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लोकसभा में गर्माएगा सहारा भुगतान का मुद्दा ?

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चरण सिंह
देश में सहारा भुगतान का मुद्दा कोई नया नहीं है। यह मुद्दा विभिन्न विधानसभाओं के साथ लोकसभा में भी उठा। भुगतान को लेकर कई संगठन देशभर में आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से निवेशकों के भुगतान के लिए सहारा रिफंड पोर्टल भी लांच किया गया पर निवेशकों को उनका भुगतान न मिल सका। अब जब बिहार के पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने लोकसभा में सहारा निवेशकों के भुगतान का मुद्दा उठाना चाहा तो उनको समय का हवाला देते हुए बैठा दिया गया। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब गत लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने सहारा निवेशकों के भुगतान का दावा किया था तो अब तक निवेशकों का भुगतान क्यों नहीं किया गया ? पप्पू यादव को जब इतना समय दे दियाा गया तो फिर सहारा का मुद्दा उठाने का समय उन्हें क्यों नहीं दिया गया ? पप्पू यादव एक-दो मिनट में इस मुद्दे को उठा देते।
दरअसल यह माना जाता सहारा मैनेजमेंट लगभग सभी दलों को चंदा देता रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि सत्तारूढ़ दल जब इन कंपनियों से चंदा लेंगे तो फिर इन पर सख्ती कैसे कर पाएंगे ?

ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब लोग इन ठगी कंपनियों से प्रभावित हो रहे हैं और राजनीतिक दल इन कंपनियों से चंदा लेते हैं तो फिर ठगे गये निवेशकों का पैसा कैसा मिलेगा ? बताया जा रहा है कि दो लाख करोड़ से ऊपर का भुगतान सहारा निवेशकों का है तो देशभर की सभी ठगी कंपनियों के निवेशकों का भुगतान दो लाख करोड़ से ऊपर का बताया जा रहा है। देश के ४२ करोड़ लोग इन ठगी कंपनियों से प्रभावित बताये जा रहे हैं। मतलब हर तीसरा आदमी इन ठगी कंपनियों ने ठगा गया है। ऐसे में कहा जा सकता है कि देश में इससे बड़ा मुद्दा तो दूसरा कोई नहीं दिखाई दे रहा है।
यह जरूर कहा जा सकता है कि ठगे गये निवेशक एकजुट नहीं हैं। यदि ये निवेशक एकजुट होकर भुगतान के लिए संघर्ष करते तो शायद निवेशकों का भुगतान हो गया होता। कहने को तो देश में कई संगठन निवेशकों की लड़ाई लड़ रहे हैं पर इन संगठनों में तालमेल के अभाव बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी जा रही है। बताया जा रहा है ७०००-८००० तक सहारा एजेंटों ने आत्महत्या की है। कितने एजंेट निवेशकों के तगादे की वजह से अपने घरों को नहीं जा पा रहे हैं। कितने एजेंटों के घरों में निवेशकों ने तोड़फोड़ कर दी है। दरअसल सबसे अधिक दिक्कत में सहारा के एजेंट हैं। इन एजेंटों ने निवेशकों से कलेक्शन कर जो पैसा सहारा में जमा किया है, उस पैसे को निवेशक मांग रहे हैं। निवेशकों का कहना है कि उन्होंने तो एजेंटों को पैसा दिया है। उन्हें संस्था या सरकार से क्या मतलब ? ऐसे में एजेंट विभिन्न संगठन बनाकर निवेशकों की लड़ाई लड़ने का दंभ भर रहे हैं।
दरअसल गत सरकार में सहकारिता मंत्रालय ने सहारा निवेशकों के भुगतान के लिए सहारा रिफंड पोर्टल लांच भी कराया। निवेशकोंं के शुरुआत में १०००० रुपये देने की बात की गई। सहारा सेबी के खाते से सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध कर ५०००० करोड़ रुपये निकाल भी लिये गये। पर निवेशकों को उनका भुगतान नहीं मिला। १२० करोड़ रुपये सहारा निवेशकों को मिलने की बात सामने आई है। अब देखना यह है कि इस सरकार में सहारा निवेशकों का कितना भुगतान हो पाता है ?