चरण सिंह
आरएसएस के भाजपा नेतृत्व को टारगेट करने और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने के क्या संकेत निकाले जाएं। आरएसएस के नाराजगी जताने के बाद यदि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर गृह मंत्री अमित शाह या फिर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह मिलते तो यह माना जाता कि बीजेपी नेतृत्व मोहन भागवत को मनाने का प्रयास कर रहा है। पर मोहन भागवत से मिल रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्नयाथ। मतलब बीजेपी नेतृत्व को मोहन भागवत के बयान की कोई चिंता नहीं है। वैसे भी बीजेपी नेतृत्व ने आरएसएस की नसीहत मानी कब है ? वह योगी आदित्यनाथ जिनकी बीजेपी नेतृत्व विभिन्न प्रदेशों में तारीफ तो करती रही पर लोकसभा चुनाव में बुरी शिकस्त योगी को दिला दी। ८० में से ८० सीटों पर जीत का दावा करने वाली भाजपा मात्र ३३ सीटों पर ही सिमट कर रह गई। योगी आदित्यनाथ की टिकटों के बंटवारे में एक न सुनी गई।
दो रालोद और एक अपना दल की मिलाकर उत्तर प्रदेश में एनडीए को ३६ सीटें मिली हैं। मतलब बुरी तरह से शिकस्त। समाजवादी पार्टी ने अकेले ३७ सीटों पर जीत दर्ज की है। मतलब योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में बड़ी जिल्लत उठानी पड़ी है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ का पहले गृहमंत्री अमित शाह से मिलना उसके बाद परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिलना अब आरएसएस मोहन भागवत से योगी आदित्यनाथ की मुलाकात के बड़े मायने निकाले जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ की मोहन भागवत से मीटिंग भाजपा नेतृत्व का मोहन भागवत को मनाने का प्रयास तो कतई नहीं कहा जा सकता है।
लोकसभा में एक इंटरव्यू के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ऐसे ही नहीं कहा था कि भाजपा वाजपेयी के समय कमजोर थी तो आरएसएस की जरूरत पड़ती थी। अब भाजपा अपने आप में सक्षम है। ऐसे में बीजेपी को आरएसएस की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा था कि आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन और भाजपा एक राजनीतिक संगठन है। जेपी नड्डा के इस बयान से राजनीतिक पंडितों की समझ में आ गया था कि बीजेपी और आरएसएस के बीच में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले चरण के मतदान के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने नहीं गये थे पर उसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ। ऐसे ही लोकसभा चुनाव में आरएसएस के निष्क्रिय होने की बात सामने नहीं आ रही थी।
अब जिस तरह से मोहन भागवत ने मणिपुर मामले में मोदी सरकार को खरी-खरी सुनाई और जिस तरह से आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ने भाजपा को बहुमत न मिलने के पीछे बीजेपी का अहंकार बताया। उनका कहना था कि जो पार्टी राम को मानती तो रही पर अहंकार पाल लिया उसे भगवान राम ने सबसे बड़ी पार्टी तो बना दिया पर बहुमत नहीं दिया। ऐसे ही जो पार्टी राम विरोधी थी उसे उसकी गलती का एहसास करा दिया।
मतलब आरएसएस और भाजपा नेतृत्व के संबंध सही नहीं है। ऐसे में क्या योगी आदित्यनाथ बीजेपी नेतृत्व के न चाहते हुए भी मोहन भागवत से मिल रहे हैं। वैसे भी योगी आदित्यनाथ दिल्ली में मोहन भागवत के करीबी रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से भी मिले हैं। तो क्या बीजेपी नेतृत्व का अहंकार निकालने के लिए आरएसएस प्रधानमंत्री पद का चेहरा बदल सकता है ? क्या मोदी सरकार गिर सकती है ? क्या आरएसएस इंडिया गठबंधन की सरकार बनवा सकता है ? वैसे भी मोदी सीधे एनडीए संसदीय दल के नेता बने हैं। उन्होंने भाजपा संसदीय दल की बैठक नहीं की। उन्हें भाजपा सांसदों ने अपने दल का नेता नहीं चुना है।