जनता ने लड़ा यह चुनाव, विपक्ष तो आपस में ही उलझता रहा

चरण सिंह
एग्जिट पोल में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद इंडिया गठबंधन के नेता इसे फर्जी बता रहे हैं। मोदी सरकार की कमियों को गिनाते हुए इंडिया गठबंधन अपनी सरकार मानकर चल रहा है। एग्जिट पोल देखर इंडिया गठबंधन के सरकार की कमियां तो ढूंढ रहा है पर अपनी गलतियों पर निगाह डालने को तैयार नहीं। इसमें दो राय नहीं कि देश लगभग सभी एजेंसियों पर सरकार का नियंत्रण है पर विपक्ष ने सरकार के इस रवैये के विरोध में कोई बड़ा आंदोलन किया ? जब मुख्य चुनाव आयोग को चुनने में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हटा दिया गया तो विपक्ष की समझ में नहीं आया कि जब सरकार ही मुख्य चुनाव आयुक्त बनाएगी तो फिर चुनाव आयुक्त किसके के लिए काम करेगा ? अब जब प्रधानमंत्री गृहमंत्री और लोकसभा में विपक्ष का नेता मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बनाता है ? जब चुनाव आयुक्त को मोदी और अमित शाह ने बनाया है तो वह इन दोनों नेताओं के दबाव में तो काम करेगा ही।
या चुनाव शुरू होने से पहले सभी लोग एकतरफा चुनाव मानकर नहीं चल रहे थे ? क्या विपक्ष ने एकजुटता दिखाने के मामले में लगातार गलतियां नहीं की ? क्या जन समस्याओं को लेकर आंदोलन करने में विपक्ष विफल नहीं रहा ? क्या विपक्ष जनता को विश्वास में ले पाया ? क्या नीतीश कुमार को एनडीए में जाने के लिए कांग्रेस और लालू प्रसाद ने विवश नहीं किया? क्या लोकसभा चुनाव से पहले चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों को दरकिनार कर गलती नहीं की? क्या इंडिया गठबंधन को लेकर ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे कांग्रेस पर दबाव बनाते नहीं देखे गये ? क्या चुनाव के शुरुआती चरण में विपक्ष एकजुट हो पाया ? क्या टिकट बंटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन लगातार गलती नहीं करता रहा ? क्या राहुल गांधी के अलावा कोई नेता जनता के लिए संघर्ष करता नजर आया ? इन सभी प्रश्नों का जवाब क्या इंडिया गठबंधन के नेताओं के पास है ? कहना गलत न होगा कि यह चुनाव मजबूरी का गठबंधन है। परिणाम आने के पहले ही कांग्रेस को लेकर अरविंद केजरीवाल कहने लगे कि कांग्रेस से कोई लव मैरिज या अरेंज मैरिज तो नहीं की है। मतलब गठबंधन कभी भी टूट सकता है। वैसे भी पंजाब में कांग्रेस और आप अलग अलग ही तो लड़े हैं। पश्चिमी बंगाल में टीएमसी ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी। सरकार बनने पर भी बाहर से समर्थन देने की बात ममता बनर्जी करने लगीं।
यह चुनाव विपक्ष की ओर से इंडिया गठबंधन ने नहीं बल्कि जनता ने लड़ा है। इंडिया गठबंधन के नेता तो बस मोदी सरकार से जनता की नाराजगी को भुनाने में लगे रहे। विपक्ष की हालत यह है कि मोदी के दस साल के कार्यकाल में जनहित को लेकर एक भी बड़ा आंदोलन भी न कर सका। इतना ही नहीं सरकार से टकराते हुए जितने सोशल एक्टिविस्ट जेल में पड़े हैं, उनके बचाव में किसी पार्टी के नेता ने ईमानदारी से प्रयास नहीं किया। विपक्ष के नेता मोदी सरकार पर फर्जी मुकदमे में फंसा कर जेल में डालने का आरोप लगा रहे हैं। यह कोई बताने के लिए तैयार नहीं कि आंदोलन के नाम कितने नेता जेल में बंद हैं ? चाहे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हों, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों, उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया हों, स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन हों। ये सभी से सभी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं। इन लोगों से कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली है। ऐसे में एक बड़ा प्रश्न उठता है कि यदि मोदी सरकार फर्जी मुकदमों में विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर रही है तो फिर सभी दल एकजुट होकर सरकार के खिलाफ संघर्ष क्यों नहीं करते ?
यदि ऐसा अंदेशा है कि मोदी सरकार फर्जी मुकदमे में जेल भेज सकती है तो फिर ऐसा आंदोलन करो कि सरकार को आंदोलन के नाम पर जेल भेजना पड़े। बन रहेंगे ट्वीट वीर और उम्मीद करेंगे बदलाव की । आंदोलन करते हुए जेल जाएंगे तो जनता की सहानुभूति मिलेगी। भ्रष्टाचार के मामले में जेल में जाएंगे तो जनता की ओर से आलोचना और नफरत ही मिलेगी। दरअसल कांग्रेस राज में क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सरकार बनती थी। कांग्रेस केंद्र सरकार चलाने के चलते क्षेत्रीय दलों के भ्रष्टाचार पर आंख मूंद लेती थी और क्षेत्रीय दलों का भ्रष्टाचार के मामले में मन बढ़ जाता था। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष की इस कमजोरी को बखूबी पहचाना है। विपक्ष है कि यदि राजनीति बचाते हैं तो संपत्ति जा रही है और संपत्ति बचाते हैं तो राजनीति जा रहा है। अब देखना यह होगा कि मतगणना में क्या होता ? किसकी सरकार बनती है और कौन प्रधानमंत्री बनेगा ?

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