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स्त्री शक्ति का महोत्सव

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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

बी कृष्णा

चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक का दिन  दैवीय शक्ति के आह्वान का दिन होता है | विधि विधान से सुबह और शाम  पूजा, नव दुर्गा का आवाहन, सप्तशती का पाठ, अखंड ज्योति, हवन आदि के द्वारा शक्ति साधना की जाती है| ये सब क्यों किये जाते हैं यदि इसका ज्ञान न हो तो ये सब आग विहीन ईंधन ही साबित होंगे|

इनमें निहित गूढ़ार्थ को समझकर ही हम सब  स्वयं की शक्ति का जागरण कर सकते हैं|

भारतीय सनातनी ज्ञान परंपरा के तहत किसी भी कार्य के सिद्ध होने में तीन बातों पर बहुत बल दिया गया है और वह है इच्छति, जानाति, करोति | इसके अनुसार ज्ञान से इच्छा एवं इच्छा से ही कर्म होते हैं|

इच्छति, जानाति, करोति का ज्ञानशक्ति हमें मिलता है श्री लक्ष्मी (इच्छाशक्ति), श्री सरस्वती (ज्ञानशक्ति), श्री महाकाली ( क्रियाशक्ति ) से|

माँ लक्ष्मी के बारे में जानते हुए हम सब दुर्गा के 9 रूपों के बारे में जानेंगे|

माँ लक्ष्मी – आज ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि लक्ष्मी का अर्थ है धन की देवी। हमने इन्हे  बहुत ही संकुचित कर दिया।

‘लक्ष्यते इति लक्ष्मी’

लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की लक्ष धातु से हुई है।

लक्ष का शाब्दिक अर्थ है – लक्ष्य

अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जब हम ध्यानपूर्वक निरीक्षण करते हुए  एकाग्रचित्त होकर कार्य या साधना करते हैं तो लक्ष्य की प्राप्ति में हमारी मार्गदर्शिका होती है, लक्ष्य प्राप्त करने में सहायिका होती हैं, उसे लक्ष्मी कहते हैं।

एक बार हमने जब अपने इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति कर ली तो हमने सौभाग्य के साथ साथ हर प्रकार के धन की प्राप्ति कर ली|

अब क्रम से चलते हैं नव रूप की यात्रा (शिशु कन्या से लेकर परिपक्व सिद्धिदात्री) पर और जानते हैं कि वर्तमान समय में दुर्गा के 9 रूप की आराधना, शक्ति प्राप्त करने के लिए क्यों आवश्यक है|

1 – माँ शैलपुत्री-  छोटी बच्ची हैं| शैल- पर्वत पुत्री हैं| सुदृढ़ हैं लेकिन GROUNDED हैं| हम चाहे कितना भी बल क्यों न प्राप्त कर लें पर जमीन से हमारा जुड़ाव बना रहे यह शक्ति हमें माँ शैलपुत्री से प्राप्त हो|

2 – माँ ब्रह्मचारिणी- एक छात्रा हैं जो अपने इच्छित की प्राप्ति के लिए ‘तपस्या’ करती है| ‘तपस्या’ अर्थात दृढ निश्चय एवं समर्पण के साथ कठिन परिश्रम करती हैं| इन्होने अपना सारा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित करके अपनी समस्त ऊर्जा को निरंतर तैलवत  धारा के सामान अपने लक्ष्य की ओर प्रवाहित कर दिया|

नारद ने दिशा दी और ये बढ़ गईं|

दृढ़ निश्चय, समर्पण और कठिन परिश्रम करने की शक्ति हमें माँ ब्रह्मचारिणी से प्राप्त हो|

3 – माँ चंद्रघंटा- दृढ निश्चयी होकर पूर्ण समर्पित भाव से किये गए कठिन परिश्रम से इन्होने अपने इच्छित  ‘शिव’ को पा लिया है| शिव का चाँद अब इनके माथे पर शोभायमान है| पति का आभूषण स्वयं के भाल  पर सजाकर ये उच्छृंखल नहीं हुई हैं बल्कि शांत और संयमित हैं|

हर अवस्था में हम शांत और संयमित रहे यह शक्ति हमें माँ चंद्रघंटा से प्राप्त हो|

4 – माँ कुष्मांडा- इनसे ही ब्रह्माण्ड, ग्रह , नक्षत्र आदि सृजित हुए| एक गर्भवती महिला के रूप में इन्हे जाना जा सकता है|  ब्रह्माण्ड सृजन की शक्ति होने का बावजूद इनमें उस बात का दम्भ नहीं है| भावनात्मक और मानसिक रूप से शक्तिशाली हैं|

सर्जन की शक्ति, भावनात्मक, मानसिक स्थिरता की शक्ति हमें माँ कुष्मांडा से प्राप्त हो| किसी प्रकार का दंभ न आए|

5 – माँ स्कंदमाता- गर्भस्थ शिशु अब अंक में है| एक हाथ में बच्चा सँभालते हुए उसी हाथ से ताड़कासुर का वध करती हैं| भावनात्मक रूप से मजबूत, बुद्धिमान और बहुकार्य  में दक्ष हैं|

भावनात्मक मजबूती, बहुकार्य करने की क्षमता, और बुद्धिमानी- यह शक्ति हमें माँ स्कंदमाता से प्राप्त हों|

6 – माँ कात्यायिनी – बढ़ती उम्र में भी इनकी शक्ति क्षीण नहीं होती है | महिषासुर का वध करती हैं|

स्वयं की निजशक्ति की पहचान रहे, हम निडर और निर्भय हों- यह शक्ति हमें माँ कात्यायिनी से प्राप्त हो|

7 – माँ कालरात्रि/ शुभंकरी के रूप में रक्तबीज का समूल नाश करती हैं| ऐसा करने में इन्हे किसी प्रकार का भय नहीं होता| अभयता और जोखिम उठाने की शक्ति और नकारात्मक एवं विध्वंशक ताकतों का समूल नाश करने की शक्ति हमें माँ कालरात्रि से प्राप्त हो|

8 – माँ महागौरी- सिंहवाहिनी माँ गौरी| पति के वृषभ की सवारी नहीं अब इनके पास स्वयं की सवारी आ गयी है| इसे इन्होनें अपने सामर्थ्य से अर्जित किया है| एक विवाहित महिला का यह वैयक्तिक विकास है| परन्तु इसके पश्चात इनमें कोई दंभ नहीं आता, पति के साथ कोई बड़ापन का भाव नहीं आता| शांत,संयमित और वैयक्तिक मौलिकता यह शक्ति हमें माँ महागौरी से प्राप्त हो|

9 – माँ सिद्धिदात्री- स्वयं को साबित करके कुछ भी हासिल कर लो यह मूल मन्त्र देती हैं माँ सिद्धिदात्री| शिव को जब सिद्धि देती हैं तब उनके आधे अंग में स्थान पाती हैं|

स्वयं को पूर्णता में साबित करने की शक्ति हमें माँ सिद्धिदात्री से प्राप्त हो|

नवमी को हवन कर 9 कन्याओं का पूजन करके नवसृजन का आरम्भ किया जाता है| शक्ति से ही सृष्टि सृजित है|

इस नवरात्र हम सब अपने अपने घरों में स्वस्तिक बनाएं और स्वस्ति वाचन करें| दशो दिशाओं से आने वाले शुभ और सकारात्मक ऊर्जा हमें अपना आशीर्वाद दें| हमें ऊर्जावान और शक्तिवान बनाएं | नवीनता प्रदान करें| हमें जागृत करें|

जागृत रहेंगे तो अंधकार डराएंगे नहीं|

आइये इस नवरात्र में माँ के नवों रूप का आवाहन करें, इन्हे जागृत करें और इनसे आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं में निहित शक्ति को जागृत करके माँ के साथ एकात्म स्थापित करें|

(लेखिका बी कृष्णा ज्योतिषी, योग और अध्यात्मिक चिंतक हैं)