आजकल बच्चे इतने स्ट्रेस में क्यो रहते है?

ऊषा शुक्ला

मां पिता बच्चों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा तो देते हैं लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं देते। बच्चों में आत्म विश्वास और आत्म सम्मान की कमी होती है। उनमें भावनात्मक नियंत्रण नहीं होता और तनाव जल्दी आता है।आजकल के बच्चों को जन्म लेते ही माता पिता एक ऐसा बोझ तले दबा देते हैं कि उसमें से जीवन भर निकल नहीं पाते हैं । बच्चों में प्रतियोगिता की भावना इतनी ज़्यादा बढ़ती चली जा रही है कि वह अव्वल आने के लिए किसी भी हद तक गुज़र सकते हैं । भयानक सी स्थिति उत्पन्न हो रही है । बस यही कारण है कि आज कल बच्चे दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रहे हैं । माता पिता ही तो अपने बच्चों को चालाक बनने की शिक्षा देते हैं । अगर दोस्त कोई भी किताब या कापी माँगे तो नहीं देना है। इन दिनों बच्चे बिगड़ क्यों रहे हैं? इसी तरह के सवाल हैं, पति क्यों, पत्नी क्यों, छात्र क्यों, सरकार क्यों, कैदी आदि, इन दिनों बिगड़ रहे हैं? उत्तर बहुत सरल है; हम अनावश्यक सुधारों में व्यस्त हैं। सुधारों के लिए सरकार समितियों की नियुक्ति करती है (जिसका कोई परिणाम नहीं होता), पति-पत्नी तलाक के लिए अदालत के दरवाजे खटखटाते हैं, बच्चे मोबाइल फोन में व्यस्त रहते हैं, राजनीतिक दल हमेशा चुनाव में व्यस्त रहते हैं, जनता ‘उस व्यक्ति को लाओ देश बचाओ’ के नारे में व्यस्त है। संक्षेप में, प्रत्येक भारतीय दूसरे को ‘कैसे’ सुधारने के बारे में सोचने में व्यस्त है।बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बाजारवाद, बढ़ती जरूरतों, श्रम न करने की प्रवृत्ति और कुर्सी पर बैठ कर नौकरी की इच्छा जब पूरी नहीं होती तो डिप्रेशन शुरू होता है। हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं, बड़े बड़े सपने देखते हैं, जब वो सपने टूटते हैं तो डिप्रेशन शुरू हो जाता है। और बच्चे ग़लत रास्ते पर जाना शुरू करते हैं । हर युवा को एक गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड चाहिए। हर गर्लफ्रेंड को एक अमीर बायफ्रेंड चाहिए, जो उसकी हर मनोकामना को पूर्ण कर सके। सबको आईफोन चाहिए। कोई खेती में दिलचस्पी नहीं रखता, सबको साहब बनना है। सारा दिन सोशल मीडिया पर बिताने के बाद हम आई ए एस बनना चाहते हैं। जब ये सब नहीं मिलता तो लगता है कि हम ही अभागे हैं, हमारा कोई संबल नहीं, कोई सिफारिश नहीं है, हम अमीर नहीं हैं, हम गलत देश में पैदा हुए हैं आदि आदि। फिर ज्यादा सोचते रहने से, शरीर में कार्टिसोल हार्मोन रिलीज होता है जो मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, व्यक्ति को आत्महत्या तक के ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। कहां गलती हुई है।जब तक घर में मां पिता के साथ कंफर्ट ज़ोन में रहते हैं तो सुरक्षित महसूस करते हैं लेकिन बाहर निकलकर मां पिता के बगैर असुरक्षित हो जाते हैं। बच्चों के बड़े होने पर मां पिता बड़ी बड़ी अपेक्षा करने लगते हैं जिसको पूरा करने में सक्षम नहीं होते हैं। यही तनाव का मुख्य कारण होता है। भावनात्मक नियंत्रण की कमी होने से वे जल्दी हार मान लेते हैं और हताशा में आत्महत्या तक कर देते हैं।जो बच्चे संयुक्त परिवार में रहते हैं या कालोनी में दूसरे बच्चों के साथ समय बिताते हैं या रिश्तेदारों में घूमते रहते हैं उनको समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें समस्याओं का समाधान करना भी आता है। वे स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं और उनमें भावनात्मक नियंत्रण होता है। वे जल्दी तनाव में नहीं आते।आज के बच्चे ज्यादा भी विगाडने का कारण माता पिता यह स्कूल नहीं है अन्य कारणों में एक फोन सबसे बड़ा कारण है जो शॉर्ट सीन शॉर्ट सीन अन्य छोटे-छोटे वीडियो देखकर बच्चे बिगड़ रहे हैं आसपास का परिवेश सामान्य ना होने पर घर के माहौल ठीक ना होने पर बच्चे सही से समायोजन नहीं कर पाते हैं और वह बिगड़ने लगते हैं। व्यवहार से ही व्यवहार का निर्धारण होता है। नैतिक मूल्यों का पाठ तो हम बच्चों को बहुत पढा़ते है पर हम भुल जाते है। वर्तमान के शिक्षक स्वयं नैतिक मूल्य भूल चुके हैं। बच्चों को क्या नैतिक मूल्य पढ़ाएंगे। आज के शिक्षक भी तो बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर बनाने का ही सपना दिखाते हैं।आज कल बच्चे बेवजह परेशान रहने लगे है ।अगर एक लाइन में कहूँ तो इसका उत्तर होना चाहिए – बच्चे जो चाहते हैं वह तुरंत मिल जाए….और किसी इच्छीत चीज की मिलने में देर होना उन्हें तनाव में डाल देता है | अत्यधिक और आधुनिक टेक्नोलॉजी के कारण बच्चों को उम्र और समय से पहले जानकारी मिल जाती है और वह हर इच्छीत चीज को प्रैक्टिकल करना चाहता है, और लोगों से आगे निकलना चाहता है | बच्चों में तनाव ख़त्म करने के लिए सबसे पहले बच्चों को बैठकर समझाने की ज़रूरत है ना कि उन पर दबाव डालने की ज़रूरत है। हर बच्चे की क्षमता जनम के अनुसार होती है। हर बच्चा प्रथम नहीं हो सकता और हर बच्चा आसमान की बुलंदियों में नहीं उड़ सकता। हर बच्चा प्रधानमंत्री नहीं बन सकता तो हर बच्चा बहुत बड़ा अफ़सर भी नहीं बन सकता। पर हर बच्चा एक अच्छा इंसान तो बन सकता है, क्यों ना बच्चे को अच्छा इंसान बनने की सलाह दी जाए ,इंसान बनने की शिक्षा दी जाए ताकि वो भगवान की नज़र में एक अच्छा पुरुष निकले।

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