती नाबालिग या मानसिक रूप से बीमार हो और Guardian हो, इन सारे Cases में Court से गर्भपात की अनुमति मिल सकती है।
महिला का “अविवाहित” होना ही बन गया था इस मामले अहम मुद्दा। आइए जानते है अविवाहित महिलाओं के पास गर्भपात के कौन से अधिकार है?
2021 में संशोधित एमटीपी क़ानून कहीं भी केवल ‘पत्नी’ को गर्भपात का हक़ नहीं देता है। इस एक्ट में ‘गर्भवती महिला’ शब्द इस्तेमाल किया गया है जिससे साफ है कि महिला के सोशल स्टेटस से कोई फर्क नहीं पड़ता। संशोधित अधिनियम के सेक्शन 3 के एक्सप्लेनेशन वन में ‘पार्टनर’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इसका यही अर्थ है कि पार्टनर में लिव-इन रिश्तों को भी शामिल किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी का हवाला देकर महिला को गर्भपात की मंजूरी दी।