चरण सिंह
हमेशा हिन्दुत्व की बात करने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अब शाखाओं में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी धर्मों के लोगों को जोड़ने की बात कर रहे हैं। क्या अब आरएसएस की शाखाओं में मुस्लिम भी दिखाई दंेगे। मोहन भागवत वास्तव में देश में सभी धर्मों की एकता चाहते हैं या फिर यह भी बीजेपी की सत्ता के लिए हो रहा है। यदि मोहन भागवत वास्तव में आरएसएस में लोकतंत्र लाना चाहते हैं तो फिर उनके संगठन पर लगा ब्राह्मणवाद का दाग भी मोहन भागवत को हटाना चाहिए। आरएसएस पर आरोप है कि रज्जू भैया को छोड़कर आरएसएस के अब तक सरसंघचालक ब्राह्मण जाति से ही हुए हैं। मोहन भागवत को आगे बढ़कर आरएसएस का सर संघचालक गैर हिन्दू बनवाना चाहिए। यदि मोहन भागवत वास्तव में देश में भाईचारा चाहते हैं तो फिर आरएसएस को धर्म विशेष को बाहर निकलना चाहिए। भाजपा के मोह से भी बाहर निकलना चाहिए। जब आरएसएस राष्ट्रवाद की बात करता है तो फिर आरएसएस के नेताओं को राजनीति में इतनी दिलचस्पी क्यों ?
संत कबीर, रैदास, महात्मा बुद्ध, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद ने क्या कभी सत्ता से मोह पाला। आरएसएस को एक राजनीतिक संगठन क्यों चाहिए ? वह क्यों अपने प्रचारकों को राजनीति करने के लिए बीजेपी में भेजता है ? क्यों वह अनौपचारिक रूप से देश पर राज करना चाहता है। क्योंकि हिन्दू राष्ट्र की बात करता है ? जगजाहिर है कि हमारे संविधान में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार है। ऐसे में मोहन भागवत प्रधानमंत्री के उस बयान की आलोचना क्यों नहीं करते? जिस बयान में उन्होंने कांग्रेस की सरकार आने पर 80 फीसद लोगों का अधिकार छीनकर २० फीसद लोगों को दे देने की बात कही। क्यों नहीं महिला पहलवानों के आंदोलन पर मोदी सरकार को खरी-खोटी सुनाते ? किसान आंदोलन पर मोहन भागवत क्यों नहीं बोले ? मणिपुर में जब ज्यादती हुई तब मोहन भागवत का मुंह क्यों नहीं खुला। मतलब उस समय मोदी उनका काम साध रहे थे। जब जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि दो आरएसएस नेताओं का उन पर एक पूंजीपति की फाइल पास करने का दबाव था। उन्होंने मोदी सरकार से ज्याब क्यों नहीं मांगा ? मोहन भागवत शाखाओं में तो सभी धर्मों के लोगों के आने की बात कर रहे हैं पर बड़े पदों पर बैठाने की बात नहीं कर रहे हैं।
यदि योगी आदित्यनाथ के मोहन भागवत से मिलने की बात की जाए तो योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में हराया गया है। योगी आदित्यनाथ की चलती तो उत्तर प्रदेश हारने का मतलब था ही नहीं। बताया जा रहा है कि कई टिकट अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ की बिना सहमति के दे दिये। 10 टिकट तो आरएसएस की बिना सहमति के दिये गये। अब जब अमित शाह की मनमानी के चलते बीजेपी चुनाव हार गई है तो हार ठीकरा योगी आदित्यनाथ के सर फोड़ने की तैयारी चल रही है। योगी आदित्य ने मोहन भागवत से अपना रोना ही रोया होगा। हां यह भी हो सकता है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत योगी आदित्यनाथ के साथ मिलकर 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर रणनीति बनाएं।
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