मनोज वाल्मीकि नगीना
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय प्रमुख राजनीतिक पार्टियां बीते 40 वर्षों से यही ढोल पिटती आ रही है कि जितनी जिसकी संख्या भारी सत्ता में उसकी उतनी ही भागीदारी यह सुनते-सुनते कान पक गए हैं, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में वाल्मीकि वर्ग के लोगों को कोई भागीदारी किसी भी दल विशेष न नहीं दी है चाहे कांग्रेस राष्ट्रीय लोकदल समाजवादी बीएसपी या फिर भाजपा ही क्यों ना हो सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस अभाग्य वाल्मीकि समाज को नकारा है राजनीति के क्षेत्र में केंद्र और प्रदेश सरकारों में उचित नेतृत्व नहीं मिलने के कारण यह समाज वंचितों का वंचित होकर गुजर बसर करने को विकलांग बनाकर कर रहा है।
1952 से 1980 तक देश मैं लोकसभा चुनाव हो या प्रदेश स्तर पर हमेशा कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक बनकर रहा है लेकिन कांग्रेस पार्टी ने केंद्र और प्रदेश में या पार्टी संगठनों में उचित नेतृत्व नहीं दिया और ना ही कभी देने का मन बनाया। जनपद बिजनौर में या मंडल मुरादाबाद में एक भी विधानसभा या लोकसभा स्तर पर वाल्मीकि वर्ग के नेताऔ को टिकट देकर चुनाव मैदान में नहीं उतरा केवल इस वर्ग के लोगों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही है। वर्ष 19 79 में जन्मी समाजवादी पार्टी वे बहुजन समाज पार्टी वे यही सोच समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह अखिलेश यादव एवं दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बीएसपी मुखिया मायावती का भी यही सोच रही है, कभी किसी सीट पर वाल्मीकि जो दलितों का दलित है कभी भी सरकार में या संगठन में उचित पदभार नही दिया। सभी राजनीतिक दल वाल्मीकि वर्ग के लोगों की संख्या कम मनाती रही है जब का ऐसा नहीं है अनुसूचित जाति में चमार जाति के बाद वाल्मीकि समाज जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है जिसका प्रमाण 1977 में चौधरी चरण सिंह ने तारानगरगंज क्षेत्र के ग्राम पृथ्वीपुर निवासी मंगल राम प्रेमी जो वाल्मीकि समाज के थे नगीना विधानसभा सीट से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा था इस सीट पर मंगलम प्रेमी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को भारी वोटो से हराकर जीत का परचम लहराया था। इसके बाद जनता पार्टी ने मंगल राम प्रेमी पर एक बार फिर दाव खेला और 1980 में बिजनौर लोक सभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारा इस बार भी प्रेमी ने जीत का सहारा अपने नाम कर लिया। बाद में सांसद मंगल राम प्रेमी वर्ष 1991 में राम लहर के चलते बीकेडी का दामन छोड़ भाजपा का हाथ थाम लिया और लोकसभा सीट से प्रदेश की मुख्यमंत्री रही पार्टी सुप्रीमो मायावती को 87 734 मतों से हराया था।
1996 में भाजपा से लोकसभा सीट पर तीसरी बार जीत दर्ज की थी। हालांकि भाजपा ने नगीना सुरक्षित विधानसभा सीट से अकबराबाद निवासी चंद्रपाल वाल्मीकि को तथा नहटौर विधानसभा सु सीट से 2012 में बिजनौर निवासी सुभाष वाल्मीकि को भाजपा हाई कमान ने टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन वाल्मीकि वर्ग के लोगों को भाजपा ही एक ऐसी मात्रा पार्टी रही है जिसने समय-समय पर वाल्मीकि समाज को टिकट के रूप में सम्मान दिया लेकिन सपा बसपा कांग्रेस आदि ने जनपद बिजनौर की किसी भी विधानसभा सीट पर तथा मंडल मुरादाबाद की एक भी लोकसभा सीट पर वाल्मीकि समाज के लोगों को टिकट देकर चुनाव में नहीं उतरा यह इतिहास गवाह है। ऐसा नहीं है की वाल्मीकि समाज के लोग सपा बसपा कांग्रेस मैं रहते हुए लोकसभा विधानसभा चुनाव में टिकट की मांग अपने दल बदल और धन के साथ करते रहे हैं पर पर 1952 से 2024 के चुनाव तक हर बार निराशा ही हाथ लगी है टिकट नहीं जबकि समाजवादी पिछड़ों दलितों की हिमायती होने का ढंका पीटी है और बीएसपी की सुप्रीमो मायावती दलितों के उत्थान की बात करती है क्या सपा और बीएसपी वाल्मीकि समाज को दलित वर्ग का नहीं मानती क्या उसकी उनके लिए कोई जगह ही नहीं है इससे स्पष्ट होता है के बीएसपी सपा और कांग्रेस वाल्मीकि समाज के लोगों का केवल और केवल वोट लेना चाहती है और कुछ देना नहीं चाहती।
राजनीतिक दलों और उनके आकाओ की संकीर्ण भावनाओं और अपेक्षाओं के चलते वाल्मीकि समाज को शासन में संख्या के रहते भागीदारी नहीं मिलने के कारण आज भी बट से पत्थर हालत में जीने को मजबूर है जबकि भारत रत्न संविधान के रचयिता डॉ भीमराव अंबेडकर ने वंचितो दलितो जो समाज में दबा कुचला और सबसे निचली पैड़ी पर खड़ा जीवन व्यतीत कर रहा है उसका जीवन स्तर उठाने के लिए आरक्षण का लाभ दिए जाने का प्रमुखता से उल्लेख किया है लेकिन संविधान को मानने वाले राजनीतिक दल कांग्रेस बीएसपी और सपा तीनों ही खुला उल्लंघन कर इस वर्ग के लोगों को राजनीतिक और शासन में भागीदारी नहीं देकर आत्म हत्या करने की दलदल में धकेलते रहे हैं।
गैर भाजपा राजनीतिक दल वाल्मीकि समाज पर को यह कहकर भागीदारी नहीं देते की यह तो भाजपा का वोट है उनकी यह मानसिकता उनसे और दूर ले जा रही है जबकि सभी राजनीतिक दलों के मुखिया हर समाज को वोट और सपोर्ट के लिए गले लग रही है लेकिन इस अभागा वाल्मीकि समाज को कोई भी गले नहीं लग रहा है जहां कांग्रेस बीएसपी और सपा ने 76 सालों में भी इस वर्ग के लोगों को टिकट नहीं दिया वही दूसरी ओर भाजपा हाई कमान ने भी बीते 22 वर्षों से टिकट की लाइन से कोसों दूर रखा है चाहे लोकसभा हो या विधानसभा जब के यह वाल्मीकि समाज पिछले 3 दशकों से भाजपा की डोरी से वर्धा चला आ रहा है और उसे वर्ग के दलितों को टिकट देती रही है जो वास्तव में ही भाजपा का वाटर और सपोर्टर अपने आप को मानता ही नहीं है, जिसे भाजपा हाई कमान नेतृत्व भी मानता और जानता है, फिर ऐसी उनके सामने क्या मजबूरी है जो अपनों को दूर और गैरों को सम्मान दे रहे है। यदि भाजपा हाई कमान ने इस वर्ग के लोगों को उचित नेतृत्व और सरकार में सम्मानजनक स्थान नहीं दिया तो भाजपा से भी मोह भंग हो सकता है। क्योंकि आज का कोई भी वर्ग समाज का वोटर किसी का गुलाम नहीं रहा है और सब में जागृति और चेतना आने से वह सब समझने लगा है कि उसका और उसके समाज का हित कहां सुरक्षित है कहां नहीं।