‘कमरिया’ और ‘घोसी’ की लड़ाई में कहीं करहल में फंस तो नहीं गए हैं अखिलेश यादव?

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अखिलेश यादव
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द न्यूज 15
करहल । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे सियासी पारा भी चढ़ रहा है। तीसरे चरण में जिन  विधानसभा सीटों पर चुनाव है, उनमें किसी सीट पर सबकी निगाह टिकी हुई है तो वह करहल विधानसभा सीट। यहां से इस बार समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, सियासी दंगल में उनके मुकाबले भाजपा ने केन्द्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा है। आइए समझते हैं कि क्या है करहल का सियासी माहौल।
जाति की लड़ाई गोत्र पर आई : यूं तो उत्तर प्रदेश की राजनीति का जब भी जिक्र होता है। तब जाति का जिक्र होता ही है। सभी पार्टियां जातियों को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों की घोषणा भी करती हैं। लेकिन करहल की लड़ाई एक कदम और आगे बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही है। करहल में एक चाय की दुकान पर मिला एक नौजवान नाम ना छापने की शर्त पर कहता है,’भईया, हम घोसी यादव हैं, और अखिलेश जी कमरिया यादव हैं। बूथ अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक हर जगह कमरिया गोत्र वाले ही हैं। हमें कोई पूछता ही नहीं।’
जब-जब गोत्र में बंटे यादव, तब-तब सपा हुई है परेशान : यूं तो मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद को सपा का गढ़ माना जाता है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के उभार के बाद इन इलाकों के लोगों ने सपा को जमकर वोट किया है। लेकिन इतिहास यह भी रहा है कि जब-जब इन इलाकों में गोत्र के हिसाब से मतदान हुआ तब-तब सपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। चाहें वो राज बब्बर के सामने डिंपल यादव का चुनाव हारना हो या शिवपाल के बेटे अंकुर को जिला पंचायत चुनाव में मिली हार हो। चुनावी डगर में सपा को कई बार मुश्किलों को सामना करना पड़ा है। खुद मुलायम सिंह यादव को 2007 के विधानसभा चुनाव में भरथना सीट पर नजदीकी  मुकाबले में जीत मिली थी। यहां तक की जब मुलायम सिंह यादव 2009 में सांसद बने तब सपा को बसपा ने भरथना में हरा दिया था।
तो क्या करहल में फंस गये हैं अखिलेश : सवाल उठता है कि अगर गोत्र के हिसाब से मतदान हुआ तब क्या अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ जाएंगी? माना जाता है कि करहल विधानसभा सीट पर यादव मतदाता करीब 1.30 लाख हैं। जिसमें से करीब 40 हजार मतदाता ‘घोसी’ गोत्र के हैं। इसके अलावा कई अन्य जतियां हैं जोकि संख्या में तो कम हैं लेकिन नजदीकी मुकाबले में काफी महत्वपूर्ण हो जाएंगी। यही वजह है कि क्या भाजपा और क्या सपा कोई हलकी सी भी लापरवाही के मूड में नहीं दिखाई दे रही हैं।
गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक हर कोई करहल के दंगल में : भाजपा अखिलेश यादव को घेरने के लिए प्रत्याशी से लेकर प्रचार तक कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा की तरफ से जहां गृहमंत्री अमित शाह खुद एसपी सिंह बघेल के लिए वोट मांग चुके हैं। तो वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार के अंतिम दिन करहल में उतरे। बड़े नेताओं के अलावा एसपी सिंह बघेल खुद गांव-गांव जाकर वोट मांग रहे हैं। मुलायम के गढ़ के सवाल के जवाब में एसपी सिंह बघेल कहते हैं, ‘देखिए लोकतंत्र में किसी का कोई गढ़ नहीं होता है। 2019 के चुनाव में हमने राहुल गांधी को हराया था।’ चुनाव प्रचार के दौरान उनपर हुए कथित हमले का जिक्र करना भी वो नहीं भूलते हैं। और समाजवादी पार्टी के शासन को याद दिलाकर भाजपा को वोट करने की अपील कर रहे हैं।
पूरा यादव परिवार करहल में मांग रहा है वोट : अखिलेश यादव ने जब ऐलान किया था कि वो करहल से चुनाल लड़ेंगे तब उन्होंने कहा था कि वो सिर्फ नामांकन करने आएंगे इसके बाद वो 10 मार्च को करहल में उतरेंगे। लेकिन भाजपा ने जिस प्रकार से करहल में चुनाव प्रचार कर रही है। उसके बाद सपा भी अपनी रणनीति बदलने को मजबूर हुई। अखिलेश यादव नामांकन के बाद भी करहल में चुनाव प्रचार करते हुए दिखाई दिए। वहीं, चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों मुलायम सिंह यादव भी अखिलेश के लिए वोट मांगे करहल पहुंचे। करहल के बरनाहल में बदन सिंह कहते हैं, ‘इस बार अखिलेश यादव के प्रो साहब (राम गोपाल यादव) भी वोट मांग रहे हैं।’ बड़े नेताओं के अलावा यादव परिवार के कई अन्य सदस्य भी करहल में जमे हुए हैं।
‘आगाज ऐसा है तो अंजाम क्या होगा’ : करहल में प्रचार के दौरान अमित शाह अपने भाषण में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की इस मेहनत पर तंज कसते हुए कहते हैं ‘कड़ी धूप में इतनी आयु हो गई है तब भी नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को चुनावी मैदान में उताराना पड़ा है…आगाज ऐसा है तो अंजाम क्या होगा’ हालांकि अखिलेश की चुनावी राह को आसान बनाने के लिए कांग्रेस ने करहल में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। लेकिन क्या इससे अखिलेश यादव की साइकल की रफ्तार बढ़ेगी या नहीं यह सवाल बरकरार है।

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