जब रूसी पत्रकार ने यूक्रेन के बच्चों के भविष्य को बेच दिया नोबेल पुरस्कार

रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ लड़ रहे दिमित्रि मुरातोव ने यूनिसेफ के खाते में डलवा दी है पुरस्कार की राशि 

जो पत्रकार दिन भर टीवी चैनलों पर या फिर अखबारों में चीन, पाकिस्तान या फिर दूसरे देशों प्रति भी नफरत परोसते रहते हैं। दूसरे देशों के बच्चों के प्रति भी सहानुभूति दिखाने पर संबंधित व्यक्ति को देशद्रोही न जाने क्या क्या कहने लगते हैं। जो पत्रकार जन सरोकार के मुद्दों को छोड़कर सत्ता या फिर प्रभावशाली लोगों के दबाव में पत्रकारिता करते हैं। उन लोगों को नोवाया गजटा के संपादक दिमित्रि मुरातोव से सीख लेनी चाहिए। दिमित्री मूरतोव रूसी नागरिक हैं और रूसी राष्ट्रपति के यूक्रेन पर किये गए हमले के विरोध में लड़ रहे हैं। इनकी पत्रकारिता को हर पत्रकार के लिए गर्व करने लायक है ही साथ ही दिमित्रि मुरातोव ने जो कर दिखाया उससे पत्रकारिता पेशे के साथ ही अपने व्यक्तित्व को भी दुनिया में प्रेरणास्रोत बना दिया। 

दरअसल रूस के हमले से प्रभावित यूक्रेन के बच्चों के भविष्य के लिए नोवाया गजटा के संपादक दिमित्रि मुरातोव ने अपना नोबल पुरस्कार बेच दिया। पुरस्कार पर जब बोली लगी और उसकी कीमत 103 मिलियन डॉलर से ऊपर की रकम मिली तो कुछ ही देर में मुरातोव ने पूरी की पूरी राशि यूनिसेफ के खाते में डलवा दी। मुरातेव ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन पर हमला कर रूसी जार पुतिन ने यूक्रेन के बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम उनका भविष्य वापस करेंगे। इस पूरी रकम को यूक्रेन के विस्थापितों में खर्च किया जाएगा। 

दरअसल मुरातोव रूसी नागरिक हैं लेकिन वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ लड़ रहे हैं। पुतिन ने उन पर हमला भी कराया पर वह किसी दबाव में नहीं आये। उन्होंने पुतिन पर उनके छह साथियों को मरवाने का भी आरोप लगाया है।  ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर भारत में भी मुरातोव जैसे पत्रकार क्यों नहीं हैं ?  भारत के पत्रकारों को मुरातोव के इस सराहनीय कार्य से सीख लेनी चाहिए। भले ही इस मामले को भारतीय मीडिया ने कोई खास तवज्जो न दी हो पर मुरातोव या ओरियाना फलाची का मामला राजेन्द्र यादव ने हंस की संपादकीय में लिखा है। 

दरअसल पत्रकारिता ऐसा क्षेत्र रहा है कि जिसमें अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचा जाता है। यही वजह रही है कि एक पत्रकार को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। भले ही हमारे देश में पत्रकारिता और पत्रकारों का सम्मान गिरा है पर विदेश में अभी पत्रकारों और पत्रकारिता का सम्मान है। पत्रकार भी अपने से ज्यादा चिंता समाज की करते हैं। मुरातोव इसका बड़ा प्रमाण है। 

 

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