बिहार में यूनिवर्सिटी पर क्यों है नीतीश सरकार और राजभवन में तनातनी 

बिहार में विश्वविद्यालयों के नियंत्रण को लेकर नीतीश सरकार और राजभवन के बीच टकराव चरम पर है। हालांकि, जेडीयू और बीजेपी के नेता ऐसा नहीं मानते हैं। ये विवाद उस वक्त से ज्यादा बढ़ गया है, जब राज्य शिक्षा विभाग की ओर से विशेष रूप से 39 अधिकारियों को कॉलेजों का निरीक्षण करने के लिए कहा। उसके बाद से सवाल उठने लगा है कि आखिर विश्वविद्यालय किसकी बात सुनें। राजभवन की या फिर बिहार सरकार की।

पटना। हाल में अपने एक सियासी मूव के जरिए बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में लौट आए हैं। नीतीश कुमार केंद्र में एनडीए की सरकार के साथ “डबल इंजन” शासन का हिस्सा बन गए हैं। उसके बाद भी राज्य सरकार और राजभवन के बीच लंबे समय से टकराव जारी है। ये टकराव फिलहाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। फरवरी के अंतिम सप्ताह में राज्य शिक्षा विभाग ने अपने 39 अधिकारियों को राज्य भर के विभिन्न सरकारी विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राजभवन को राज्य सरकार के इस एक्शन पर पूरी तरह ध्यान है। राजभवन का मानना है कि शिक्षा विभाग चांसलर की शक्ति में हस्तक्षेप करने का कोई न कोई रास्ता अभी भी तलाश कर रहा है।

यूनिवर्सिटी पर किसका कंट्रोल

 

नियम स्पष्ट है कि राज्यपाल यूनिवर्सिटी के पदेन कुलाधिपति होते हैं। वे कुलपतियों के नियुक्ति प्राधिकारी हैं। विश्वविद्यालयों का पूरा प्रशासनिक नियंत्रण कुलाधिपति के पास है। शिक्षा विभाग केवल ऑडिट कर सकता है। वीसी के साथ पत्र-व्यवहार नहीं कर सकता। वहीं राजभवन और सरकार से टकराव के मामले पर जेडीयू और बीजेपी के नेता ऐसा नहीं मानते। जेडीयू-बीजेपी नेता मानते हैं कि चांसलर की सर्वोच्चता को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही शिक्षा विभाग को चलना होगा। ध्यान रहे कि पिछले 10 महीनों में कम से कम पांच ऐसे मौके आए हैं, जब बिहार सरकार और राजभवन के राज्य के 13 यूनिवर्सिटी के निरीक्षण के मामले को लेकर आपस में ठन गई। शिक्षा का कहना है कि चूंकि वो राज्य विश्वविद्यालयों को अनुदान और अन्य धनराशि देता है, इसलिए विभिन्न मामलों में उन पर प्रशासनिक नियंत्रण रखना उसकी शक्तियों के अंतर्गत आता है।

कॉलेज निरीक्षण का आदेश

 

भले ही राजभवन ने शिक्षा विभाग के नए निरीक्षण आदेश पर आधिकारिक तौर पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, राजभवन के एक सूत्र ने कहा कि मामला और खराब हो जाएगा। इस तरह यदि राज्य सरकार के अधिकारी विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर देंगे। 28 फरवरी को राज्य सरकार की ओर से एक बैठक भी बुलाई गई, जिसमें इस बात पर चर्चा हुई कि विश्वविद्यालयों को राजभवन या राज्य सरकार में से किसका आदेश लेना चाहिए या नहीं। सितंबर 2023 में – जब नीतीश राजद और कांग्रेस को शामिल करते हुए महागठबंधन (महागठबंधन) सरकार का नेतृत्व कर रहे थे – राजभवन ने सभी कुलपतियों को लिखा था कि राज्यपाल या राजभवन के अलावा किसी भी आदेश का पालन न किया जाए।

 राजभवन और शिक्षा विभाग

राजभवन की ओर से इस तरह का आदेश जारी करने के पीछे शिक्षा विभाग को वो आदेश था जिसे 16 जून, 2023 को जारी किया गया था। पत्र में कहा गया था कि चार वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम शुरू नहीं किया जाए। जबकि इससे पहले ही राज्यपाल आर्लेकर की ओर से इसका अनुमोदन किया जा चुका था। राजभवन ने इस मामले में अंतिम निर्णय लिया और इस पाठ्यक्रम को 2023-24 शैक्षणिक सत्र से लागू किया। विवाद शिक्षा विभाग के एक और आदेश पर हुआ। ये 18 अगस्त का आदेश था जिसमें बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय (बीआरएबीयू) के वीसी और प्रो-वीसी के वेतन पर रोक लगा दी गई थी। राजभवन ने एक दिन बाद फैसला पलट दिया। एक और टकराव तब देखा गया जब शिक्षा विभाग ने अपने 22 अगस्त के आदेश में, राजभवन द्वारा 4 अगस्त को इसी तरह का विज्ञापन निकालने के बावजूद पांच राज्य विश्वविद्यालयों के वीसी की नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किया।

 

नेताओं की राय

 

इस मामले पर जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन का मीडिया से कहना है कि शिक्षा विभाग को सोच समझकर कदम उठाने चाहिए। ऐसा नहीं करना चाहिए की बेवजह का राजभवन और राज्य सरकार के बीच विवाद बढ़े। सुप्रीम कोर्ट का हाल में आया आदेश आंख खोलने वाला है। वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि विश्वविद्यालयों पर राजभवन की शक्तियों के मामले में नियम और प्राथमिकता अच्छी तरह से मौजूद हैं। राज्य सरकार की भूमिका सहायक है। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों में सुशासन और सुचारू कामकाज सुनिश्चित करना है। कुल मिलाकर केके पाठक भले दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। उनकी ओर से कुछ ऐसे कदम उठाए गए हैं। जिससे राजभवन और राज्य सरकार के बीच विवाद कुछ दिनों तक चलेगा। फिलहाल ये चर्चा का विषय है कि आखिर यूनिवर्सिटी पर किसका नियंत्रण रहे। शिक्षा विभाग या राजभवन का।

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