उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में अखिलेश का खेल बिगाड़ रहीं मायावती! 

कमजोर सीटों पर भाजपा को समर्थन करने की कर रखी है अपील, भाजपा की कमजोर सीटों पर बसपा को किया जा रहा समर्थन 

चरण सिंह राजपूत 
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का खेल सपा की पुरानी प्रतिद्वंद्वी मायावती बिगाड़ रही हैं। मायावती के अपने कमजोर प्रत्याशियों वाली सीटों पर अंदरखाने भाजपा को समर्थन करने वाली अपील अखिलेश यादव के लिए घातक और भाजपा के लिए वरदान साबित हो सकती है। विश्वसनीय सूत्रों की माने तो मायावती के अपील के बाद भाजपा को इसका सीधा फायदा मिल रहा है। भाजपा भी अपने कमजोर प्रत्याशियों वाली सीटों पर बसपा को समर्थन कर रही है। वैसे भी गढ़ मुक्तेश्वर से मदन चौहान औेर धामपुर से मूलचंद चौहान जैसे कई ऐसे नेता हैं जो पहले सपा के विधायक रहे हैं औेर अब बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन के चलते रालोद के साथ गठबंधन करने के बाद सपा की सरकार बनाये जाने के कयास लगाये जाने लगे थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जिस तरह से रालोद-सपा गठबंधन की बढ़त की खबरें सामने आ रही थी उससे लगने लगने लगा था कि उत्तर प्रदेश में रालोद सपा गठबंधन की सरकार बन सकती है। इस बीच भाजपा ने रणनीति बदलते हुए बसपा प्रमुख मायावती पर दबाव बनाकर अंदरखाने उनके कमजोर प्रत्याशियों के क्षेत्र में भाजपा को समर्थन करने की अपील कराने के बाद भाजपा को फायदा होने लगा। वैसे भी उत्तर प्रदेश की हर विधानसभा सीट पर दलित वोटबैंक माना जाता है। भीम आर्मी के बाद आजाद समाज पार्टी के गठन के बाद भी मायावती की पकड़ आज भी दलित वोटबैंक पर ठीकठाक मानी जाती है। देश में एक मायावती ही हैं जो अपने वोटबैंक को कन्वर्ड करा सकती हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसे ही बसपा को उत्तर प्रदेश में मजबूत नहीं बताया था।
दरअसल भाजपा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मायावती का इस्तेमाल कर रही है। जिन सीटों पर भाजपा कमजोर है वहां पर बसपा को समर्थन दिया जा रहा है औेर जहां पर बसपा कमजोर है वहां पर भाजपा को समर्थन दिया जा रहा है। भाजपा की रणनीति है यदि उनकी सीटें सरकार बनाने में कम रह जाएं तो मायावती से समर्थन ले लिया जाए। मायावती को केंद्र सरकार में समायोजित करने का ऑफर भाजपा ने दे दिया है। वैसे भी अपने भाई आनंद कुमार के इनकम टैक्स के छापे के बाद मायावती भाजपा के सामने आत्मसमर्पण की भूमिका में हैं।
दरअसल ओबीसी समुदाय के बाद दलित वोट की उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।  मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 20-21 फीसदी संख्या दलितों की है। 20-21 फीसदी में सबसे बड़ी संख्या जाटव की हैं, जो करीब 54 फीसदी हैं, इसके अलावा दलितों की 66 उपजातियां हैं, जिनमें 55 ऐसी उपजातियां हैं, जिनका संख्या बल ज्यादा नहीं हैं, इसमें मुसहर, बसोर, सपेरा और रंगरेज शामिल हैं. 20-21 फीसदी को दो भागों में बांट दें, तो 14 फीसदी जाटव हैं और बाकियों की संख्या 8 फीसदी है। जाटव के अलावा अन्य जो उपजातियां हैं, उनकी संख्या 45-46 फीसदी के करीब है, इनमें पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं.  कुल मिलाकर पूरे उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिलें हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है।
उत्तर प्रदेश में दलित वोटबैंक विशेषकर जाटवों पर आज भी मायावती की पकड़ बताई जाती है।मायावती ने इसकासबसे बड़ा प्रयोग साल 2007 में किया था। सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से उन्होंने विधानसभा में 30.43 फीसदी वोटों के साथ 206 सीट हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा 27.4 फीसदी वोट के साथ 21 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन साल 2012 में सोशल इंजीनियरिंग की चमक कमजोर पड़ गोई। वोट गिरते हुए 25.9 फीसदी पर पहुंच गए और बसपा 206 से गिरकर 80 पर पहुंच गई, सबसे बड़ा झटका 2014 के लोकसभा चुनावों में लगा, जब बसपा को सिर्फ 20 फीसदी वोट मिले और खाता भी नहीं खुला, 2017 में 23 फीसदी वोट के साथ बसपा को सिर्फ 19 सीटें मिलीं, जिनमें बगावत के बाद अब सिर्फ 7 विधायक बचे हैं। इस बार विपक्ष में कहीं न दिखाई देने वाली बसपा की अध्यक्ष मायावती ने बीजेपी को समर्थन देने की रणनीति बनाई भाई। यही वजह है कि मायावती सपा और कांग्रेस पर तो निशाना साध रही हैं पर बीजेपी के खिलाफ बोलने से बच रही रही हैं। यदि प्रदेश में आरक्षित सीटों की बात करें तो यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से इस वक्त 86 सीट आरक्षित हैं। इन सीटों पर जिसका कब्जा रहा, वह यूपी की सत्ता पा गया।
साल 2017 में 85 रिजर्व विधानसभा सीट में भाजपा ने 65 गैर जाटव को टिकट दिया था।  भाजपा ने 76 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की, जबकि बसपा के खाते में सिर्फ 2 गईं थी।  सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) 3 और अपना दल ने 2 सीटें जीती थी।
2012 के विधानसभा चुनाव देखे जाएं, तो सपा ने 58, बसपा ने 15 और भाजपा ने सिर्फ 3 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2007 में बसपा 62, सपा 13, भाजपा 7 और कांग्रेस ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
मायावती के भाजपा को समर्थन वाली बात सपा के साथ गठबंधन करने वाले दल भी बखूबी समझ रहे हैं। सुलेहदेव भारतीय समाज  पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने दावा किया है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रत्याशियों के टिकट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह तय करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मायावती की पार्टी इस चुनाव में भाजपा का समर्थन कर रही है। राजभर लोगों को मायावती की अगुआई वाली पार्टी के पक्ष में मतदान के प्रति आगाह कर रहे हैं। पीटीआई को दिए इंटरव्यू में जब राजभर से पूछा गया कि क्या बसपा जैसे दल खेल बिगाड़ सकते हैं? उन्होंने कहा, ”मैं क्या कह सकता हूं। लोग कांग्रेस और बसपा जैसे दलों का नोटिस भी नहीं ले रहे हैं।” राजभर ने कहा कि लोगों ने बीजेपी को सत्ता से हटाने का मन बना लिया है और एकमात्र विकल्प सपा गठबंधन है।

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