मायावती के बाद दलितों का नेता आजाद या फिर आकाश?

चरण सिंह 

क्या नगीना लोकसभा सीट से चंद्रशेखर आजाद जीत रहे हैं? क्या उन्हें ईवीएम में कुछ गड़बड़ी होने की आशंका है ? चंद्रशेखर आजाद और उनके समर्थकों की गतिविधियों और बातों से तो यही लग रहा है। जी हां नगीना लोकसभा सीट से आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद ईवीएम पर २४ घंटे पहरा दिलवा रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद विधानसभा वाइज कार्यकर्ताओं को ईवीएम का पहरा देने भेज रहे हैं।

कार्यकर्ताओं को सख्त निर्देश हैं कि किसी भी सूरत में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी एक चैनल पर इंटरव्यू के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने वोट देने के लिए नगीना लोकसभा सीट के हर वर्ग को धन्यवाद अदा किया है। उनका कहना था कि नगीना लोकसभा सीट के लोग चाहते हैं कि उनकी समस्याओं को उठाने वाला नेता ही उनका सांसद बने।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश में दलितों की राजनीति में बसपा मुखिया मायावती की जगह लेंगे या फिर मायावती उत्तराधिकारी उनका भतीजा आकाश दलितों का नेता बनेगा। यदि दोनों नेताओं की तुलना करें तो चंद्रशेखर आजाद के पास संघर्ष है तो आकाश आनंद के पास संसाधन और बुआ मायावती का मार्गदर्शन। वैसे भी आकाश आनंद चंद्रशेखर आजाद पर दलित समाज के युवाओं को आंदोलन में ले जाकर उन पर मुकदमे दर्ज कराने का आरोप लगा चुके हैं।
हालांकि नेता आंदोलन से ही बनता है जो नेता केस से डरता है वह राजनीति नहीं कर सकता। एक ओर आकाश आनंद लगातार चंद्रशेखर आजाद पर हमला बोल रहे हैं वहीं चंद्रशेखर आजाद आकाश आनंद को अपना छोटा भाई बताते हुए उसकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

मायावती की आंखों की किरकिरी माने जाने वाले चंद्रशेखर आजाद को वह भाजपा का जासूस बोलती हैं। चंद्रशेखर आजाद को हमेशा यह मलाल रहा है कि मायावती ने कभी उन्हें समझा ही नहीं। यहां तक कि जब देवबंद में चंद्रशेखर आजाद पर हमला हुआ तो किसान नेता गुरुनाम चढ़ूनी, अंतरराष्ट्रीय पहलवान बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक आये, समाजवादी पार्टी के नेता मो. आजम खां भी आये पर चंद्रशेखर आजाद ने इस बात का मलाल किया कि बहन जी ने उनका हालचाल नहीं पूछा।

इसमें दो राय नहीं कि मायावती ने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष किया है। यदि लंबे समय तक वह चुप रहीं तो कुछ न कुछ गड़बड़ी मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जरूर की है। अब वह अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाने में जुटी हैं। मतलब अब बसपा आकाश आनंद के जिम्मे है।

राजनीतिक रूप से चंद्रशेखर आजाद आने वाले समय में आकाश आनंद के लिए खतरा साबित हो सकते है। यह सब मायावती भी समझ रही हैं। यही वजह है कि वह अपने सामने ही चंद्रशेखर आजाद की राजनीति खत्म कर देना चाहती हैं। चंद्रशेखर आजाद का डर भी मायावती के अंदर है। इसी कारण नगीना से अपने भतीजे आकाश आनंद को चुनाव नहीं लड़ाया। मायावती को अंदेशा था कि चंद्रशेखर आजाद की लोकप्रियता आकाश आनंद को हरा सकता है।

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