आखिरकार भाजपा को भी अपनाना पड़ा धर्मनिरपेक्षता को!

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चरण सिंह राजपूत

यह देश का भाईचारा और साम्प्रदायिक सौहार्द ही है कि धर्मनिरपेक्षता की मजाक उड़ाने वाली भाजपा को भी आखिरकार धर्मनिरपेक्षता को अपमाना ही पड़ा। मोहम्मद पैगम्बर पर विवादित टिप्पणी देने के बाद जिस तरह से भाजपा ने नूपुर शर्मा और नूपुर के पक्ष में ट्वीट करने वाले नवीन जिंदल का पार्टी से निष्कासन किया है, उससे तो ऐसा ही लग रहा है। इतना ही नहीं भाजपा ने एक कदम और बढ़कर टीवी चैनलों पर होने वाले डिबेट के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है कि वे आधिकारिक प्रवक्ता और पैनलिस्ट ही टीवी चैनलों की डिबेट में जाएंगे जिन्हें पार्टी का मीडिया सेल असाइन करेगा। इतना ही भाजपा प्रवक्ताओं का किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं बोलने की हिदायत दी गई है।

धर्म को लेकर बढ़चढ़कर बोलने वाली भाजपा ने अपने प्रवक्ताओं को धर्म के पूजनीयों और प्रतीकों के बारे में नहीं बोलने की गाइडलाइन जारी की है। संयमित भाषा का प्रयोग करने के लिए बोला गया है। इन सबका कारण नूपुर शर्मा के मोहम्मद पैगम्बर पर टिप्पणी करने के बाद अरब देशों में भारत के खिलाफ बना माहौल बताया जा रहा है।

देश में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और कई मुस्लिम संगठन मामले को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उधर नूपुर शर्मा प्रकरण के बाद कई देशों के भारत में नफरती डिबेट करने वाले एंकरों की प्रोफाइलिंग करने की बात सामने आ रही है। आने वाले समय में ऐसे एंकरों पर यात्रा संबंधी पाबंदी भी लगाने की तैयारी है। यदि अमेरिका, यूरोप और अरब देशों में ऐसे ऐंकरों पर यात्रा संबंधी पाबंदी लगा दी गई तो समझ लीजिए कि देश के कितने पत्रकार विदेश भी नहीं जा पाएंगे।

दरअसल देश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता पर बड़ा जोर दिया गया है। २०१४ में भाजपा की सरकार केंद्र में काबिज होने के बाद देश में एक तरह से धर्मनिरपेक्षता का मजाक बनाया जाने लगा था। धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही थी।

देश में आजादी की लड़ाई को धता बताकर राजतंत्र पर एक बहस छेड़ दी गई थी। आजादी की लड़ाई में कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की जगह राजा-महाराजाओं का महिमामंडन किया जाने लगा था।देश में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी तथा महाराणा प्रताप और अकबर युद्ध को लेकर एक बड़ा माहौल बनाया जाने लगा था।

देश में ऐसा लगने लगा था कि जैसे धर्म और जाति के अलावा कोई मुद्दा ही न बचा हो। रोजी-रोटी और महंगाई की जगह भावनात्मक मुद्दों पर ज्याद जोर दिया जाने लगा था। टीवी चैनलों पर आगरा में ताजो महल, मथुरा में कृष्ण मंदिर तथा वाराणसी में ज्ञान वापी मस्जिद में शिवलिंग पर ही डिबेट चल रही थी।

देश में भाईचारा, साम्प्रदायिक सौहाद तो जैसे बीते जमाने की बात हो गई थी। अब नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद भाजपा को आखिरकार धर्मनिरपेक्षता को अपनाना पड़ा है। अब देखना है कि भाजपा का यह स्टैंड कब तक जारी रहता है। वैसे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कई बार अपने को असली समाजवादी बताते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भले ही कट्टर हिन्दुत्व का आरोप लगता रहा हो पर वह समाजवाद के प्रेरक डॉ. राम मनोहर लोहिया, लोक नायक जयप्रकाश और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह को भी अपना आदर्श मानते रहे हैं।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कई भाषणों में डॉ. राम मनोहर लोहिया और लोक नारायण जयप्रकाश की नीतियों की तारीफ कर चुके हैं। भाजपा के कई नेता तो जेपी आंदोलन से ही निकले हुए हैं। दिवंगत सुषमा स्वराज तो समाजवादी पृष्ठभूमि से ही नेता बनी थीं। अब देखना यह है कि भाजपा धर्मनिपरेक्षता और समाजवाद को कितने दिनों तक अमल में लाती है।

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