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निज भाषा से जब जुड़े

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बोल-तोल बदले सभी, बदली सबकी चाल।
परभाषा से देश का, हाल हुआ बेहाल॥
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जल में रहकर ज्यों सदा, रहती प्यासी मीन।
होकर भाषा राज की, है हिन्दी यूं हीन॥
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हिंदी मेरे देश की, पहली एक ज़ुबान।
फर्ज सभी का है यही, इसका हो उत्थान॥
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अपनी भाषा साधना, गूढ़ ज्ञान का सार।
खुद की भाषा से बने, निराकार, साकार॥
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हो जाते हैं हल सभी, यक्ष प्रश्न तब मीत।
निज भाषा से जब जुड़े, जागे अन्तस प्रीत॥
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अपनी भाषा से करें, अपने यूं आघात।
हिंदी के उत्थान की, अंग्रेज़ी में बात॥
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हिंदी माँ का रूप है, ममता की पहचान।
हिंदी ने पैदा किये, तुलसी ओ” रसखान॥
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मन से चाहें हम अगर, भारत का उत्थान।
परभाषा को त्यागकर, बाँटें हिन्दी ज्ञान॥
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भाषा के बिन देश का, होता कब उत्थान।
बात पते की जो कही, समझे वही सुजान॥
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जिनकी भाषा है नहीं, उनका रुके विकास।
करती भाषा गैर की, हाथों-हाथ विनाश॥

-डॉ सत्यवान सौरभ