क्या है शनि की साढ़े साती ?

शनि की साढ़े साती
कृष्णा नारायण 

नि की साढ़े साती
बहुत सारे व्यक्ति यह सोच कर भयाक्रांत होते हैं कि शनि की साढ़े साती शुरू होने वाली है|  इसके अनिष्टकारी  प्रभाव से कैसे बचा जाये यह जानना चाहते हैं|
आइए यहाँ ज्योतिष के नजरिये से यह देखने की कोशिश करें कि शनि की साढ़ेसाती कितना घातक है या कितना सुखप्रद है|
क्या है शनि की साढ़ेसाती : सामान्यतया ऐसा बता दिया जाता है कि जन्मकालीन चन्द्रमा से एक राशि पहले जब शनि का संचरण शुरू होता है तो साढ़े साती की शुरुआत होती है| जन्मकालीन चन्द्रमा से एक राशि आगे तक शनि के संचरण तक शनि की साढ़े साती मानी जाती है| लेकिन इसमें थोड़ा सुधार किये जाने की आवश्यकता है, और वह यह कि जन्म कालीन चन्द्रमा से 45 डिग्री आगे या 45 डिग्री पीछे जब गोचरीय शनि का संचार होता है तब  व्यक्ति की साढ़े साती चल रही होती है| साढ़े साती, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, साढ़े सात वर्षों की होती है| साढ़े सात वर्ष के शनि के संचार को  एक उदहारण के द्वारा विस्तार से समझें –
शनि का संचार अभी मकर राशि से हो रहा है|
सामान्यतया यह समझा जाता है कि इस संचार की वजह से धनु, मकर और कुम्भ राशि वाले व्यक्तियों की साढ़े साती चल रही है मतलब  विश्व में धनु, मकर और कुम्भ राशि के व्यक्ति अभी शनि की साढ़े साती के प्रभाव में हैं| लेकिन टेक्नीकली इसे देखने के लिए चंद्र की जन्मकालीन डिग्री के साथ गोचरीय शनि की डिग्री को मिलाकर देखा जाना चाहिए| जैसा की मैंने ऊपर लिखा है 45 डिग्री आगे या पीछे|  डिग्री के अनुसार देखने से सही अनुमान हो जायेगा की क्या कुछ वृश्चिक राशि वाले व्यक्ति या कुम्भ राशि वाले व्यक्ति भी साढ़े साती के प्रभाव में हैं| जब तक इस तरह से नहीं देखेंगे तब तक गलत आकलन करते रहेंगे|
साढ़े साती का प्रभाव : शुभ या अशुभ : ऐसा नहीं है कि साढ़ेसाती शुरू हो गयी तो अशुभ  प्रभाव ही होगा| शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल परिलक्षित होंगे| अशुभ कब होगा इसे रामचरितमानस के एक प्रसंग से समझा जाये|  ‘अवध साढ़सति तब बोली’ (अयोध्याकाण्ड) – मंथरा के लिए तुलसी बाबा ने यह कहा है| ‘ कैकयी करतब राहु’ (अयोध्याकाण्ड) – कैकेयी के करतब रूप राहु कहा तुलसी बाबा ने| ‘ तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी’ | लेकिन इसके साथ ही तुलसी बाबा यह भी लिखते हैं-
‘भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन| देखत गरब रहत उर  नाहिन|’
कौशल्या के लिए विधाता आज दाहिना हो गया है| उसका भाग्य खुल गया है|
कौशल्या का यह गर्व कैकयी को असहज कर रहा है| यह जो कमजोरी है कैकयी की, इससे मंथरा भली भांति परिचित है| जिसकी राहु की दशा भी चले और चित्त मलिन हो, मतलब चंद्र और बुध अशुभ प्रभाव में हों, ऐसे में मति फिर जाता है| शनि की साढ़ेसाती हो राहु की दशा हो और चित्त मलिन हो, तो ऐसी साढ़ेसाती परेशानी लेकर आती है|
अगर ऐसा है तो साढ़ेसाती का उस व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा| यह प्रतिकूलता कैसी होगी यह कुंडली में इन ग्रहों के प्रभाव में आने वाले भाव को देख कर आसानी से समझा जा सकता है|
चंद्र के साथ शनि के संबंध का आकलन : नवग्रहों में चंद्र सबसे तेज गति  चलने वाला ग्रह है और शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है| इसकी वजह से थोड़ी कशमकश की स्थिति व्याप्त हो जाने की संभावना रहती है| अवसाद की मनःस्थिति हो सकती है| चंद्र के साथ शनि के संबंध का आकलन सूक्ष्मता से किया जाना चाहिए|

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *