जातीय संतुलन साधने की कोशिश, लेकिन महिलाओं को नहीं मिली जगह

 बिहार में नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार

पटना | दीपक कुमार तिवारी ।

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, जिसमें बीजेपी कोटे से सात नए मंत्रियों ने शपथ ली। इस विस्तार में जातीय समीकरणों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन महिलाओं को कोई स्थान नहीं मिला, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है।

जातीय समीकरणों पर खास ध्यान:

बीजेपी ने इस मंत्रिमंडल विस्तार में राजपूत, भूमिहार, वैश्य, कोइरी और केवट जातियों को प्रतिनिधित्व दिया, लेकिन यादव और कुर्मी जाति से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया। यह फैसला राजनीतिक संतुलन और आगामी चुनावों की रणनीति को ध्यान में रखकर लिया गया है।

राजपूत जाति से: राजू सिंह को मंत्री बनाया गया, जबकि अमरेंद्र प्रताप सिंह और राम प्रवेश राय की दावेदारी कट गई।

भूमिहार जाति से: जीवेश मिश्रा को दोबारा मौका मिला, जबकि अरुणा देवी और कुमार शैलेंद्र को बाहर कर दिया गया।

वैश्य जाति से: मोतीलाल प्रसाद और संजय सरावगी को जगह मिली, लेकिन लाल बाबू गुप्ता और राम नारायण मंडल को शामिल नहीं किया गया।

अति पिछड़ा वर्ग से: विजय कुमार मंडल को मंत्रिमंडल में स्थान मिला।

कुशवाहा जाति से: डॉ. सुनील कुमार को मंत्री पद दिया गया।

यादव और कुर्मी जाति को जगह न मिलने पर उठे सवाल

यादव जाति से नवल किशोर यादव (एमएलसी) और गायत्री देवी को दावेदार माना जा रहा था, लेकिन वे मंत्री नहीं बन सके। इसी तरह, कुर्मी जाति से अवधेश कुमार सिंह का नाम चर्चा में था, मगर उन्हें भी जगह नहीं मिली। इन जातियों की अनदेखी पर राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा की रणनीतिक चाल बता रहे हैं, ताकि सामाजिक समीकरणों को नए तरीके से साधा जा सके।

महिला मंत्री न बनने पर विपक्ष हमलावर:

इस मंत्रिमंडल विस्तार में कोई महिला मंत्री नहीं बनाई गई, जिससे विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लिया। आरजेडी और कांग्रेस ने इसे महिला सशक्तिकरण के दावों की पोल खोलने वाला फैसला बताया है। बीजेपी और जेडीयू के कई महिला नेता भी इस फैसले से नाखुश नजर आ रही हैं।

राजनीतिक असंतोष और अंदरूनी कलह:

बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद न मिलने से पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति बन गई है। कई विधायकों और पार्टी नेताओं ने नाराजगी जताई है कि जिन नेताओं ने संगठन के लिए वर्षों काम किया, उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

क्या आगे और बदलाव संभव?

सूत्रों के अनुसार, आने वाले महीनों में एक और मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है, जिसमें महिलाओं और अन्य उपेक्षित जातियों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, नाराज नेताओं को संतुष्ट करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण पदों पर समायोजित करने की योजना भी बनाई जा रही है।

राजनीतिक विश्लेषण:

बीजेपी ने जातीय संतुलन साधने की कोशिश की, लेकिन महिला प्रतिनिधित्व और यादव-कुर्मी जातियों की अनदेखी को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगा, खासकर महिलाओं की भागीदारी पर जोर देकर।

असंतोष को दूर करने के लिए पार्टी को जल्द ही कुछ अहम फैसले लेने होंगे, ताकि संगठन में स्थिरता बनी रहे।

क्या यह रणनीति 2025 के चुनावों में कारगर होगी?

यह मंत्रिमंडल विस्तार बिहार में सत्ता संतुलन बनाए रखने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, महिला प्रतिनिधित्व की कमी और यादव-कुर्मी समुदाय की नाराजगी बीजेपी के लिए आगामी चुनावों में नई चुनौती खड़ी कर सकती है।

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