नवउदारवादी शिकंजे में आजादी और गांधी

हले आजादी की बात लें। वह गांधी से पहले और ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ सालों से गंभीर विद्वानों द्वारा भी ध्यान नहीं दिया जाता कि 1991 के बाद नवसाम्रज्यवादी गुलामी की शुरुआत करने वाली नई आर्थिक नीतियों के लागू किए जाने साथ ही उसके विरोध की एक सशक्त धारा पूरे देश  में उठ खड़ी हुई थी। एक तरफ जहां एक के बाद एक संविधान की मूल संकल्पना के विपरीत कानूनज्यादातर अध्यादेशों के जरिएपारित व लागू हो रहे थेदूसरी तरफ वहीं उनका जबरदस्त प्रतिरोध हो रहा था। उसमें मुख्यधारा राजनीति का भी एक स्वर शामिल था। आरएसएस ने भी स्वदेशी जागरण मंच बना कर देश की आजादी को गिरवीं रखने वाली उन नीतियों पर चिंता दर्ज की थी। उस प्रतिरोध का स्वरूप फुटकर और गैर-राजनीतिक था। लेकिन प्रतिरोध की प्रक्रिया में से वैकल्पिक राजनीति की समग्र अवधारणा की शुरुआत भी 1995 आते-आते हो चुकी थी। आजादी की चेतना से लैस नवसाम्राज्यवाद विरोधी इस धारा की कांग्रेसभाजपा और विदेशी फंडिंग पर चलने वाले एनजीओ गुट से सीधी टक्कर थी। लेकिन जल्दी ही देश की तीसरी शक्ति कहे जाने वाली राजनीतिक पार्टियों और कम्युनिस्ट पार्टियों ने नवउदारवाद के बने-बनाए रास्ते पर चलना स्वीकार कर लिया। देवगौड़ा सरकार के वित्तमंत्री पी चिदंबरम थे। पश्चिम बंगाल में सिंगुर और नंदीग्राम का प्रकरण जगजाहिर है।

मुकाबला दो नितांत असमान पक्षों के बीच होने के बावजूद नवसाम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष मजबूती और व्यवस्थित ढंग से चल रहा था। हमारे दौर के कई बेहतरीन दिमाग और अनेक युवा उस संघर्ष में अपने कैरियरयहां तक कि स्वास्थ्य की कीमत पर जुटे थे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और उसके बाद दो बार की मनमोहन सिंह सरकार के ताबड़-तोड़ उदारीकरण के बावजूद नवसाम्राज्यवाद विरोध की धारा डटी रही। देश की सभी भाषाओं में नवसाम्राज्यवाद विरोधी परचोंफोल्डरोंलघु पत्रिकाओंपुस्तिकाओंपुस्तकों की जैसे बाढ़ आ गई थी। तभी इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी), भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनआम आदमी पार्टी और मुख्यधारा मीडिया ने कांग्रेस का नकली प्रतिपक्ष खड़ा करके और आरएसएस समेत कम्युनिस्टोंसमाजवादियोंगांधीवादियोंकारपोरेट घरानोंनागरिक समाजरामदेवश्री श्री रविशंकर जैसे तत्वों को साथ लेकर नवसाम्राज्यवाद के बरक्स चलने वाले संघर्ष को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। अन्ना हजारे द्वारा अनशन तोड़ने के लिए जूस का गिलास मुंह से लगाते ही दूसरी आजादी‘, ‘तीसरी आजादी’ के शोर में नवसाम्राज्यवादी गुलामी की चर्चा राजनीतिक विचारणा से बाहर हो गई; पिछले दो दशकों से पूरे देश में गूंजने वाली आजादी बचाओ, विदेशी कंपनियां भारत छोड़ो, डब्ल्यूटीओ भारत छोड़ो की मुखर आवाजें डूब गईं; वैकल्पिक राजनीति का अर्थ नवउदारवाद की पक्षधर पार्टियों के बीच हार-जीत तक सीमित हो गया; और नवसाम्राज्यवादी गुलामी का शिकंजा और ज्यादा मजबूती के साथ कस गया।

दरअसल, आजादी का अनादर 1947 में मिलने के साथ शुरू हो गया था। देश का विभाजन आजादी के लिए सबसे बड़ा झटका था। लोगों के लंबे संघर्ष और कुर्बानियों से जो घायल आजादी मिली थीउसे आगे मजबूत बनाने के बजाय प्रगतिवादी खेमे द्वारा उसे झूठीअधूरीसमझौतापरस्ती का परिणामअंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम आदि बताना शुरू कर दिया गया। एक नुक्ता यह भी निकाला गया कि आजादी को अहिंसक रास्ते से नहींहिंसक रास्ते से हासिल किया जाना चाहिए था। हालांकि इसी दिमाग ने 1857 में जान की बाजी लगा देने वाले लाखों विद्रोहियों को पिछड़ा बता कर उनकी पराजय पर राहत की सांस ली थी। आज भी भारत के बुद्धिजीवीवे आधुनिकतावादी हों या मार्क्सवादीइस आशंका से डर जाते हैं कि 1857 में विद्रोही जीत जाते तो देश अंधेरे के गर्त में डूबा रह जाता! आरएसएस गांधी वध’ से संतुष्ट नहीं हुआ। भारत-विभाजन का विरोध और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उसने मरने के बाद भी गांधी को माफ नहीं किया। मुसलमान-मुक्त’ भारत बनाने यानी देश/समाज को एक बार फिर से तोड़ने की कवायद में लग गया। उसने गांधी के साथ नेहरू व कांग्रेस की बदनामी का निम्नस्तरीय अभियान चलाया। इस तरह वह आजादी के पहले व आजादी के बाद राष्ट्र-निर्माण की जिम्मेदारी से पूर्णतः मुक्त राष्ट्रवादी’ बन गया।

देश को आजादी मिलना ही आजाद भारत में जैसे गुनाह हो गयाऔर आजादी के संघर्ष का नेतृत्व करने वाले गुनाहगार। आजादी की उपलब्धि को कटघरे में खड़ा करने वालों ने दरअसल जनता के संघर्ष का ही तिरस्कार कर डाला। ऐसी अयोग्य’ जनता, जिसने उनकी फेंटेसी का कम्युनिस्ट राष्ट्र’ या हिंदू राष्ट्र’ बनानेवह भी आजादी हासिल किए बगैर हीके बजाय गलत नेतृत्व का साथ दिया! आजकल ये दोनों पक्ष भगत सिंह को लेकर झगड़ रहे हैंजिन्होंने अंग्रेजी दासता से मुक्ति को पहला मोर्चा माना था; और उस मोर्चे पर जान की कुर्बानी दी थी। इस कदर निन्दित आजादी अवसरवादी और भ्रष्ट नेताओंव्यापारियोंअफसरों के लिए खुली लूट और छूट का मौका बन गई, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसे में अंग्रेज ही अच्छे थे’ – यह जुमला लोगों द्वारा अक्सर कहा जाने लगा। आजादी हमारे राष्ट्रीय/नागरिक जीवन का कोई मूल्य ही नहीं है, तो आरएसएस के आजादी-द्रोह पर कान न देकर लोगों ने भाजपा की बहुमत सरकार बनवा दी। (जारी…)

Related Posts

पहलगाम से सीज़फायर तक उठते सवाल

अरुण श्रीवास्तव भारत के स्वर्ग कहे जाने वाले…

Continue reading
युद्ध और आतंकवाद : हथियारों का कारोबार! 

रुबीना मुर्तजा  युद्ध  आमतौर पर दो या दो …

Continue reading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You Missed

सीबीएसई 12वीं का रिजल्ट जारी: 88.39% छात्र पास

  • By TN15
  • May 13, 2025
सीबीएसई 12वीं का रिजल्ट जारी: 88.39% छात्र पास

मुजफ्फरपुर में ग्रामीण सड़कों के सुदृढ़ीकरण कार्य का मुख्यमंत्री ने किया शुभारंभ

  • By TN15
  • May 13, 2025
मुजफ्फरपुर में ग्रामीण सड़कों के सुदृढ़ीकरण कार्य का मुख्यमंत्री ने किया शुभारंभ

पहलगाम से सीज़फायर तक उठते सवाल

  • By TN15
  • May 13, 2025
पहलगाम से सीज़फायर तक उठते सवाल

आपका शहर आपकी बात कार्यक्रम में लोगो के समस्याओं को सुनी महापौर तथा वार्ड पार्षद

  • By TN15
  • May 13, 2025
आपका शहर आपकी बात कार्यक्रम में लोगो के समस्याओं को सुनी महापौर तथा वार्ड पार्षद

मुख्यमंत्री ने 6,938 पथों के कार्य का किया शुभारंभ

  • By TN15
  • May 13, 2025
मुख्यमंत्री ने 6,938 पथों के कार्य का किया शुभारंभ

हंसपुर तेली कल्याण समाज का साधारण सभा संपन्न

  • By TN15
  • May 13, 2025
हंसपुर तेली कल्याण समाज का साधारण सभा संपन्न