Law and Order : देश में पुलिस सेवा को बेहतर बनाया जाए

Law and order : आज देश में जिस तरह की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों हैं, पुलिस की जिम्मेदारी, उनकी भूमिका और उसके कार्य का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है, पुलिस फोर्स में पांच लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के हर तीसरे थाने में कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है। देश में 841 लोगों पर महज एक पुलिसकर्मी है। देश की आधी आबादी महिलाएं हैं, लेकिन पुलिस में उनकी भागीदारी सिर्फ साढ़े दस फ़ीसदी है 

प्रियंका ‘सौरभ’

पुलिस बलों की प्राथमिक भूमिका कानूनों को बनाए रखना और लागू करना, अपराधों की जांच करना और देश में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। संविधान के तहत, पुलिस राज्यों द्वारा शासित विषय है। भारत में पुलिस व्यवस्था और सुधार पर लगभग 30 साल से बहस चल रही है। वर्तमान भारतीय पुलिस प्रणाली काफी हद तक 1861 के पुलिस अधिनियम पर आधारित है। पुलिस सुधार लगभग आजादी के बाद से ही सरकारों के एजेंडे में है, लेकिन 70 से अधिक वर्षों के बाद भी, पुलिस को चुनिंदा रूप से कुशल, वंचितों के प्रति सहानुभूति के रूप में देखा जाता है।

हमारे देश में पुलिस सेवा का बड़ा महत्व है. पिछले 75 सालों में ये प्रयास रहा है कि देश में पुलिस सेवा को बेहतर बनाया जाए. इस ट्रेनिंग से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर में भी पिछले कुछ सालों में सुधार किये गए हैं. आज देश में जिस तरह की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों है, पुलिस की जिम्मेदारी, उनकी भूमिका और उसके कार्य के महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. संविधान के अनुसार पुलिस राज्य सूची का विषय है, इसलिये भारत के प्रत्येक राज्य के पास अपना एक पुलिस बल है.राज्यों की सहायता के लिये केंद्र को भी पुलिस बलों के रखरखाव की अनुमति दी गई है ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित की जा सके।

किसी भी लोकतांत्रिक देश में पुलिस बल की शक्ति का आधार जनता का उसमें विश्वास है और यदि यह नहीं है तो समाज के लिये घातक है। पुलिस में संस्थागत सुधार ही वह कुंजी है, जिससे कानून व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है, आज देश को पुलिस व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता, सुधार, विभिन्न आयोग और समितियों की सिफारिशें, पुलिस सुधार में न्यायालयों की भूमिका और नागरिकों को प्राप्त अधिकारों पर खुलकर चर्चा की जरूरत है.

गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में देश की पुलिसिंग व्यवस्था को लेकर कई चौंकाने वाले पहलु सामने आए हैं। मसलन देश में पुलिसिंग पर प्रति व्यक्ति खर्च पिछले दस सालों में दोगुना हो गया लेकिन लेकिन पुलिस फोर्स में पांच लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के हर तीसरे थाने में कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है। देश में 841 लोगों पर महज एक पुलिसकर्मी है। देश की आधी आबादी महिलाएं हैं, लेकिन पुलिस में उनकी भागीदारी सिर्फ साढ़े दस फ़ीसदी है। देश के 41 प्रतिशत पुलिस थाने ऐसे हैं, जहां एक भी महिला पुलिसकर्मी तैनात नहीं है। यह तस्वीर है देश के पुलिस बल की। यह हाल तब है जब देश में आंतरिक स्तर पर कई चुनौतियां है। कानून व्यवस्था राज्यों का मसला है लेकिन सवाल लोगों की सुरक्षा का इसलिए पुलिस सेवा सुधार सभी सरकारों की जिम्मेवारी बनती है।

पिछले दशक की तुलना में प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध में 28% की वृद्धि हुई है। हालांकि, सजा कम रही है। तो यह जांच की खराब गुणवत्ता को दर्शाता है। विधि आयोग और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने नोट किया है कि राज्य के पुलिस अधिकारी अक्सर जांच की उपेक्षा करते हैं क्योंकि उनके पास विभिन्न प्रकार के कार्यों की कमी और अत्यधिक भार होता है। इसके अलावा, उनके पास पेशेवर जांच करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता का अभाव है। उनके पास अपर्याप्त कानूनी ज्ञान भी है और उनके लिए उपलब्ध फोरेंसिक और साइबर बुनियादी ढांचा अपर्याप्त और पुराना दोनों है। मजबूरन, पुलिस बल सबूत हासिल करने के लिए बल प्रयोग और यातनाएं दे सकते हैं।

अपराध जांच राजनीतिक या अन्य बाहरी विचारों से प्रभावित हो सकती है; जैसे फोरेंसिक लैब की समस्या के बारे विशेषज्ञ निकायों ने कहा है कि इन प्रयोगशालाओं में धन और योग्य कर्मचारियों की कमी है। इसके अलावा, इन प्रयोगशालाओं में मामलों का अंधाधुंध संदर्भ दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप उच्च लंबितता होती है। केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी कानून और व्यवस्था के रखरखाव से संबंधित मामला है, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस बल का अप्रभावी कामकाज होता है। पुलिस बल संरचनात्मक कमजोरियों के कारण साइबर अपराध, वैश्विक आतंकवाद, नक्सलवाद की वर्तमान समस्याओं से निपटने की स्थिति में नहीं है।

पुलिस बल पर विशेष रूप से निचले स्तरों पर अधिक बोझ होता है, जहां कांस्टेबल को लगातार 14-16 घंटे और सप्ताह में 7 दिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह उनके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। जबकि 2016 में स्वीकृत पुलिस संख्या प्रति लाख व्यक्ति पर 181 पुलिस थी, जब संयुक्त राष्ट्र ने सिफारिश की थी कि मानक प्रति लाख व्यक्ति 222 पुलिस है। राज्य की 86 फीसदी पुलिस में सिपाही शामिल हैं। कांस्टेबलों को आमतौर पर उनकी सेवा के दौरान एक बार पदोन्नत किया जाता है। यह अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उनके प्रोत्साहन को कमजोर कर सकता है।

पुलिस सुधारों में शामिल किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक यह है कि पुलिस को स्थानीय स्तर के राजनीतिक दबाव से मुक्त होना है। क्योंकि स्थानीय स्तर पर कई मामले सार्वजनिक जीवन में होते हैं और पीड़ितों को उनका कानूनी न्याय नहीं मिलता है। हमें पुलिस को भारत के संविधान की संयुक्त सूची में लाने की जरूरत है। भारत की आंतरिक सुरक्षा गहरी चिंता का विषय है। सीआरपीसी, आईपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन के साथ पुलिस सुधारों में ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए। पुलिस रेगुलेशन -1861 को भी बदलने कि बात होनी चाहिए क्योंकि यह कानून भारतीयों के शोषण के लिए बनया था अंग्रेजो ने अपने जरूरत के अनुसार इसे बनाया था, यह कानून 161वर्ष पुराना हो गया है.

जबकि वेतनमान और पदोन्नति में सुधार पुलिस सुधार के आवश्यक पहलू हैं, मनोवैज्ञानिक स्तर पर आवश्यक सुधारों के बारे में बहुत कम बात की गई है। भारतीय पुलिस बल में, निचले रैंक के पुलिस कर्मियों को अक्सर उनके वरिष्ठों द्वारा मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है या वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं। यह गैर-सामंजस्यपूर्ण कार्य वातावरण अंततः जनता के साथ उनके संबंधों को प्रभावित करता है। पुलिस-जनसंपर्क एक असंतोषजनक स्थिति में है क्योंकि लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण और अनुत्तरदायी के रूप में देखते हैं। इसके अलावा, आम तौर पर नागरिकों को पुलिस स्टेशन जाने या पुलिस बलों के निचले रैंक से निपटने का डर होता है।

इसके अलावा, पुलिस बलों के भीतर रिक्तियों का एक उच्च प्रतिशत अतिभारित पुलिस कर्मियों की मौजूदा समस्या को बढ़ा देता है। पुलिस बल को कार्यपालिका के बन्धन से मुक्त करने और कानून के शासन को लागू करने के लिए कार्यात्मक स्वायत्तता देने की आवश्यकता है। पुलिस एक स्मार्ट पुलिस होनी चाहिए – एक पुलिस जो सख्त और संवेदनशील, आधुनिक और मोबाइल, सतर्क और जवाबदेह, विश्वसनीय और जिम्मेदार, तकनीक-प्रेमी और प्रशिक्षित होनी चाहिए।

(लेखिका हैं प्रियंका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार लेखिका हैं)

  • Related Posts

    अमित शाह की यह बात तो हर किसी को मान लेनी चाहिए!

    चरण सिंह  अक्सर नेता कार्यकर्ताओं को गुलाम समझते हैं। उनके स्वास्थ्य आराम और सुविधा से उनको कोई मतलब नहीं होता है। उन्हें तो बस कार्यकर्ताओं पर हुक्म ही झड़ना होता…

    घर की कलह से बिगड़ते बच्चों के संस्कार

    घर की कलह में और किसी का कुछ नहीं जाता, अगर जाता है तो घर के बच्चों की खुशी, बच्चों के संस्कार, पत्नी के अरमान और सपने, और एक पुरुष…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    राजद के मंसूबे पर कांग्रेस ने फेरा पानी : मंगल पाण्डेय

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 6 views
    राजद के मंसूबे पर कांग्रेस ने फेरा पानी : मंगल पाण्डेय

    “चौंच भर प्यास”

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 6 views
    “चौंच भर प्यास”

    अमित शाह की यह बात तो हर किसी को मान लेनी चाहिए!

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 5 views
    अमित शाह की यह बात तो हर किसी को मान लेनी चाहिए!

    घर की कलह से बिगड़ते बच्चों के संस्कार

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 3 views
    घर की कलह से बिगड़ते बच्चों के संस्कार

    बिहार के ग्रामीण बैंकों का विलय, यूनियनों ने भी बदला स्वरूप

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 4 views
    बिहार के ग्रामीण बैंकों का विलय, यूनियनों ने भी बदला स्वरूप

    डॉ. हरिश्चंद्र सहनी की श्रद्धांजलि सभा में जुटेंगे कई दिग्गज नेता

    • By TN15
    • April 19, 2025
    • 3 views
    डॉ. हरिश्चंद्र सहनी की श्रद्धांजलि सभा में जुटेंगे कई दिग्गज नेता