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साल 1975-1977 भारतीय लोकतंत्र के 2 काले साल !

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25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र पर एक अँधेरी भरी सुबह लेकर के आया था , लगातार दो साल तक ये अँधेरा छाया रहा इन सालो को भारतीय इतिहास में काले दिनों के रूप में याद रखा जाता हैं , उन दिनों कुछ ऐसे हवा चलती थी की लोग घुट-घुट कर सांस लेते थे !

25 जून 1975 भारतीय आपातकाल…

यू तो भारत में आज तक 3 बार आपातकाल लग चुकी हैं पर सबसे भयानक रही 1975 की आपातकाल स्तिथि ये सभी लोगो का दम घोटने वाली थी,पहली आपातकाल 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान लगी ,दूसरी 1971 भारत-पाकिस्तान के वक़्त पर सबसे भयानक और दर्ददायक रही साल 1975 में लगी इमरजेंसी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने लगाई थी,मामला शुरू होता हैं 1971 लोकसभा चुनाव से जब इंदिरा गाँधी पर आरोप लगता की वो चुनाव में धांधली कर के जीती हैं, उन्होंने तय सीमा से ज़्यादा पैसा खर्च किये और जनता को गलत तरह से बेहला कर अपनी और किया ,उनके खिलाफ मामल दर्ज कराने वाले थे राजनारयण जो की 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गाँधी के खिलाफ रायबरेली से लड़ रहे थे,

उनका कहना था की मैं धांधली के चलते हार गया,बात समय के साथ बीत गयी और कोर्ट केस चलता रहा फिर आया साल 1975 जब अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 को फैसला सुनते हुए कहा की अदालत इंदिरा गाँधी को दोषी मानती हैं,और उन्हें लोक सभा सीट से हटने का आदेश देती हैं ,और 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने का आदेश भी पारित करती है ,इस मामले को लेकर इंदिरा गाँधी सुप्रीम कोर्ट पहुंची सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को वैसे ही रहने दिया पर कोर्ट उन्हें अगली सुनवाई तक प्रधानमंत्री बने रहने की रियायत दी,

Emergency 1975
Emergency 1975

उसी दौरान इंदिरा गाँधी ने करीबी सलाहकरो और तत्कालीन पश्चिमी बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रॉय ने इंदिरा गाँधी की इस मामले में कानूनी मदद करी, उनके अन्य सलहकारो ने इंदिरा को बताया की वे धरा 352 के तहत भारत देश मे आंतरिक बाग़ीपन या अस्थिरता को लेकर वह इमरजेंसी का कदम उठा सकती हैं , उन्होंने तुरत कागज़ात बनवा कर राष्ट्रपति भवन पहुँचाये तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति फकरूदीन अली अहमद ने तुरंत इंदिरा के कागज़ को देखते ही इमरजेंसी पर अपने दस्तखत कर दिए और सुबह तड़के ही इंदिरा गाँधी ने आल इंडिया रेडियो से आपातकाल की घोषणा कर दी,यह आपातकाल का समय 2 साल तक चला,

आपातकाल के कुछ अन्य कारण..

उन दिनों इंदिरा गांधी को अमेरिकन इंटेलिजेंस एजेंसी CIA से भी खतरा था. इंदिरा को पता था कि वे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की Hate List में हैं. इंदिरा को ये डर सता रहा था कि उन्हें चिली के साल्वाडोर अलेंडे की तरह सत्ता से बेदखल कर दिया जाएगा. 1973 में CIA ने जनरल ऑगस्तो पिनोशेट की मदद से साल्वाडोर अलेंडे को सत्ता से उखाड़ फेंका था, इंदिरा व्यक्तिगत रूप से डर रहीं थीं, वही साथ ही गुजरात मे 1974 की शुरुआत में नेता चीमन भाई पटेल के घोटाला सामने आने के बाद गुजरात की जनता में आक्रोश आ गया था वो सड़को पर उतर कर कांग्रेस के खिलाफ नारे लगा कर राजयसभा को भंग करने की मांग कर रहे थी , इंदिरा गाँधी को दवाब में आकर गुजरात राज्यसभा को भंग कर दिया,

Jayaprakash Narayan (Emergency 1975)

दूसरी तरफ जयप्रकाश नारायण ने बिहार में भी कांग्रेस के खिलाफ एक शांति आंदोलन जारी किया, जिसमे विद्यार्थीयो ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया,इंदिरा ने इन्ही बातो का हवाला दे कर राष्ट्रपति फकरूदीन अली अहमद को आपातकाल लगाने की बात कही,इंदिरा का कहना था “जब एक बच्चा पैदा होता है तो ये देखने के लिए कि बच्चा ठीक हैं या नहीं, हम उसे हिलाते हैं, भारत को भी इसी तरह हिलाने की जरूरत है”, इंदिरा को लगता था कि अगर वे सत्ता छोड़ती हैं तो भारत बर्बाद हो जाएगा,उन्होंने इन्ही बातो को आपना हथियार बना कर देश पर आपातकाल लगाया,

काले दिनों की शुरुआत..

25 जून 1975 से आपातकाल शुरू होते ही लोगो से जीने का हक्क छीना जाने लगा सभी विपक्षी नेताओ को बिना किसी कारण शक के बिनाह पर गिरफ्तार कर जेलो में डाल दिया गया, जैसे मोरारजी देसाई,अटल विहारी बाजपाई ,लाल किशन अडवाणी,और जय प्रकाश सहित चरण सिंह जैसे नेताओ की सूची बना कर के जेलो में डाला गया ,सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 100,000 लोगो को जबरन जेल में डाला गया था,सभी चुनावो को स्थगित कर दिया गया, और सभी लोगो से उनके मौलिक अधिकार छीन लिए गए, सरकार अपनी मर्जी से कानून बनाती और लागू करती , इंदिरा गाँधी ने ऐसे-ऐसे कानून बनाये जिससे उन्हें ही फायदा हो, उस समय की इंदिरा की आपातकाल में सरकार ने अदालतों पर भी शिकंजा कसना चाहा बाद में संजय गाँधी और SS RAY के कहने पर उन्होंने इसे टाल दिया था !

नसबंदी (Emergency 1975)

सबसे भयानक थी मर्दो की नसबंदी, ये नशबंदी बहुत ही गलत और बिलकुल असुरक्षित तरीको से हुई थी, साथ ही सरकार नशबंदी का सटिफिक्ट उन मर्दो को देती थी जिन्होंने ये नशबंदी कराई होती थी, कई जगह तो सरकार जबरदस्ती भी ये काम करती थी ,

साथ ही RSS और जमात-ए-इस्लाम जैसे धार्मिक संगठनो पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया साथ ही बहुत से साम्यवादी नेताओ को भी जेल में डाल दिया गया था,साथ ही कांग्रेस ने खुद अपने कई नेता जो उनका सपोर्ट नहीं कर रहे थे उन्हें भी पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया और कई लोगो को जेल भी हुई,उन दिनों लोगो में घर से बाहार निकलने में भी डर लगता था , शाम होने के बाद लोग अपने घरो से बहार भी नहीं जाते थे, सबसे ज़्यादा केहर बरपा लोकतंत्र के चौथा सतम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता पर उन दिनों पत्रकारों पर सरकार ने बहुत कड़ी सेंसरशीप लगा राखी थी केवल सरकार जो चाहेगी वो ही छपेगा , जिस दिन आपातकाल की घोषणा होनी थी उसी रात दिल्ली के अखबारों के प्रिट्रिंग प्रेस की लाइने काट दी गईं थी . अगले दिन सुबह में सिर्फ स्टेट्समैन और हिंदुस्तान टाइम्स अखबार ही बाजारों में मिल रहे थे क्योंकि इन अखबारों के प्रिंटिंग प्रेस में बिजली नई दिल्ली से आती थी, दिल्ली नगर निगम से नहीं,

आपातकाल का आखिर समय..

साल आया 1977 अब आपातकाल को सरकार हटाने का पूरा प्लान तैयार कर चुकी थी , फिर आयी 12 मार्च 1977 जब आखिरकार सरकार ने आपातकाल को वापस लिया, और इंदिरा गाँधी ने लोकसभा चुनाव का आवाहन किया, चुनाव 16 मार्च से 20 मार्च तक हुए, इंदिरा गाँधी हार गयी, और आज़ाद भारत में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी का राज आया, वो पार्टी थी मोरारजी देसाई जी की जनता दाल,

मोरारजी देसाई (Emergency 1975)

जो आने वाले पुरे पांच साल तक सत्ता में रही,फिर 1980 में दोबारा इंदिरा गाँधी की सरकार सत्ता में आयी इस बार वो अपने नयी आर्थिक निति के दम पर सत्ता में आई थी ! इंदिरा गाँधी ने आपातकाल ख़तम होने के बाद दिए एक इंटरव्यू में कहा था, की “भारत को एक शॉक थेरेपी की जरुरत थी” , हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी भारतीय जनता से माफ़ी मांगते हुए कहा था की हम उस समय लोगो के जीवन की रक्षा नहीं कर सके,राहुल गाँधी ने भी लंदन मे दिए एक इंटरव्यू में उनकी दादी द्वारा लगायी आपातकाल को गलत बताया था !