राजपूतों की नाराजगी को भुनाने की फिराक में मायावती

चरण सिंह 

क्या बीजेपी राजपूतों के आंदोलन को गंभीरता से नहीं ले रही है या फिर आंदोलन को खत्म करने के लिए आंदोलनकारियों से बात न कर दूसरे और तरीके अपनाये जा रहे हैं ? क्या भाजपा राजपूतों को मना लेगी ? क्या राजपूत समाज भाजपा का नुकसान करने जा रहे हैं ? क्या बहुजन समाज पार्टी राजपूतों की नाराजगी का फायदा उठाने जा रही है ? या फिर समाजवादी पार्टी को इस आंदोलन का फायदा मिलेगा ?

देखने की बात यह है कि पहले चरण के मतदान से भाजपा की यह समझ में तो आया है कि उसे राजपूत आंदोलन का नुकसान तो होने जा रहा है। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमरोहा लोकसभा सीट पर आयोजित रैली में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है और इस बार 2014 का रिकार्ड टूटेगा। उसके बाद अलीगढ़ में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्हें योगी आदित्यनाथ जैसा साथी मिला है।
उन्होंने योगी आदित्यनाथ को अपना भी मुख्यमंत्री माना। आखिर प्रधानमंत्री योगी आदित्यनाथ की इतनी तारीफ क्यों करने लगे ? क्या यह सब राजपूतों को मनाने के लिए हो रहा है ? क्या प्रधानमंत्री द्वारा योगी आदित्यनाथ की तारीफ करने से राजपूत समाज मान जाएगा ? ऐसे में प्रश्न उठता है कि योगी आदित्यनाथ राजपूत समाज को मनाने के लिए कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं ?
उधर बसपा मुखिया मायावती राजपूतों की नाराजगी को भुनाने में लग गई हैं। गाजियाबाद में अपने प्रत्याशी नंदकिशोर पुंडीर के पक्ष में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए मायावती ने न केवल राजपूतों की पंचायतों का जिक्र किया बल्कि भाजपा द्वारा राजपूतों की उपेक्षा की बात  भी कही। मायावती ने एक रणनीति के तहत सोशल इंजीनियरिंग पर काम किया है। जिस तरह 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के बल पर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। ठीक उसी तर्ज पर वह लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं।
इस बार मायावती ने ब्राह्मणों और ठाकुरों को ठीकठाक टिकट दिये हैं। कैराना से श्रीपाल राणा, गाजियाबाद में नंदकिशोर पुंडीर, गौतमबुद्धनगर राजेंद्र सोलंकी और जोनपुर से श्रीकला सिंह को बसपा ने चुनावी मैदान में उतारा है। राजपूत समाज ने नंदकिशोर पुंडीर और राजेंद्र सोलंकी को तो समर्थन दे दिया है। जोनपुर में भी राजपूत समाज श्रीकला सिंह को चुनाव लड़ाएगा।
दरअसल राजपूतों के आंदोलन भड़कने के लिए भी काफी हद तक बीजेपी ही जिम्मेदार है। जब पुरुषोत्तम रूपाला ने राजपूत समाज पर गलत टिप्पणी कर दी थी तो फिर भाजपा नेतृत्व ने रूपाला पर एक्शन क्यों नहीं लिया ? यदि यही बात विपक्षी किसी पार्टी का नेता बोल देता तो यही भाजपा धरती आसमान एक कर देती। जिन मुगलों को लेकर बीजेपी राजपूतों की तलवारों की चर्चा करती है। उन्हीं मुगलों से रूपाला ने राजपूतों का रोटी और बेटी का रिश्ता बता दिया। भाजपा नेतृत्व क्या कर रहा है ? भाजपा नेतृत्व ही क्यों, बीजेपी से राजनीति कर रहे राजपूत नेता क्यो कर रहे हैं ?
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