उजालों से झांकते अंधेरे

डॉ. कल्पना पाण्डेय 
घाटों पर जलते दिए कुछ है कहते
भरा धुंध इनमें घुटन ज़िंदगी का
छलावों भरी रोशनी थी हमारी
कहां तक छुपाए अगन बेबसी का।
आज मन बहुत उदास और दुखी है। प्राकृतिक आपदा से लड़ते हुए हम हार जाते हैं पर मन में मलाल नहीं रखते। हमारी अपनी काली करतूतें ही उनकी ज़िम्मेदार है। पर अपने लोगों के लिए मुसीबतें खड़ी करना उनकी ज़िंदगी में अंधेरे भरना मन में बहुत मलाल पैदा करता है।
आज किसान दीपावली नहीं मना रहा । देश के कोने-कोने में अपनी जायज़ मांगों की गुहार लगाता, बची उम्मीदों पर टिका किसान आज अंधेरे को अंधेरे से सजाएगा। कितनी बड़ी विडंबना है रामलला बारह लाख दीयों से सज रहे हैं वही उनका भक्त, उनका सेवक अपने आंगन में खुशियों के बुझे हुए अंधेरों में ही रात काटेगा।
किसानों की अनाज, दाल ,तिलहन पर न्यूनतम बिक्री दर की उनकी मांग उनके जीवन को रोशन कर सकती है। किसान हमारे जीवन के कर्णधार हैं। अगर अनाज का उत्पादन नहीं कर पाएंगे तो जनता भूखों मरने लगेगी। किसानों का जायज़ मूल्य उन्हें नहीं मिल रहा । उन्हें अनाज कम कीमत में बेचना पड़ रहा है।  बिचौलिए उनका भरपूर लाभ उठा रहे हैं। उनसे बने उत्पाद महंगे दामों में बिक रहे हैं। कंपनियां मुनाफ़ा कमा रही हैं। पर पैदावार करने वालों की ज़िंदगी में सिर्फ़ निराशा और आम जनता को महंगाई।
क्या घाटों के सौंदर्यीकरण से आम जीवन रोज़ाना प्रभावित होता है ? नहीं , बिल्कुल भी नहीं। जनता के पैसों की बर्बादी है। इन पैसों को समाज हित में लगाना चाहिए । भारत आस्था वाला देश है पर आस्था के साथ प्रगतिशील विचारधारा अपनानी होगी । भूखे को भोजन कराना मानव धर्म है। धर्म के नाम पर तमाम चढ़ावे कहां जाते हैं ? सबको पता है। ईश्वर मन मंदिर में वास करता है , हमारी शक्ति है । उस शक्ति से जनता को डरा- धमका ,उसे भयभीत कर , उससे उगाही हमें पीछे धकेल रहा है।  हमसे बड़ी जनसंख्या वाला देश विकसित ही नहीं विश्व में भी श्रेष्ठता का परचम फहरा रहा है । हमारे यहां संसाधनों की कमी नहीं। पर जो भी सरकारें आती हैं उनका मानसिक पिछड़ापन हमें हमेशा भीड़तंत्र और मूर्तंखतंत्र समझता है।
हम चीज़ो को बहुत जल्दी भूल जाते हैं। पर आज किसानों का दीपावली न मनाना यह बताता है कि निःसंदेह घोर निराशा में हैं। कठिन परिश्रम का वाजिब पारिश्रमिक नहीं मिलना। रोज़ डीजल- पेट्रोल के बढ़ते दाम कहां से आम आदमी को सुविधा संपन्न बना रहा है ? गैस के बढ़ते दाम क्या भोजन से रिश्ता तोड़ना होगा?  सिर्फ कुछ कंपनियों और बिचौलियों का विकास ही देश का विकास है ? आम जनता सड़कों पर घंटों जाम में फंसी रहे , आसमान कालिमा की चादर ओढ़े हमारी सांसों पर ग्रहण लगाता रहे, मेट्रो में खड़े-खड़े यात्रा पर जुर्माना है पर क्या उनके व्यवस्थित रूप से संचालन की ज़िम्मेदारी जनता की है?
आज की रात दिए जल रहे हैं ज़रूर पर दिल भी जलेंगे, रोएंगे। अपनों पर से टूटता विश्वास कहीं दम न तोड़ दे। सरकार को कहीं न कहीं किसानों की आत्मा में झांकना होगा। दीपावली खुशियों का त्योहार है ।जब तक सबके चेहरे खिलेंगे नहीं कैसी दिवाली ? कैसी रोशनी ? जिंदगियां  खिलखिलाएं कदम उठाना होगा।

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