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नीतीश कुमार ‘रंग बदलेंगे’ या ‘रंग दिखाएंगे’?

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 बिहार की राजनीति में सस्पेंस बरकरार, जानें कब उठेगा पर्दा!

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार में एक कहावत है चने के झाड़ पर चढ़ाना। क्या राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द कुछ ऐसी राजनीतिक ताकतें हैं जो इस कोशिश में लगी हुई हैं? विशेष तो यह है कि ऐसी ताकते न केवल देश की राजनीति को प्रभावित कर रही है बल्कि राज्य की राजनीति में भी संशय के बीज बोते चले जा रहे हैं और अगर ऐसी बात भी है तो इस कोशिश की मंजिल क्या है?
उत्तर प्रदेश में 11 अक्टूबर को फिर खेला हुआ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा तक जाने से रोका गया। हालांकि अखिलेश यादव को जेपी की प्रतिमा तक पहुंचने से पहली बार रोका नहीं गया। लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार से समर्थन वापसी की गुहार लगा कर एक नई राजनीति को जन्म देने की यह शुरुआत तो नहीं। वह भी बूंद बूंद से घड़ा भरने की तर्ज पर। क्योंकि लोकसभा में सांसदों का जो गणित है वह केवल नीतीश कुमार के समर्थन वापसी से संभव नहीं है। क्योंकि लोकसभा में सांसदों की स्थिति का आकलन करें तो जेडीयू के हाथों में है लोकसभा की 12 सीटें हैं। इनके जाने से बहुमत पर असर नहीं पड़ेगा।
नीतीश कुमार के जाने के बाद भी एनडीए के लिए 281 सांसदों के साथ बहुमत सरकार की सरकार चलाने के लिए काफी है। एनडीए को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के पास 16 सीटें के अलावा शिवसेना शिंदे गुट की 7 सीटें, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की 5 सीटें, जनता दल सेक्युलर 2 सीट, अपना दल (अनुप्रिया पटेल) 2 सीट, एनसीपी (अजित गुट) 1, एएनपीजीपी, आजसू एनटीपीसी, एमएफ, एसकेएफ की एक सीट का एनडीए की सरकार का समर्थन हैं। तो क्या आज-कल छोटी छोटी बातों को ले कर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले नीतीश कुमार को उकसा कर कहीं एनडीए सरकार को कमजोर करने की रणनीति पर तो काम नहीं हो रहा है। क्या बिहार में एक बार फिर महागठबंधन की सरकार बनाने की कवायद तो नहीं हो रही। ऐसा इसलिए कि केंद्र से जदयू समर्थन वापस लेता है तो इसका असर बिहार सरकार पर भी पड़ेगा।
हालांकि नीतीश कुमार को भारत रत्न देने की मांग जदयू के एक नेता की तरफ से की गई। पर दिलचस्प यह है कि इस मांग का समर्थन नीतीश कुमार के धुर विरोधी चिराग पासवान और जीतन राम मांझी ने भी नीतीश कुमार को भारत रत्न देने की मांग कर डाली। भारत रत्न जैसी उपाधि एक तरह से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड है। आखिर ऐसा कह कर चिराग पासवान या जीतन राम मांझी क्या आगामी विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर नहीं लड़ना चाहते हैं तो तो फिर किसके चेहरे पर ? यह सवाल भी बिहार की राजनीतिक गलियारों में गूंजने लगा है ।
वर्ष 2020 के बाद के नीतीश कुमार में बहुत फर्क आया है। जो नीतीश कुमार 2009 में नरेंद्र मोदी को प्रचार के लिए आने से मना कर देते हैं। जो नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं को दिए गए भोज को रद्द तक कर दिया आज वही नीतीश कुमार कई बार नरेंद्र मोदी के पैर छूते दिखे। तो राजनीतिक जगत में अनप्रिडिक्टेबल हो चुके नीतीश कुमार पर चौतरफा राजनीति दबाव के पीछे मनसा क्या है ,यह तो पता बाद में चलेगा। लेकिन नीतीश कुमार पर दबाव की राजनीति के सहारे क्या गहरी साजिश घर के भीतर और घर के बाहर तो नहीं चल रहा?