बिहार में एनडीए का खेल बिगाड़ेगी बीएसपी!

सभी सीटों पर चुनाव लड़ने से नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी का वोटबैंक हो सकता है प्रभावित

नई दिल्ली/पटना। बिहार में भले ही चुनाव की घोषणा न हुई हो पर सभी दलों ने चुनावी बिसात पर अपनी मोहरे सजा दी हैं। सभी दल अपने अपने हिसाब से दांव चल रहे हैं। एनडीए और महागठबंधन की फाइट के बीच बीएसपी मुखिया मायावती ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। बिहार चुनाव में एक ओर जहां बीएसपी का वजूद देखा जाएगा वहीँ मुख्य राष्ट्रीय कोर्डिनेटर बने आकाश आनंद की भी अग्निपरीक्षा होगी। क्योंकि दलित नीतीश कुमार को अपना नेता मानते रहे हैं और बड़ी संख्या में एनडीए को नीतीश कुमार की वजह से दलित वोट भी मिलते हैं। पासवान जाति के नेता चिराग पासवान और माझी समाज के नेता जीतन राम मांझी भी एनडीए में हैं। ऐसे में बिहार में बीएसपी महागठबंधन से अधिक एनडीए को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
दरअसल एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चेहरा हैं तो महागठबंधन की ओर से प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव। कभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आरसीपी सिंह ने आप सबकी आवाज नाम से अपनी अलग पार्टी भी बनाई पर अब वह प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में शामिल हो गए हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर भी बिहार में तीसरी ताकत बनने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जदयू, लोजपा (रामविलास) हम के साथ ही उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी है। तो महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल मुख्य रूप से हैं।
बीएसपी के सभी सीटों पर अपने दम चुनाव लड़ने को बीजेपी की चाल भी माना जा रहा है। क्योंकि बार में दलित वोटबैंक लगभग 17 फीसद है। जिसमें 5 प्रतिशत पासवान हैं तो लगभग छह प्रतिशत रविदास मांझी भी बड़ी संख्या में हैं। ऐसे में बीएसपी का रोल बिहार के चुनाव में अहम् हो सकता है। उधर चंद्रशेखर आज़ाद भी बार में चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
बहुजन समाज पार्टी के राज्यसभा सांसद व नेशनल कॉर्डिनेटर रामजी गौतम ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि पार्टी बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी और किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं किया जाएगा।
देखने की बात यह है कि बीएसपी 26 जून को बापू सभागार, पटना में छत्रपति महाराज की जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करने जा रही हैं, इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और आमजन जुटेंगे।

बसपा के केंद्रीय प्रभारी अनिल कुमार ने इस दौरान बिहार की राजनीति पर टिप्पणी करते हुए केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यदि चिराग पासवान सच में बिहार की राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं तो उन्हें बिहार के गरीबों, दलितों और शोषित वर्गों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अनिल कुमार ने यह भी कहा कि बिहार में अपराध अपने चरम पर है, अपराधी बेलगाम हो गए हैं और प्रशासन की पकड़ कमजोर पड़ गई है। दलित, शोषित, वंचित समाज के लोगों के साथ हो रहे अन्याय की ओर भी उन्होंने चिराग पासवान का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि सिर्फ बयानबाजी से कुछ नहीं होगा, जमीन पर उतरकर काम करना होगा।

दरअसल आकाश आनंद के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी में बदलाव की हलचल साफ दिखाई दे रही है। मायावती के भतीजे आकाश आनंद को हाल ही में पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक (चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर) नियुक्त किया गया है, जो उनकी तीसरी वापसी है। यह कदम बीएसपी के लिए एक रणनीतिक बदलाव का संकेत देता है, खासकर तब जब पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई सियासी जमीन को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि बिहार चुनाव में आकाश आनंद की भूमिका और रणनीति क्या होगी ?

युवा अपील और डिजिटल रणनीति: 30 वर्षीय आकाश आनंद, जो लंदन से एमबीए ग्रेजुएट हैं, पार्टी में युवा और टेक्नोलॉजी-सैवी चेहरा ला रहे हैं। उन्होंने 2019 से सक्रिय रूप से पार्टी के डिजिटल अभियानों और युवा आउटरीच को मजबूत करने पर काम किया है। सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता और आधुनिक भाषण शैली ने दलित युवाओं, खासकर अंबेडकरवादी समुदायों में, उत्साह पैदा किया है।
दरअसल मायावती ने देश को तीन क्षेत्रों में बांटकर प्रत्येक के लिए राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किए हैं, जो आकाश को रिपोर्ट करते हैं। यह नया ढांचा पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने की दिशा में एक कदम है।
आकाश ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाई और बीएसपी को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश किया। उनकी रैलियों में जातिगत समानता और आर्थिक न्याय पर जोर देने वाली “आकांक्षी राजनीति” दिखी, जो पारंपरिक “पहचान की राजनीति” से आगे बढ़ती है।
चुनौतियां:

इसमें दो राय नहीं है कि बीएसपी का वोट शेयर और संसदीय उपस्थिति हाल के वर्षों में कमजोर हुई है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट न जीत पाना और उत्तर प्रदेश विधानसभा में केवल एक विधायक होना पार्टी की चुनौतियों को दर्शाता है।
आकाश आनंद को पार्टी से निकालना और फिर वापसी मायावती के मजबूत नियंत्रण और पार्टी में उनकी अनिश्चितता को दर्शाती है। मायावती ने स्पष्ट किया है कि वह अपने जीवनकाल में कोई उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं करेंगी, जिससे आकाश की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
बाहरी दबाव और धारणा: कुछ विपक्षी नेताओं ने दावा किया है कि बीएसपी पर बीजेपी का दबाव है, विशेष रूप से आकाश के बीजेपी के खिलाफ आक्रामक बयानों के बाद उनकी बर्खास्तगी को लेकर। यह धारणा पार्टी की छवि को प्रभावित कर सकती है।

दरअसल आकाश आनंद का युवा नेतृत्व और आधुनिक दृष्टिकोण बीएसपी को नई ऊर्जा दे सकता है, खासकर युवा दलित मतदाताओं के बीच जो चंद्रशेखर आजाद जैसे नए नेताओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनकी रणनीति में सामाजिक न्याय के साथ-साथ समकालीन मुद्दों को शामिल करना पार्टी को पुनर्जनन की राह पर ले जा सकता है। हालांकि, मायावती की अनिश्चित रणनीतियां और पार्टी के भीतर एकता बनाए रखने की चुनौती आकाश के लिए बड़ी बाधाएं हैं।

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