नई दिल्ली | दिल्ली विश्वविद्यालय ने विरोध के बावजूद सहायक प्रोफेसर्स की नियुक्ति के लिए नई प्रक्रिया अपनाने का निर्णय लिया है। बहुमत के आधार पर यह निर्णय शुक्रवार शाम दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल में लिया गया। एग्जीक्यूटिव काउंसिल में चुने हुए सभी 6 सदस्यों ने इस प्रावधान का विरोध किया लेकिन बहुमत के आधार पर नए नियम को स्वीकार कर लिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अशोक अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने से सहायक प्रोफेसर के साक्षात्कार के लिए उम्मीदवारों की संख्या पर स्क्रीनिंग और कैपिंग के संबंध में एड आइटम 5.1 पर असहमति जताई।
दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय में 5 दिसंबर 2019 को चर्चा के बाद तय किया गया था कि सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के दौरान 5 सभी सेवारत तदर्थ शिक्षकों को साक्षात्कार के लिए उपस्थित होने की अनुमति होगी। यह स्क्रीनिंग मानदंड के माध्यम से एडहाक शिक्षकों का बहिष्करण करने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के मुताबिक एग्जीक्यूटिव काउंसिल में रखा गया कार्यसूची मद 5.1 उन शिक्षकों को नियुक्ति से बाहर करने का एक तरीका है जो साक्षात्कार से पहले से काम कर रहे हैं। साथ ही इससे चयन समिति के हाथों में 100 फीसदी वेटेज आ जाएगा। शिक्षकों को यह तथ्य अस्वीकार्य हैं।
सहायक प्रोफेसर्स की नियुक्ति को लेकर डीयू के नए वीसी को शिक्षक संगठनों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। शुक्रवार को शिक्षक संगठन डूटा ने दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दिवसीय हड़ताल की। डूटा ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी है कि नियुक्ति प्रक्रिया में 4 हजार तदर्थ शिक्षकों की अनदेखी न की जाए।
दिल्ली विश्वविद्यालय में शुक्रवार 29 अक्टूबर को विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक हुई। इस बैठक के लिए तय किए गए कुछ एजेंडा प्रावधानों को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ यानी डूटा ने आपत्ति दर्ज कराई थी। हालांकि इस आपत्ति के बावजूद सहायक शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित एजेंडे का प्रावधान 5.1 स्वीकार कर लिया गया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा कि इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ आर्ट को दिल्ली सरकार द्वारा संचालित अंबेडकर यूनिवर्सिटी के साथ मिलाने का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया गया।
दरअसल दिल्ली सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ आर्ट को अंबेडकर विश्वविद्यालय के साथ मिलाने की सिफारिश विश्वविद्यालय के समक्ष रखी थी। इसके लिए 6 सदस्य एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था।
इस कमेटी में अपनी सिफारिशों में दिल्ली सरकार द्वारा दिए गए विलय के प्रस्ताव को खारिज करने की सिफारिश की है। समिति का कहना है कि कॉलेज ऑफ आर्ट दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ ही बना रहना चाहिए। यहां कॉलेज ऑफ आर्ट में इस वर्ष अभी तक दाखिले भी शुरू नहीं किए जा सके हैं। समिति का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय को पहल करते हुए न केवल कॉलेज ऑफ आर्ट को अपने साथ बनाए रखना चाहिए बल्कि अपने स्तर पर यहां दाखिले शुरू करने चाहिए।
इस बीच दिल्ली विश्वविद्यालय ने शुक्रवार शाम नॉन कॉलेजिएट वूमेन एजुकेशन बोर्ड यानी एनसी वेब की पहली कट ऑफ लिस्ट जारी की है। इस कट ऑफ लिस्ट के आधार पर 1 नवंबर से दाखिला प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।