लखीमपुर खीरी में जून के महीने में हुआ था सोनम हत्याकांड, बढ़ गई थी यूपी की सियासत 

इस मामले में हत्या को आत्महत्या का रूप देने वाली पहली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बनाने वाले तीन डॉक्टरों को भी साल 2018 में सीजेएम कोर्ट से मिली थी सजा 

द न्यूज 15 
नई दिल्ली । साल 2011 में उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार में मायावती मुख्यमंत्री थी। इसी साल जून की चिलचिलाती गर्मी के बीच लखीमपुर खीरी में हुए एक हत्याकांड ने सियासी गर्मी को और बढ़ा दिया। इस हत्याकांड में सोनम नाम की लड़की की लाश थाने के अंदर एक पेड़ से लटकती मिली थी। थाने के अंदर हुए इस कांड से तत्कालीन यूपी सरकार के साथ केंद्र में भी हलचल शुरू हो गई थी।
यूपी में जनता के अलावा अधिकारी भी मानते थे कि मायावती किसी भी हीलाहवाली पर सख्त कदम उठाती थी। ऐसे में 10 जून 2011 को खीरी जिले के निघासन थाने में हुए इस कांड के बाद अधिकारियों पर गाज गिरनी तय थी। साल भर बाद पार्टी को विधानसभा चुनाव में उतरना था, सरकार प्रशासनिक तौर पर सख्त रवैये वाली थी लेकिन इतने बड़े कांड ने कई सवाल खड़े कर दिए।
निघासन में हुए सोनम हत्याकांड में 10 जून 2011 को एफआईआर दर्ज हुई। मां तरन्नुम ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी सोनम भैंस चराने गई थी। भैंस के पीछे-पीछे चलते सोनम थाने के अंदर चली गई। काफी देर के बाद जब सोनम वापस नहीं आई तो वह खोजते हुए थाना परिसर के अंदर चली गईं। जहां उन्हें अपनी बेटी की लाश पेड़ से लटकते मिली और उसके शरीर पर कई जगह चोट के निशान भी थे। मामले में हत्या व दुष्कर्म का केस दर्ज कर शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है। वहीं, दूसरी तरफ जिले के कई सपा नेता धरने में बैठ जाते हैं और फिर आनन-फानन में तत्कालीन एसओ समेत 11 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। मामले में तत्कालीन कैबिनेट सचिव शशांक शेखर ने बताया था कि आरोपी कांस्टेबल अतीक अहमद ने पीड़िता के साथ रेप की कोशिश की थी जिसे शोर मचाने के चलते गला घोंट कर मार दिया था।
जब मामले में 11 जून को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई तो कहा गया कि लड़की की मौत फांसी से दम घुटने पर मौत हुई। दुष्कर्म के दावे पर परिजनों के विरोध के बाद, सरकार ने दूसरे पोस्टमॉर्टम का आदेश दिया था। जिसमें कहा गया कि उसकी मौत गला घोंटने से हुई है। हालांकि, दोनों रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई थी।
इस खौफनाक मामले ने जब राजनीतिक तूल पकड़ा तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी, भाजपा से उमा भारती, राजनाथ सिंह, सपा से आज़म खान भी पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे थे। भारी दबाव और विरोध के चलते मामले की जांच सीबीआई को सौंपी दी गई थी, जिसमें विशेष न्यायाधीश ने तत्कालीन सीओ इनायत उल्ला खां को सबूत मिटाने और कांस्टेबल अतीक अहमद को हत्या व सबूत मिटाने का दोषी पाया था। इस मामले में कोर्ट ने साल 2020 में तत्कालीन सीओ इनायत उल्ला खां को पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी तो वहीं कांस्टेबल अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जबकि दो अन्य आरोपित सिपाहियों शिव कुमार व उमाशंकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।

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