
नई दिल्ली। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद जिस तरह से भारत ने पाकिस्तान स्थित 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। पाकिस्तान और भारत में छिड़े युद्ध के तुरंत बाद अमेरिका की मध्यस्ता से सीजफायर होना और सीज फायर की घोषणा डोनाल्ड ट्रंप द्वारा करना। सीजफायर का श्रेय लेना। अमेरिका का पाकिस्तान को फंडिंग कराना, भारत के बराबर तवज्जो देना। अपने बेटे को सोने की खानों में लगा देना यह सब पीएम मोदी की विदेश नीति को कमजोर कर रहा है। सरकार से प्रश्न किया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप की बयानबाजी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी के कई संभावित कारण हो सकते हैं, जो कूटनीतिक, रणनीतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समझे जा सकते हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख कारण हैं, जो उपलब्ध जानकारी और विश्लेषण के आधार पर सामने आते हैं।
कूटनीतिक रणनीति और परिपक्वता:
पीएम मोदी की चुप्पी को कई लोग एक परिपक्व और रणनीतिक दृष्टिकोण के रूप में देखते हैं। ट्रंप के बयानों, खासकर भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता या युद्धविराम जैसे दावों पर प्रतिक्रिया न देना, भारत की उस दीर्घकालिक नीति को दर्शाता है, जिसमें वह द्विपक्षीय मुद्दों में तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं करता। भारत ने हमेशा कश्मीर और अन्य मुद्दों को पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रूप से सुलझाने पर जोर दिया है। ट्रंप के दावों का खंडन न करके, मोदी सरकार शायद अनावश्यक विवाद से बचना चाहती है, ताकि भारत-अमेरिका संबंधों पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
भारत-अमेरिका संबंधों को प्राथमिकता:
मोदी और ट्रंप के बीच पहले कार्यकाल में गहरे और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं, जैसा कि “हाउडी मोदी” (2019) और “नमस्ते ट्रंप” (2020) जैसे आयोजनों से स्पष्ट है। ट्रंप की तारीफों और दोस्ती के दावों के बावजूद, उनके कुछ बयान, जैसे कि भारत पर टैरिफ या व्यापारिक दबाव और कश्मीर मध्यस्थता के दावे, भारत के लिए असहज हो सकते हैं। फिर भी, मोदी की चुप्पी का एक कारण यह हो सकता है कि वह इन बयानों को अनदेखा करके भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को मजबूत रखना चाहते हैं, जो वैश्विक शांति और रक्षा सहयोग के लिए महत्वपूर्ण है।
आंतरिक राजनीतिक रणनीति:
भारत में कुछ विपक्षी नेताओं और विश्लेषकों ने मोदी की चुप्पी को कमजोरी के रूप में पेश करने की कोशिश की है, लेकिन यह भी संभव है कि मोदी सरकार इन बयानों को घरेलू राजनीति में अनावश्यक विवाद का मुद्दा नहीं बनाना चाहती। ट्रंप के बयानों का जवाब देकर, सरकार का ध्यान ऑपरेशन सिंदूर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों या अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से भटक सकता है। इसके बजाय, सरकार ने इन बयानों को कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से संबोधित करना चुना हो सकता है।
ट्रंप की बयानबाजी का स्वरूप:
ट्रंप की बयानबाजी अक्सर अतिशयोक्तिपूर्ण और ध्यान खींचने वाली रही है। कई बार उनके दावे, जैसे कि कश्मीर मध्यस्थता या भारत-पाक युद्धविराम में उनकी भूमिका, तथ्यों पर आधारित नहीं होते। भारत सरकार इसे समझती है और शायद इन बयानों को गंभीरता से लेने के बजाय अनदेखा करना बेहतर समझती है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने बाद में खुद कहा कि उन्होंने भारत-पाक युद्धविराम में कोई मध्यस्थता नहीं की, जो दर्शाता है कि उनकी बयानबाजी दबाव में बदल सकती है।
वैश्विक मंच पर भारत की छवि:
मोदी सरकार ने वैश्विक मंच पर भारत को एक मजबूत और स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित करने पर जोर दिया है। ट्रंप के बयानों का त्वरित जवाब देना भारत को रक्षात्मक स्थिति में ला सकता है, जो उसकी छवि के विपरीत होगा। इसके बजाय, भारत ने कूटनीतिक चुप्पी के जरिए अपनी संप्रभुता और स्वतंत्र नीति को बनाए रखने की कोशिश की होगी।
आलोचना और विपक्ष का दबाव:
विपक्षी नेताओं, जैसे अशोक गहलोत और जयराम रमेश, ने मोदी की चुप्पी को देश के सम्मान के खिलाफ माना है और इसे कमजोर कूटनीति का प्रतीक बताया है। हालांकि, सरकार शायद यह मानती है कि हर बयान का जवाब देना अनावश्यक विवाद को जन्म दे सकता है, जो दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।