Lok Sabha Elections : तीसरे मोर्चे का रूप धारण कर सकता है कांग्रेस के प्रति क्षेत्रीय दलों का रवैया 

चरण सिंह राजपूत

इंडिया गठबंधन में जिस तरह से कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों से सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंस रहा है। जिस तरह से अपने वर्चस्व वाले प्रदेश में क्षेत्रीय दल कांग्रेस को जमना नहीं देना चाहते हैं।  उसको देखने से तो ऐसा लग रहा है कि सीटों के बंटवारे में पनपने वाला विवाद तीसरे मोर्चा का रूप भी धारण कर सकता है। दरअसल पंजाब, दिल्ली और हरियाणा में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को कोई  खास तवज्जो नहीं दे रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को उसके हिसाब से सीटें देने को तैयार नहीं है। पश्चिमी बंगाल में तो टीएमसी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं देना चाहती है। झारखंड में झामुमो का भी कांग्रेस के प्रति यही रवैया है। बिहार में कमोबेश यही स्थिति है। कांग्रेस भी क्षेत्रीय दलों से सीटों के बंटवारे में सहमति न बनने पर विकल्प भी काम कर रही है।


दरसदल इंडिया गठबंधन में जिस तरह से दूसरी लाइन के नेताओं को टिकट बंटवारे की बैठक में बैठाया जा रहा है, उससे न केवल सीटों के बंटवारे का सिलसिला लंबा खिंचने के आसार हैं बल्कि एक विवाद भी उभरकर सामने आ सकता है। चाहे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की पंजाब, दिल्ली और हरियाणा में सीटों के बंटवारे को लेकर दिल्ली में हुई बैठक हो या फिर महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव गुट कांग्रेस और एनसीपी की बैठक। इन बैठकों के प्रति गठबंधन के नेताओं रवैये के चलते सीटों के बंटवारे को लेकर कोई सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे ही पश्चिमी बंगाल, झारखंड में भी मामला फंसता दिखाई दे रहा है। बिहार में भी कांग्रेस, राजद और जदयू का भी यही हाल है।दरअसल पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को 13 में से छह सीटें देने को तैयार है तो दिल्ली में कांग्रेस आम आदमी पार्टी को चार सीटें ही देने की बात कर रही है। आम आदमी पार्टी है कि हरियाणा में पांच सीटें मांग रही है। पश्चिमी बंगाल में तो ममता बनर्जी कांग्रेस को कोई भी सीटें देने को तैयार नहीं। बिहार में जदयू ने स्पष्ट कर दिया है कि वह 16 सीटें पर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस और वामपंथी दलों को सीटों के लिए राजद से बात करनी चाहिए। इन राज्यों में सबसे अधिक मामला फंसा हुआ उत्तर प्रदेश का है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कांग्रेस को 10-12 सीटों से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं, जबकि कांग्रेस 40 सीटें मांग रही है। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से बात न बनती देख बसपा से गठबंधन करने का विकल्प खुला छोड़ा है। वैसे भी उत्तर प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय और प्रदेश अध्यक्ष अजय राय दोनों ही समाजवादी पार्टी के बजाय बहुजन समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के पक्ष में हैं।
क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में कांग्रेस को पनपने नहीं देना चाहते हैं और कांग्रेस इन राज्यों में पैर पसारना चाहती है। क्षेत्रीय दलों को लगता है कि कांग्रेस उनका वोटबैंक कब्ज़ा सकती है। सीटों के बंटवारे में विवाद पनपने की स्थिति में आम आदमी पार्टी, सपा, टीएमसी, झामुमो, डीएमके, रालोद और केसीआर मिलकर तीसरा मोर्चा भी बना सकते हैं। वैसे भी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से समाजवादी पार्टी बसपा के गठबंधन में शामिल होने की स्थिति में गठबंधन में न होने की बात कर रही है। और कांग्रेस समाजवादी पार्टी से ज्यादा बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन करने की इच्छुक हैं। साथ ही बसपा मुखिया मायावती ने समाजवादी पार्टी से अपनी जान को खतरा बताया है। ऐसे में लग रहा है कि मामला उत्तर प्रदेश से ही बिगड़ने वाला प्रतीत हो रहा है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस, राजद, जदयू और बसपा का अलग गठबंधन बन सकता है।

दरअसल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इंडिया अलायंस के बैनर तले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के साथ सीट शेयरिंग के लिए होने वाली बैठक पर जो प्रतिक्रिया दी है, उससे सीटों के बंटवारे में बात बनने से ज्यादा बिगड़ना ज्यादा लग रहा है।अखिलेश यादव जिस तरह से बात कर रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि वह उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर लड़ना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में दूसरी बार योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल चल रहा है और अखिलेश यादव अपने मुख्यमंत्री काल की उपलब्धि बताने में लगे हैं।

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