देश की राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद को दरकिनार कर नये चेहरों को आगे लाना ही होगा

चरण सिंह 

कुछ भी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति से अलग हटकी एक लाख युवा राजनीति में लेने की बात है वह देश की राजनीति को नई दिशा वाली है। यह नैतिक साहस स्थापित दल तो नहीं जुटा पाएंगे। नये संगठनों को इसका बीड़ा उठाना पड़ेगा। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि जो लोग देश और समाज की चिंता करने वाले हैं उनको यह समझ लेना चाहिए कि जब तक देश की राजनीति गिने-चुने परिवारों के कब्जे में रहेगी तब तक देश में कोई बदलाव नहीं होने वाला है।
सत्ता बदल जाएगी पर बदलाव नहीं होगा। देश की राजनीति में वंशवाद, परिवारवाद और पूंजीवाद को धता बताते हुए नये चेहरे उभरकर सामने नहीं आएंगे और सत्ता में नये चेहरे काबिज नहीं होंगे तब तक देश की राजनीति बस आरोप प्रत्यारोप तक सिमट रह जाएगी। इससे देश को कुछ खास फायदा नहीं होने वाला है। देश में जब विभिन्न कालेजों में छात्र संगठन होते थे तो देश को युवा नेता मिलते थे। अब तक अधिकतर प्रदेश में छात्र संघ चुनाव ही खत्म कर दिये गये हैं। राजनीतिक दलों में परिवारवाद और वंशवाद हावी है, नेता गुलाम प्रवृत्ति के कार्यकर्ताओं को ही पसंद करते हैं। आगे बढ़ने के लिए आज के नेता मेहनत नहीं बल्कि शार्टकट अपना रहे हैं। अनैतिक कार्यांे में लिप्त रहकर आगे बढ़ना चाहते हैं। क्षेत्रीय दलों में संगठन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया जाता है। जहां किसी कार्यकर्ता ने नेतृत्व पर उंगली उठाई तत्काल रूप से उसे पार्टी से बाहर कर दिया जाता है। कार्यकर्ताओं पर फैसले थोपे जाते हैं। ऐसे में बड़ा प्रश्न यह उठता है कि देश को जुझारू नेतृत्व देश को कैसे मिलेगा ?
दरअसल देश की राजनीति में कुछ परिवारों का कब्जा है। कांग्रेस में पंडित जवाहर नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव, ङिंपल यादव, शिवपाल यादव, धर्मेंद्र यादव, अक्षय यादव और आदित्य यादव मतलब एक ही परिवार के नेताओं का बोलबाला है। ऐसे ही बसपा में मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है। एनडीए में शामिल आरएलडी में चौधरी चरण सिंह और उनके बेटे अजित सिंह के बाद उनके जयंत चौधरी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार के बाद उनकी बेर्टी सुप्रिया सुले ने पार्टी की बागडोर संभाल रखी है। ऐसे ही बिहार में आरजेडी में लालू प्रसाद के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव, लोजपा में रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान पार्टी को संभाल रहे हैं। हरियाणा में भी चौधरी देवीलाल के बाद ओमप्रकाश चौटाला उनके बाद अजय चौटाला और अभय चौटाला और उनके बेटे राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। इनेलो और जेजेपी दोनों ही पार्टी पर देवीलाल के परिवार का कब्जा है।
शिवसेना को भले ही एकनाथ शिंदे ने कब्जा लिया हो पर बाल ठाकरे के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और उनके बाद उनके बेटे आदित्य ठाकरे उनकी पार्टी को संभालेंगे। झारखंड में शिबूू सोरेन के बाद उनके बेटे हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की बागडोर संभाल रहे हैं। ऐसे ही तमिलनाडु में करुणानिधि के बाद उनके बेटे एम.के. स्टालिन डीएमके को संभाल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के बाद टीएमसी पर उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी का राज होगा। जम्मू कश्मीर में भी यही हाल है। शेख अब्दुल्ला के बाद फारुक अब्दुल्ला और अब अमर अब्दुल्ला, दूसरी ओर मुफ्ती मोहम्मद सईद के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती पीडीपी की मुखिया हैं। बीजेपी कितनी भी परिवारवाद और वंशवाद से मुक्त रहने की बात करती रही पर उनकी पार्टी भी परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति से बची नहीं है। अनुराग ठाकुर, पंकज सिंह, दुष्यंत सिंह जैसे कितने नेता हैं जो वंशवाद और परिवारवाद की देन हैं।
कुल मिलाकर देश की राजनीति पर कुछ परिवारों तक सीमित होकर रह गई है। देश की राजनीति में यदि नये चेहरे नहीं आएंगे तो जनता के पास विकल्प नहीं होगा। ऐसे में देश के घिसे-पिटे चेहरे ही राज करते रहंेगे। जनता को आजमाए लोगों पर विश्वास करना पड़ेगा। देश का विकास कहीं न कहीं प्रभावित होगा।

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