चरण सिंह राजपूत
आज भाजपा अपना स्थापना दिवस मना रही है। देखने की बात यह है कि भले ही आज की तारीख में भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी छायी हुई हो, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भाजपा का उभरता सितारा माना जा रहा हो पर वह राम मंदिर आंदोलन ही था कि जिसके बल पर न केवल पार्टी आगे बढ़ी बल्कि सत्ता में भी आई। वह राम मंदिर के नायक ही थे, जिन्होंने कांग्रेस के खिलाफ खड़े होकर भाजपा का अपना वजूद बनाया था। वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण की जोड़ी थी, जिन्होंने न केवल भाजपा का गठन किया बल्कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान भी दिलाई। आज भले ही राम मंदिर निर्माण का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेने में लगे हों पर राम मंदिर आंदोलन के नायकों को कोई पूछ नहीं रहा है।
देश में भले ही प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा हो। आज भले ही भाजपा के बुलंदी छूने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लेने में लगे हों पर भाजपा को आगे बढ़ाने का बड़ा श्रेय राम मंदिर के नायक लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उनके सहयोगियों को जाता है। दरअसल 1990 में राम मंदिर आंदोलन के तहत लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ही थी, जिसके बल पर भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी। आज भले ही लाल कृष्ण आडवाणी की कोई पूछ न हो पर नरेंद्र मोदी उस समय लाल कृष्ण आडवाणी के सारथी थे। आज भले ही मोदी ने आडवाणी को उपेक्षित कर रखा हो पर वह लाल कृष्ण आडवाणी ही थे, जिन्होंने गुजरात दंगे के बाद मोदी का बचाव किया था। नहीं तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तो राजधर्म के नाम पर मोदी को मुख्यमंत्री पद से ही हटाने वाले थे। वह बात दूसरी है कि आज भाजपा को खड़ी करने वाले नायकों की मोदी राज में कोई पूछ नहीं है। दरअसल आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण रथ यात्रा सोमनाथ से अयोध्या तक शुरू की गई थी। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर ज़िले में आडवाणी को गिरफ्तार क्या किया कि पूरे देश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनना शुरू हो गया था। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी के अलावा भाजपा के दूसरे बड़े नेता विवादित परिसर में मौजूद बताये जाते हैं। छह दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचे को गिराया गया तो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे।
विनय कटियार : वह राम मंदिर आंदोलन ही था कि 1984 में ‘बजरंग दल’ का गठन किया गया था। सबसे पहले बजरंग दल की कमान आरएसएस ने विनय कटियार को सौंपी गई थी। यह एक रणनीति थी कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जन्मभूमि आंदोलन को आक्रामक बनाया था। विनय कटियार का कद भी बाबरी मस्जिद के विध्वंश के बाद बढ़ गया था। उसके बाद वह न केवल भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बने बल्कि फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट से तीन बार सांसद भी चुने गए।
साध्वी ऋतंभरा : साध्वी ऋतंभरा को एक समय हिंदुत्व की फायरब्रांड नेता माना जाता था। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में वह भी आरोपित थीं और उनके खिलाफ आपराधिक साज़िश के आरोप तय किए गए थे। अयोध्या आंदोलन के दौरान उनके उग्र भाषणों के ऑडियो कैसेट पूरे देश में सुनाये गए थे। साध्वी ऋतंभरा विरोधियों को ‘बाबर की आलौद’ कहकर ललकारती थीं।
उमा भारती : उमा भारती आज की तारीख में भले ही राजनीतिक हाशिये पर हों पर राम मंदिर आंदोलन के दौरान महिला चेहरे के तौर पर उनकी विशेष पहचान बन कर उभरी थी। लिब्रहान आयोग ने बाबरी ध्वंस में उनकी भूमिका को दोषपूर्ण माना था। उन पर भीड़ को भड़काने का आरोप लगा था। वह केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहीं हैं। हालांकि उन्होंने अलग पार्टी भी बनाई पर उन्हें सफलता नहीं मिली और फिर से बीजेपी में आना पड़ा।
प्रवीण तोगड़िया : विश्व हिंदू परिषद के दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले प्रवीण तोगड़िया भी राम मंदिर आंदोलन के वक्त काफी सक्रिय रहे थी। अशोक सिंहल के बाद विश्व हिंदू परिषद की कमान उन्हें ही सौंपी गई थी। हालांकि बात में उन्होंने विहिप से अलग होकर अंतराष्ट्रीय हिंदू परिषद नाम का संगठन बना लिया। वह बात दूसरी है कि नरेंद्र मोदी के केंद्र में आते ही प्रवीण तोगड़िया अचानक सीन से गायब हो गए। गत दिनों तो उन्होंने मोदी पर उनकी हत्या कराने के षड्यंत रचने का आरोप लगाया था। वह आज की तारीख में अलग-थलग पड़े हैं।
विष्णु हरि डालमिया : विष्णु हरि डालमिया विहिप के वरिष्ठ सदस्य थे। वह बाबरी मस्जिद ढहाए जाने मामले में सह अभियुक्त भी थे। 16 जनवरी 2019 को दिल्ली में गोल्फ लिंक स्थित उनके आवास पर उनका निधन हो गया। राम मंदिर आंदोलन के नायकों की लिस्ट तो बहुत लम्बी है पर मोदी राज में इनका कोई महत्व नहीं है। दरअसल 6 अप्रैल 1980 को देश की राजधानी में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की थी। भाजपा के गठन से पहले ये दोनों नेता भारतीय जनसंघ और उसके बाद जनता पार्टी में चले गए थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मात्र दो सीटें ही जीती थी। वह बात दूसरी है कि आज 301 सांसदों के साथ मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा है। आज हर स्तर से बीजेपी देश में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। इसमें दो राय नहीं है कि अपनी स्थापना के बाद से बीजेपी को यहां लाने में भाजपाइयों ने बड़ा संघर्ष किया है। कई रुकावटों के साथ ही विफलताओं को झेलते हुए पार्टी ने एक बड़ा मुकाम बनाया है। बीजेपी का गठन भले ही 1980 में हुआ हो पर इसकी वैचारिक उत्पत्ति 1951 से मानी जाती है।