नई दिल्ली। इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने का भी एक समय होता है। किसी पोस्ट का देश और समाज पर गलत असर नहीं पड़ना चाहिए। समाज का सद्भाव नहीं बिगड़ना चाहिए। प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की पोस्ट पर भी इसी तरह विवाद है। कुछ लोग उनकी पोस्ट को गलत ठहरा रहे हैं तो कुछ गलत। उन पर एफआईआर दर्ज होकर उनकी गिरफ्तारी भी हुई और जमानत भी मिल गई। मामला अमेरिका तक पहुंच गया। वहां के मीडिया ने केंद्र सरकार पर लोगों की आवाज दबाने का आरोप लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी जमानत देते वक्त कई टिप्पणी की हैं। कुछ यूटूबर प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के पक्ष में बोलते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन बोल दिया और बीजेपी ने उन्हें न तो पद से हटाया और न ही उनकी विधायकी छीनी और न ही पार्टी निकाला। आखिर अली खान महमूदाबाद ने ऐसा क्या कह दिया कि उनकी गिरफ्तारी हो गई ?
दरअसल अली खान महमूदाबाद ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारतीय सेना की महिला अधिकारियों, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह, द्वारा दी गई प्रेस ब्रीफिंग पर टिप्पणी की थी। हरियाणा महिला आयोग और कुछ शिकायतकर्ताओं ने उनकी टिप्पणी को आपत्तिजनक, सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने वाला, और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाला माना।
प्रोफेसर अली खान की पोस्ट का सार
प्रोफेसर अली खान ने 8 मई को एक सोशल मीडिया पोस्ट (फेसबुक/एक्स) में लिखा था। उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रशंसा की और कहा कि यह देखकर खुशी हो रही है कि दक्षिणपंथी टिप्पणीकार उनकी तारीफ कर रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा कि यदि यह प्रशंसा केवल प्रचार या दिखावा (पाखंड) है और इसका असर जमीनी हकीकत में नहीं दिखता, तो यह बेमानी है। उन्होंने मॉब लिंचिंग, मनमाने बुलडोजर कार्रवाइयों, और बीजेपी की कथित नफरत फैलाने वाली राजनीति के शिकार लोगों के लिए भी समान सुरक्षा की मांग की। पोस्ट में भारत की विविधता की तारीफ की गई थी, और इसे “जय हिंद” के साथ समाप्त किया गया था।
क्या माना गया गलत?
हरियाणा महिला आयोग और शिकायतकर्ताओं (जैसे बीजेपी युवा मोर्चा के नेता योगेश जठेरी) ने निम्नलिखित कारणों से उनकी पोस्ट को आपत्तिजनक माना:
सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने का आरोप: आयोग ने दावा किया कि प्रोफेसर ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को “पाखंड” और “दिखावा” कहकर भारतीय सेना की कार्रवाई को कमतर करने और बदनाम करने की कोशिश की।
महिला सैन्य अधिकारियों का अपमान: पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रेस ब्रीफिंग को “दिखावा” कहना, आयोग के अनुसार, महिला अधिकारियों के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला था।
सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान: कुछ शिकायतकर्ताओं ने माना कि उनकी पोस्ट में हिंदुत्व समर्थकों और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव पैदा करने की कोशिश की गई, खासकर जब उन्होंने कर्नल कुरैशी की धार्मिक पहचान को उजागर किया।
दरअसल राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता: हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने यह भी आरोप लगाया कि प्रोफेसर के पूर्वजों का पाकिस्तान की एक राजनीतिक पार्टी से संबंध था, जिसे लेकर खुफिया एजेंसियों को जांच करनी चाहिए।
प्रोफेसर अली खान का पक्ष
प्रोफेसर ने अपनी सफाई में कहा कि उनकी टिप्पणी को गलत समझा गया और इसका गलत अर्थ निकाला गया। उनके मुख्य तर्क: उनकी पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रशंसा की गई थी, न कि उनका अपमान। उन्होंने भारत की विविधता को दर्शाने के लिए उनकी प्रेस ब्रीफिंग को महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने यह इंगित करने की कोशिश की थी कि दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग, जो कर्नल कुरैशी की तारीफ कर रहे हैं, उन्हें सामाजिक न्याय के मुद्दों (जैसे मॉब लिंचिंग और बुलडोजर कार्रवाइयों) पर भी उतनी ही मुखरता से आवाज उठानी चाहिए।
उनकी टिप्पणी का उद्देश्य सैन्य अभियानों को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर उग्र राष्ट्रवाद और असंवेदनशील भाषा के खतरों को उजागर करना था।
उन्होंने कहा कि हरियाणा महिला आयोग ने उनके पोस्ट को संदर्भ से हटकर गलत तरीके से प्रस्तुत किया और उनके पास इस मामले में अधिकार क्षेत्र नहीं है।
कानूनी कार्रवाई और प्रतिक्रिया
गिरफ्तारी और जमानत: प्रोफेसर को 18 मई 2025 को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। दो दिन की पुलिस रिमांड के बाद, 20 मई को सोनीपत कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। हालांकि, 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी, साथ ही एक तीन सदस्यीय विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी शर्त रखी कि वे ऑपरेशन सिंदूर या पहलगाम हमले पर कोई सोशल मीडिया पोस्ट नहीं करेंगे।
विपक्ष और समर्थकों की प्रतिक्रिया: कई विपक्षी नेता (जैसे असदुद्दीन ओवैसी, पी. चिदंबरम, और सुभाषिणी अली) और शिक्षाविदों ने उनकी गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। एक्स पर कई यूजर्स ने दावा किया कि उनकी पोस्ट में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था और यह मुसलमानों की आवाज दबाने की साजिश है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को नसीहत दी कि उन्हें सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए और तटस्थ भाषा का उपयोग करना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ शब्दों के दोहरे अर्थ हो सकते हैं, जो लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।
क्या वास्तव में गलत था?
प्रोफेसर की पोस्ट का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रशंसा की थी, लेकिन “पाखंड” और “दिखावा” जैसे शब्दों का उपयोग संवेदनशील सैन्य अभियान के संदर्भ में विवादास्पद माना गया। उनकी टिप्पणी में सामाजिक मुद्दों (मॉब लिंचिंग, बुलडोजर कार्रवाइयों) को उठाना और धार्मिक पहचान को उजागर करना कुछ लोगों को सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला लगा। हालांकि, कई लोगों का मानना है कि उनकी टिप्पणी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में थी और इसे गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया गया।