राजेश बैरागी
जीवन बेहद सस्ता हो चला है। विशेषतः गरीब श्रमिकों के जीवन को अ-मूल्य समझने वाले व्यापारी और पुलिस हिंदुस्तान के इस कोने से उस कोने तक एकमत हैं। बिहार के मोतीहारी से हरियाणा के अंबाला जा रही एक बस पलटने से चालीस लोग घायल हो गए। यह बस एक निजी ट्रांसपोर्टर द्वारा संचालित थी जिसमें मात्र एक सौ पचहत्तर श्रमिकों को ठूंसकर (बैठाकर या खड़े ही करके इतने लोगों को एक बस में ले जाना संभव ही नहीं है) ले जाया जा रहा था। हालांकि यह डबल डेकर बस थी।शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) के पुवायां थाना क्षेत्र में बस पलटी तो अफरातफरी मच गई। चालीस घायलों में तीन चार मजदूरों की हालत गंभीर बताई गई है। मोतीहारी से यह दुर्घटना स्थल छः सौ पैंतालीस किलोमीटर दूर है। क्या इस बीच देश का कोई पुलिस थाना या जिला प्रशासन का अधिकार क्षेत्र नहीं आया होगा? पिछले दिनों नोएडा से श्रमिकों को ठूंसकर बिहार ले जाने वाले निजी बस संचालकों की काफी चर्चा रही थी।उस समय संबंधित थाना पुलिस, पीसीआर पुलिस कर्मी नोएडा के सेक्टर -9 से संचालित हो रही इन बसों पर केवल वसूली करने आते थे। क्या अब यह धंधा बंद है?मोतीहारी से अंबाला जाते दुर्घटनाग्रस्त हुई यह बस वैध-अवैध अनुमति के साथ गरीब श्रमिकों की जान के साथ हो रहे खुल्ले खेल का ताजा उदाहरण है। किसी प्रकार दो जून की रोटी के लिए रोजगार स्थल तक पहुंचने की जद्दोजहद बस की क्षमता और किराए की परवाह नहीं करती। यात्रियों की संख्या बस की क्षमता पर नहीं बल्कि संचालक की इच्छा पर निर्भर करती है। श्रमिक मौज में नहीं मजबूरी में खतरनाक स्टंट करते हुए सफर पूरा करते हैं। सरकारी इंतजाम ना काफी हैं,आवागमन के साधन उपलब्ध कराने में भी और इस प्रकार जानवरों की भांति मनुष्यों को लादकर ले जाने से रोकने में भी। ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता है कि हमने (सरकार ने) श्रमिकों से मरने के लिए थोड़े ही कहा था। हां एक बात तो रह ही गई।बस चालक ने दुर्घटना से कुछ देर पहले एक ढाबे पर शराब भी पी थी।(साभार: नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)