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सत्यपाल मलिक के घर पर छापा क्यों?

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राजकुमार जैन

सत्यपाल मलिक के घर सीबीआई की तलाश जारी हैl किसी को गलतफहमी नहीं कि यह किस लिए हो रही है। जो भाजपा, नरेंद्र मोदी की मुखालफत करेगा उसका अंजाम यही होगा। ..परंतु मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी की संगत में रहने के बावजूद मोदी सत्यपाल के सोशलिस्ट डीएनए से वाकिफ नहीं हुए। सत्यपाल मलिक की सियासी तालीम सोशलिस्ट भट्टी में तप कर हुई है। मेरठ कॉलेज के छात्र रहते हुए वे सोशलिस्टों के युवा संगठन ‘समाजवादी युवजन सभा’ में शरीक हो गए और मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए। वहां से शुरू हुए उनके सियासी सफर का मैं चश्मदीद रहा हू। मेरठ जिले के गांव हिसावदा के जाट किसान परिवार में जन्मे सत्यपाल मलिक का जलवा पश्चिम उत्तर प्रदेश के छात्र नौजवानों में दहकता था। उसकी धाक वहीं तक महदूद नहीं थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के दयाल सिंह जैसे कॉलेज के छात्र संघ का उद्घाटन तात्कालिक छात्र संघ अध्यक्ष कैलाश शर्मा सत्यपाल मलिक से कॉलेज के अधिकारियों के तमाम विरोध के बावजूद करवाने पर अड गए। परंतु जब सत्यपाल मलिक की तकरीर हुई तो सब दंग रह गए, अधिकारियों को भी शर्मिंदगी महसूस हुई।
. 58 साल पहले शुरू हुए शुरुआती सफर में हम साथ थे। हमने सोशलिस्ट तहरीक में एक साथ सड़क पर संघर्ष, जद्दोजहद की। आपातकाल में तिहाड़ जेल में रात एक साथ बितायी।
विचार की आग का आलम यह था कि 1968 में इंदौर में हुए समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत करने गए हम साथियों के पास वापसी के टिकट के पैसे भी नहीं थे। सत्यपाल मलिक की बेहद सादगी से सम्पन्न हुंई शादी मे भी शामिल था। जावेद आलम जयंती गुहा जो दिल्ली के कॉलेज में पढ़ा रहे थे, उनके अंतरधार्मिक विवाह से खफा कालेज मैनेजमेंट ने उनको कॉलेज से बर्खास्त कर दिया। उसके विरोध में दिल्ली के सोशलिस्टों ने मैनेजमेंट के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसमें उनकी नवविवाहित पत्नी प्रोफेसर इकबाल कौर मलिक भी गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल में बंदी हुई। उनकी शख्सियत और शोहरत की जानकारी से मुतासिर होकर चौधरी चरण सिंह ने इनको आग्रह सहित भारतीय क्रांति दल में शामिल होने का फरमान सुना दिया।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य से शुरू हुआ यह सफर लोकसभा, राज्यसभा, केंद्रीय मंत्री, तथा राज्यों के राज्यपाल के पद पर रहने तक जारी रहा। हालांकि दाग उनके सियासी सफर पर भी है। भाजपा के राष्ट्रवाद के झांसे में आकर इन्होंने भी भाजपा जैसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर मोदी के रहमोकरम पर राज्यपाल का पद पाया। पर आदत से मजबूर सोशलिस्ट तालीम अपना असर दिखाने लगी। राज्यपाल जैसे संविधानिक पद पर रहते सरकारी आयोजन मे भी इन्होने बेबाकी, बेखौफ होकर जहां आतंकियों को ललकारा की मारना है, तो कश्मीर को लूटने वालों को मारो, इन गरीब पुलिस वालों को जो रोटी रोजीके कारण हुकुम बजा रहे हैं उनको क्यों मारते हो? मलिक यही नहीं रुके, उन्होंने वहां के नेताओं जिन्होंने राज्य को दोनों हाथों से लूटा था उनको निशाना बनाने का भी खुल्लम-खुल्ला ऐलान कर दिया। सोशलिस्ट तेवर से, वर्ग संघर्ष, गरीब मजदूर किसान, लुटेरे कमेरो की आवाज बुलंद कर दी।
आज सरकार उस इंसान के घर पर छापा डाल रही है जिसने गद्दी पर रहते हुए प्रधानमंत्री को कहा था कि राज्य में लूट मची हुई है। आरएसएस के एक बड़े नेता ने मुझे काम करने की एवज में 200 करोड़ की रिश्वत पेशकश की है, प्रधानमंत्री ने भी उनकी पीठ थपथपाई थी। सवाल है, कि सरकार मलिक से खफा क्यों है? कश्मीर में पुलवामा में सरकारी काहिली का भंडाफोड़ सार्वजनिक रूप से इन्होने कर दिया। किसानों के आंदोलन के वक्त कहा, ‘मैं पहले किसान हूं बाद में और कुछ’। किसान आंदोलन के पुरजोर समर्थन में खड़े हो गए। सरकार भला कैसे बर्दाश्त करती? नतीजा साफ है, उसी कारण सीबीआई का छापा इनके घर पर पड़ा है। बड़े से बड़े पद पर रहने के बावजूद सार्वजनिक रूप से कई बार इन्होंने ऐलान किया कि मेरे पास 5-6 जोड़ी कुर्ते पजामे के अलावा और कुछ नहीं। सरकार जानती है कि उनके पास कोई अवैध संपत्ति नहीं मिलेगी।
छापे की हकीकत यह है कि सरकार को अंदेशा है की जिस रिश्वत की पेशकश की गई थी तथा इस तरह के भ्रष्ट लोगों के रिकॉर्ड एंव सरकारी साजिशों के दस्तावेज इनके पास है। उसकी बरामदगी के लिए यह तलाश हुई है।
किसान का बेटा, यह सोशलिस्ट किसी धमकी से डरने वाला नहीं। जितना जोर लगा सकते हो लगाओ।