
राजकुमार जैन
जब से समाजवादी पार्टी के संसद सदस्य, रामजीलाल सुमन ने पार्लियामेंट में राणा सांगा बनाम बाबर पर ब्यान दिया है सोशल मीडिया में दो जातियोंç राजपूतों और यादवों के कुछ संगठनों ने इसे जातीय जंग की शक्ल बना दी है। उसकी जितनी निंदा की जाए कम है।
अफसोस की बात तो यह है कि इसमें समाजवादी पार्टी को भी एक पक्ष दिखाया जा रहा है। यह स्पष्ट करना बेहद जरूरी है कि समाजवादी पार्टी आचार्य नरेंद्र, युसूफ मेहर अली, जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया को हालांकि अपना आदर्श मानती है, लेकिन वह समाजवादी आंदोलन की एकमात्र पार्टी नहीं है। इस समय समाजवादी विचारधारा को अपना आदर्श मानने वाली अनेक पार्टियां जैसे राष्ट्रीय जनता दल, तथा छोटी-छोटी पार्टीयां, सोशलिस्ट, ग्रुप, संगठन, व्यक्तियों का समूह कार्यरत है।
समाजवादी आंदोलन में राजपूतों, यादवों तथा अन्य जातियों धर्मों के अनेकों नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपना जीवन खपाया है। सोशलिस्ट तहरीक किसी जाति और धर्म से बंधी हुई नहीं है। इसकी बुनियाद ही जातिवाद और मजहबी जहनियत के खिलाफ लड़ने के लिए बनी है। अखिलेश यादव की ‘समाजवादी पार्टी’ की नींव उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने रखीं थी। मुलायम सिंह के सियासी गुरु कमांडर अर्जुन सिंह भदोरिया खुद राजपूत जाति के थे।
चाहे राजपूत सेना हो या यादवी, या किसी और जात की सेना, जाति की सर्वोच्चता, मर्दानी गुरुर, संख्या बल, दौलत की धमक, या जिस्मानी अहंकार, की बिना पर दूसरी जाति या मजहब वालों को डराने, धमकाने,कमतर, दोयम दर्जे का सिद्ध करने की मानसिकता का समर्थन नहीं किया जा सकता। असली लड़ाई विचारधारा की है, जिसमें एक तरफ अंबानी, अड़ानी जैसे मालदारों की जमात है, और दूसरी और गुरबत में रहने वाले करोड़ों करोड़ों हिंदुस्तानी जो भुखमरी, बेकारी, महंगाई, अशिक्षा, बीमारी के चंगुल में छटपटाते हुए, किसी तरह अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। हिंदुस्तानीयों को मजहब और जाति के नाम पर बरगलाने और लड़वाने वाले मुल्क और कौम दोनों के दुश्मन है।