संपूर्ण क्रांति से अब तक बिहार

बंदना पांडेय 

आज भी बिहार की राजनीति लोकनायक जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति से जन्में राजनेताओं के इर्दगिर्द घूम रही है। वैसे संपूर्ण क्रांति का जन्म गुजरात के एलडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने खाद्य कीमतों में वृद्धि और बढ़ती फीस का विरोध से शुरू होकर नवनिर्माण का आंदोलन बन गया था और ये आंदोलन गुजरात से चलकर बिहार पहुँच गया था इसके बाद 18 मार्च 1974 का दिन इस आंदोलन के लिए अहम था जब बिहार छात्र संघर्ष समिति ने अपनी 12 मांगों के साथ विधानसभा का घेराव किया था इसके बाद जेपी के नेतृत्व में 5 जून 1974 के दिन ‘गांधी मैदान में एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था और संपूर्ण क्रांति के आह्वान पर हजारों-हजार लोगों ने अपने जनेऊ तोड़ दिये थे। उस दिन पटना के गांधी मैदान से एक नारा गुंजा था। “जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो. समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो।” समाज से अन्याय और शोषण का अंत कर एक नैतिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक क्रांति करने का यह आंदोलन है। जेपी ने कहा था कि लोहिया की सप्तक्रांति ही संपूर्ण क्रांति है। और इस क्रांति से लालू, नीतीश, सुशील मोदी और रामविलास पासवान जैसे नेता उभरकर आये।
1971 में इंदिरा गांधी को जो अपार बहुमत मिला था, दिल्ली से मुख्यमंत्री तय किए जाने लगे थे, भ्रष्टाचार बढ़ने लगा था, सारी ताकत इंदिरा गांधी ने अपने हाथों में ले ली थी, जिससे चीज़े ठीक तरह से नहीं चल पा रही थी।
जेपी आंदोलन से पहले देश के कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं थी लेकिन कोई सरकार ज्यादा समय तक चल नहीं पाई थी। लोगों के मन में एक निराशा और युवाओं में बैचेनी थी।
जेपी आजादी से जुड़े ज़मीनी आदमी थे, जो सत्ता की लालच नहीं रखते और उन्होंने सर्वोदय के लिए काम किया था। लोगों को उनपर भरोसा था। इसलिये गुजरात के एलडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने खाद्य कीमतों में वृद्धि और बढ़ती फीस का विरोध शुरू किया था वह साल 1974 में गुजरात में छात्रों का एक बहुत बड़ा आंदोलन बन गया था। जो आगे चलकर नवनिर्माण आंदोलन में बदल गया।छात्र नेताओं ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने, महंगाई, असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाने शुरू कर दिये छात्रों ने जेपी से आंदोलन का नेतृत्व करने को कहा, जिसपर वो तैयार हो गए।जेपी के जुड़ने के साथ ही आंदोलन जनआंदोलन में बदल गया था। जिसके बाद जेपी आंदोलन इंदिरा गांधी डर गयी थी और इमरजेंसी लगाया और सत्ता भी गवानी पड़ी थी।
लोकनायक जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति से जन्में बिहार के राजनेताओं के इर्दगिर्द राजनीति तब से आजतक घूम रही है।
जेपी ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन में कहा था कि समाज और व्यक्ति के जीवन के हर पहलू में क्रांतिकारी परिवर्तन और विकास के लिए हैं उन्होंने कहा था कि इस क्रांति का मकसद सिर्फ इतना ही नहीं की केवल शासन बदले बल्कि यह भी है कि व्यक्ति और समाज भी बदले और विकास की ओर आगे बढ़े।
संपूर्ण क्रांति के बाद से बिहार की राजनीति और सत्ता कभी लालू के आसपास, तो कभी रामविलास के आसपास तो कभी नीतीश के आसपास घूमती रही।
पिछले दशकों से वर्तमान तक बिहार के सत्ता का केंद्र नीतीस कुमार के इर्दगिर्द घूम रहा है।अबकी बार का चुनाव और सत्ता भी नीतीश कुमार के इर्दगिर्द ही घूमेगा और सत्ता के निर्णायक की भूमिका में नीतीश कुमार ही रहेंगे। सबकी निगाहें नीतीश कुमार पर है वह जिस तरफ़ जायेंगे सत्ता का केंद्र वही होगा।
जेपी ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन के बाद से आजतक बिहार में जेपी के ही चेले सत्ता में है लेकिन बिहार में सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन से लेकर आजतक जेपी के द्वारा पटना के गाँधी मैदान में की गयी बातों पर पूरा नहीं कर सकी है।
वैसे जेपी आंदोलन से निकले नेताओं ने पार्टी बनायीं और जिसके ख़िलाफ़ आंदोलन करके जो लोग नेता बने थे उसी पार्टी के साथ समझौता करके कुछ लोग सत्ता में साझेदार बन गये। और वो जेपी और जेपी के वादों और सिद्धांतों को भूल गये।
गाँधी मैदान में “जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो. समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो” के नारे दोहराने वाले अब जातिगत समीकरण साधने में लगे है।

गाँधी मैदान से जेपी ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।” लेकिन जेपी आंदोलन से निकले नेताओं ने इसपर कभी अमल ही नहीं किया। ख़ुद और बिहार को भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ा दिये, बिहार को सबसे ज़्यादा बेरोज़गार प्रदेश बना दिया, अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अधिकांश लोग बिहार से बाहर ही जाते दिखते है।
देखा जाये तो संपूर्णक्रान्ति के बाद से अधिकांश सरकारें जेपी लोहिया के मानने वालों की ही रही लेकिन लोहिया के समाजवाद को किसी ने नहीं माना सभी ने सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए समाजवाद की केवल बातें की क्योंकि आज भी बिहार में सबसे ज़्यादा असमानता और सामाजिक न्याय की कमी देखने को मिलती है।
बिहार की राज्य सरकारें हमेशा केंद्र की सत्ता के साथ भी शामिल रही लेकिन बिहार को लेकर केंद्र से केवल माँग ही करती रही और केंद्र सरकारें उन्हें लोखलुभावन वादे करती रही है।
आज भी बिहार की जनता जेपी के संपूर्णक्रान्ति के आह्वान को आँखें बिछाये देख रही है संपूर्णक्रान्ति से बिहार को नये नेता और कई नई सरकारें तो मिल गई लेकिन जिस उद्देश्य से समूर्णक्रांति का उद्घोष किया गया था वह आज भी अधूरा सा दिखता है। सरकारें बदली लेकिन व्यवस्था नहीं बदल सकी ।
लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि ’’सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है |’’ संपूर्ण क्रांति के बाद ऐसा हुआ भी दबे कुचले वर्ग को सत्ता का शिखर तो मिल गया लेकिन बिहार के दबे – कुचले वर्ग को क्या मिला ये आप के ऊपर छोड़ते है आप विचार कीजिये।

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