भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा 

0
65
Spread the love

ऋषि आनंद 

जनता दल (स) सांसद प्रजावल रेवन्ना द्वारा महिलाओं के यौन शोषण और बलात्कार के जघन्य मामले ने भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की भयानक वास्तविकता को एक बार फिर सामने ला दिया है। पिछले वर्ष, मणिपुर की एक घटना, जहां दो महिलाओं पर एक हिंसक भीड़ द्वारा हमला किया गया और उन्हें निर्वस्त्र घुमाया गया था, ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस बीच, सत्ता पक्ष ने, हाथरस, उन्नाव, कठुआ, बिलकिस बानो, अंकिता भंडारी से लेकर महिला पहलवानों तक, हर मामले में बलात्कारियों और अपराधियों को संरक्षण दिया है। भाजपा की ट्रोल सेना के कारण महिलाओं को सोशल मीडिया पर लगातार अपशब्द और धमकियों का सामना करना पड़ता है। आरएसएस/भाजपा की पितृसत्तात्मक विचारधारा ने संकट को और गहरा कर दिया है। “बेटी बचाओ” का नारा मजाक बनकर रह गया है। इस बीच, राष्ट्रीय महिला आयोग ने महिलाओं के साथ खड़े होने या शिकायतों पर कार्रवाई करने से भी मुंह मोड़ लिया है।

भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के 99% मामले दर्ज नहीं होते। जो मामले दर्ज होते हैं और अंततः सुनवाई तक पहुंचते हैं, उनमें 30% से कम मामलों में सजा होती है। हाशिए पर रहने वाले वर्गों की महिलाएं विशेष रूप से हिंसा से प्रभावित और न्याय से वंचित होती हैं। भारत की 30% महिलाओं ने घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके अलावा अधिकांश मामले दर्ज ही नहीं किए जाते हैं। वैवाहिक हिंसा की शिकार लगभग 90% महिलाएँ मदद भी नहीं मांगतीं। सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से इनकार कर दिया यह दावा करते हुए कि इसका वैवाहिक संस्था पर प्रभाव पड़ेगा।

लैंगिक असमानता बढ़ रही है। दक्षिणपंथी विचारधारा द्वारा नारीवाद पर लगातार हमला किया जा रहा है। महिलाओं के प्रति द्वेष, नफरत, और हिंसा व्यापक हुई है।

प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति हैं। वह साझी दुनिया की संस्थापक हैं और पांच दशक से सामाजिक कार्यकर्ता रहीं हैं। वह सिद्दीकी कप्पन के लिए जमानतदार बनीं और बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई के खिलाफ भी लड़ीं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here