चरण सिंह
हाथरस में सत्संग के बाद हुए हादसे के बाद अब तमाम बातें हो रही हैं। विपक्ष की ओर से शासन-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाये जा रहे हैं तो सरकार दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कर रही है। कार्रवाई भी हो जाएगी पर क्या जिन लोगों की जान गई उनको जिंदा किया जा सकता है ? इस हादसे में 121 लोगों के मरने और 35 लोगों के घायल होने की खबर आई है। मतलब हादसा बहुत दर्दनाक और बड़ा है। जानकारी मिल रही है कि परमिशन 80 हजार लोगों की थी पर लोग आ गये ढाई लाख। वैसे संभाले तो 80 हजार लोग भी नहीं जा सकते थे, पर हादसा सत्संग होते हुए नहीं बल्कि बाबा के चरणों की रज लेने के चक्कर में हुआ। सत्संग में आये लोग बाबा के चरणों की रज लेना चाहते थे। मतलब उनके पैरों की धूल इन लोगों के लिए माथे का चंदन था।
ऐसा नहीं कि इस भोले बाबा के सत्संग में ही ढाई लाख लोग आये थे ? इससे पहले भी भी विभिन्न बाबाओं के कार्यक्रमों में लाखों लोग आते रहे है। बाबा राम रहीम, बाबा रामपाल, बाबा आसाराम ये तो नामी गिरामी बाबा रहे हैं। आज कल ये लोग कहाँ हैं ? जेल की सलाखों के पीछे है न। यह इन बाबाओं के प्रति लोगों की अंधभक्ति ही होती है जो इन्हें व्याभिचार की ओर ले जाती है। प्रश्न यह है जिन लोगों को अपने बुजुर्गों की बातें बुरी लगती हैं। बुजुर्गों का सम्मान करना उनको अपना अपमान लगता है, वे लोग इन बाबाओं के पैर छूने को इतना बेताब क्यों रहते हैं? लोग ही क्यों बड़े से बड़े नेता भी इन बाबाओं के सामने नतमस्तक रहते हैं। क्या बाबा आसाराम के सामने अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज जैसे दिग्गजों को बाबा आसाराम के सामने नतमस्तक होते हुए नहीं देखा गया क्या ?
क्या मनोहर लाल खट्टर पहली बार सरकार बनाने के बाद पूरी कैबिनेट के साथ बाबा राम रहीम के दरवाजे पर मत्था टेकने नहीं गये थे ? बताया तो यह भी जाता है कि बाबा राम रहीम को इन लोगों ने 50 लाख रुपये भी दिये थे। क्यों तब हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनाने में बाबा राम रहीम का बड़ा योगदान रहा था। क्या बाबा बागेश्वर के दरबार में बड़े बड़े नेता नहीं देखा जा रहे हैं ? जब बड़े-बड़े नेता इन बाबाओं के चक्कर लगाते रहते हैं तो जनता पर तो इन बाबाओं की बात का असर पड़ेगा ही। क्या यह भोले बाबा एलआईयू में सिपाही की नौकरी नहीं करता था ? क्या नौकरी छोड़ने के बाद इस बाबा ने अपना रुतबा कायम नहीं किया ?
अक्सर देखने में आता है ऐसी कितनी महिलाएं होती हैं जो सास ससुर के पैर छूने में अपना अपमान समझती हैं पर इन बाबाओं के पैर छूने के लिए बेताब रहती हैं। यह अपने आप में प्रश्न है कि ये महिलाएं बच्चों को अपने साथ ले जाती हैं ? बाबाओं के दरबार में इन बच्चों का काम क्या है ? आसाराम पर जिस लड़की ने यौन शोषण का आरोप लगाया था वह लड़की भी अपने माता पिता के साथ बाबा राम रहीम के दरबार में जाती थी। राम रहीम के पीछे की भी यही कहानी है। वह तो एक पीड़ित लड़की का पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पास पहुंच गया नहीं तो उसको न्याय तो क्या मिलता उसके साथ और भी न जाने क्या क्या अनहित होता। सत्संग में जाना तो समझ में आता है पर बाबा के चरणों की रज लेने के लिए जान की परवाह भी न करना कहां की अकलमंदी है। हाथरस हादसे में सत्संग में कोई दिक्कत नहीं हुई। दिक्कत तो बाबा के चरणों की रज के लिए टूट पड़ने से हुई। जो लोग इस हादसे में परलोक सिधार गये उनके परिजनों का क्या होगा ? जिन बच्चों की जान इस हादसे में गई है उनके माता पिता का क्या होगा ?