कलम लाऊँगा

चूड़ी नहीं, चूड़ी की खनक से आगे,
पायल नहीं, जो सीली ज़मीं पर भागे,
बिंदी नहीं, जो माथे को सजाए,
काजल नहीं, जो नज़रों को बहलाए।

मैं लाऊँगा कलम —
जिससे तुम लिखो अपना नाम,
इतिहास की उन पंक्तियों में,
जहाँ अब तक सिर्फ़ पुरुषों के थे काम।

मैं लाऊँगा कलम —
जो तुम्हारी जुबां बन जाए,
तुम्हारे सवालों को आवाज़ दे,
तुम्हें सिर्फ़ प्रेमिका या पत्नी नहीं,
बल्कि क्रांति की मशाल कहे।

ना होगा सिंगार,
पर होगी समझ की धार,
ना होगी लाज की बेड़ियाँ,
होगा विचारों का विस्तार।

तुम लिखोगी —
अपने सपनों की उड़ान,
किसी और की परछाई नहीं,
तुम खुद बनोगी पहचान।

इसलिए नहीं लाऊँगा गहने,
क्योंकि मैं चाहता हूँ,
तुम गढ़ो शब्दों की धरोहर,
और बदल दो आने वाली नस्लों का सफ़र।

 डॉ. सत्यवान सौरभ

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