
अरुण श्रीवास्तव
पीटना और पिटना दोनों मुझे अच्छा नहीं लगता। पीटने वाला न मैं हूं, न मेरी विचारधारा के लोग गर हों तब भी नहीं। फिर कंगना तो एक महिला हैं। एक महिला ने एक महिला को एक महिला के लिए पीट दिया। तब भी पीटना अच्छी बात नहीं। पीटने वाली महिला मानसिक रूप से विक्षिप्त तो थी नहीं। बावजूद इसके पीटना और पिटना कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
पिटने में खुद को दर्द होता है और पीटने में दूसरे को। कंगना के पिटने से न तो मुझे दर्द हुआ और न मैंने किसी को दर्द दिया, मतलब मैं बिल्कुल ही प्रभावित नहीं हुआ फिर भी इस घटना से मैं उसी तरह से प्रभावित हुआ जिस तरह से कोर्ट परिसर में अभिरक्षा में लाये गये जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार की पिटाई से प्रभावित हुआ था। जबसे सुना कि, भारी-भरकम सुरक्षा हासिल करने वाली बड़बोली, बदमिजाज, बदतमीज, बेहया, बेगैरत मंडी से नव निर्वाचित सांसद रुपहले पर्दे की ‘रानी लक्ष्मी बाई को एक साधारण परिवार की एक साधारण महिला ने रहपटिया दिया तब से मन में ‘कुछ कुछ’ हो रहा है।
सभी जानते हैं कि, जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर फरवरी 2016 में कोर्ट परिसर में एक दो ने नहीं बड़ी संख्या में मौजूद उन्मादी भीड़ ने हमला कर दिया था। कहते हैं कि इसमें वकीलों का समूह भी शामिल था। हमला करने वाले हाथ राष्ट्रीय ध्वज उठा रखे थे। अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत में पुलिस अभिरक्षा में लाये गये आरोपी पर भीड़ का हमला और हवाई अड्डे पर एक महिला सुरक्षाकर्मी का एक दबंग अभिनेत्री व सांसद को थप्पड़ मारना दोनों में अंतर नहीं है क्या? कोर्ट परिसर में पेशी के लिए लाया गया आरोपी/अभियुक्त न्यायिक हिरासत में होता है। उसके रक्षा की विशेष जिम्मेदारी होती है। जिन लोगों ने कन्हैया पर हमला किया था न तो वे बाहरी थे और न ही नादान। जिस समय उस पर हमला हुआ उस समय कंगना भी नादान यानी नाबालिग नहीं रही होंगी। फिर भी उन्होंने घटना की निंदा नहीं की।
इसी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया कुमार पर भी एक सभा के दौरान हमला हुआ। हमलावर ने माला पहनाया उसके बाद थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ तो बहुत अरविंद केजरीवाल ने भी खाया है। कंगना तक यह बात निश्चित तौर पर पहुंची होगी। वे भी लोकसभा प्रत्याशी थीं तब भी घटना की निंदा उन्होंने नहीं की।
बहरहाल इसी चुनाव में प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर एक तस्वीर आयी जिसमें वे अपने विरोधियों को या अपने से उलझने वालों को ‘नंगा’ करने की धमकी देतीं हैं। उर्मिला मातोंडकर को अश्लील फिल्मों की हिरोइन कह डाला। दीपिका पादुकोण और रिया चक्रवर्ती के मुद्दे पर उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया था। दिल्ली की सड़कों पर बड़ी संख्या में महिला खिलाड़ियों ने अपने ऊपर हुए यौन उत्पीड़न को लेकर आंदोलन किया पुलिस ने सड़कों पर घसीटा पर इस मुद्दे पर कंगना को ‘सांप सूंघ’ गया’ था। मणिपुर में एक सम्प्रदाय विशेष की महिला को दूसरे सम्प्रदाय के लोगों ने नंगा करके घुमाया उस पर कंगना कुछ नहीं बोलीं और न ही कंगना के समर्थन में नारी का अपमान कहने वाली रवीना टंडन और कानून व्यवस्था की वकालत करने वाले अनुपम खेर सहित तमाम लोगों ने महिला खिलाड़ियों के प्रति एकजुटता नहीं दिखाई।
एक चुनावी सभा में कंगना विरोधियों को चंपू की संज्ञा देते हुए कहती हैं कि ‘पहाड़ी थप्पड़’ की महिमा का बखान करते हुए इसे बढ़ावा देती हैं।
इस घटना से मुझे हरिशंकर परसाई जी की उस व्यंग्य रचना का शीर्षक ‘पिटने पिटने में फर्क’ याद आ गई।
याद करिए फरवरी 2016 की घटना। कोर्ट परिसर में पुलिस अभिरक्षा में ले जाए जा रहे कन्हैया कुमार पर एक समूह ने आक्रमण कर बर्बरता से पिटाई की थी। इन वकीलों ने अपने हाथ में तिरंगा थाम रखा था।
कंगना को रहपट मारने वाली महिला सुरक्षाकर्मी की न केवल चौतरफा निंदा की जा रही है बल्कि सुरक्षा से जुड़ा होने का ‘उपदेश’ देते हुए कड़ी से कड़ी सजा देने की भी मांग की जा रही है। पर कन्हैया कुमार को पीटने वाले को क्या सजा दी गई, दी गई या नहीं दी गई इस पर भी चुप्पी का चादर ओढ़ लिया जाता है। केजरीवाल, योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और सुब्रत राय पर स्याही फेंकने वाले ज्यादातर लोग पुलिस के हवाले कर दिए गए थे उनका क्या हुआ पता नहीं। पता चला कि इसी लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारने वाले को पुलिस ने छोड़ दिया।
बहरहाल… पिटना और पीटना में अंतर छोटी ‘इ’ और बड़ी ‘ई’ का ही है। बावजूद इसके मैं इस तरह की घटनाओं की सार्वजनिक जीवन में न होने के बाद भी निंदा करता हूं और यह मांग करता हूं कि, एक ‘थप्पड़ पीड़ित’ मंत्रालय बनाया जाए जिसमें स्याही और जूता फेंकने वालों को भी शामिल किया जाए।
पीटने वाला पिटने वाले को ‘मरहम-पट्टी’ का खर्चा दे। सरकार भी एक कोष स्थापित करे और श्रेणियां भी तय करे। जो ‘थुरा’ जाए उसको ज्यादा मुआवजा दे और पौष्टिक आहार भत्ता भी। एक-दो थप्पड़ खाने वाले को कम मुआवजा दे और घर पहुंचने तक का किराया। चेहरे पर स्याही फेंकने वाले को कम से कम ग्राम प्रधान या सभासद का टिकट दिया जाए और पीड़ित यदि अपने दल का है तो कपड़ा-चेहरा धुलाई भक्ता दिया जाए।बार-बार पीटने वाले को उसकी नस्ल देखते हुए चुनाव में पार्टी का टिकट दे, हार जाने पर विधान परिषद या राज्यसभा रूपी चोर रास्ते से माननीय सदस्य बनाएं और सदन में दानिश अली जैसों पर घृणात्मक टिप्पणी करने पर कैबिनेट मंत्री बनाएं। पद्म श्री/भूषण, विभूषण जैसी उपाधियां प्रदान करे और यदि पीटने वाला विरोधी दल का है तो उसके यहां ईडी भेज दे।