विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती बनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटें 

चरण सिंह राजपूत 

ले ही पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में फिलहाल रैलियों पर रोक लगी हो पर सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसार से चुनावी समर में हैं। पूरे देश की निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है। हर बार की तरह इस बार पहला चरण पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही शुरू हो रहा है। यह भी जमीनी हकीकत है कि हर चुनाव का माहौल पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बनता है। २०१७ के विधानसभा चुनाव में तो भाजपा को मुजफ्फरनगर दंगे और मोदी लहर का फायदा मिल गया था। इस बार ऐसा कोई फायदा भाजपा को मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। ऊपर से किसान आंदोलन के चलते भाजपा के खिलाफ बना माहौल। रालोद और सपा के गठबंधन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुश्किलेें बढ़ा दी हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना किसान के रूप में जाना जाना जाता है। नये कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल तक चले किसान आंदोलन से पश्चिमी उत्तर प्रदेेश के समीकरण बदले हैं। वैसे भी किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत लगातार भाजपा के खिलाफ आग उगल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही भारतीय जनता पार्टी दोबारा सत्ता वापसी का दम भर रही हो पर यह योगी आदित्यनाथ भी जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हवा उसके खिलाफ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद-सपा गठबंधन भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है। दरअसल  किसान आंदोलन और रालोद और सपा के गठबंधन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों और जाटों का रुख भाजपा के खिलाफ जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित वोटबैंक बसपा और आजाद समाज पार्टी के माने जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में 14 फरवरी को 55 सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों पर मुस्लिम और दलित आबादी काफी प्रभावकारी हैं। दूसरा चरण तो भाजपा के लिए और चुनौतीपूर्ण है।  सपा और रालोद गठबंधन के चलते मुस्लिम और जाट वोटर भाजपा को सत्ता से दूर रखने में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के मददगार साबित हो सकते हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव  की समीक्षा करें तो मुरादाबाद, सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा जैसे पश्चिमी यूपी के जिले और मध्य यूपी के बदायूं और शाहजहांपुर जिलों में भाजपा को अधिकतम सीटें 55 में से 38 मिलीं थी। इन चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के साथ ही मोदी लहर का भी फायदा मिला था। नतीजों को देखें तो सपा 2017 में इस क्षेत्र में 15 सीटें जीती थीं, सपा के साथ गठबंधन में रही कांग्रेस ने दो मिली थी और बसपा का खाता नहीं खुल सका था। इस दौरान कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे और वे सभी सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। यह भी जमीनी हकीकत है कि 2017 और 2022 में चुनावी माहौल अलग दिखाई पड़ रहा है। 2017 का विधानसभा चुनाव मुजफ्फरनगर दंगे और मोदी लहर के बल पर जीता गया था यह चुनाव योगी सरकार के कामों का मूल्यांकन को लेकर होगा। पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का असर अलग से। लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ हुई हिंसा भी भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण से विपक्ष विशेषकर सपा और रालोद को फायदा होता दिखाई दे रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश चुनाव शुरू होने से किसानों की नाराजगी का बीजेपी को नुकसान और गैर बीजेपी दलों खासकर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को सियासी फायदा होता दिखाई दे रहा है। मुलायम सिंह और अजीत सिंह के समय से ही सपा और रालोद के बिगड़ते और बनते गठबंधन के बाद अब उनके बेटों अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने गठबंधन किया है। ऐसे में इन विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद की दोस्ती की भी परख होगी। यह भी जमीनी हकीकत है कि मुजफ्फरनगर दंगे के बाद रालोद से छिटका वोट बैंक किसान आंदोलन के बाद एकजुट माना जा रहा है। दोनों पार्टियों के समर्थक मुजफ्फरनगर की खलिश भुलाकर साथ तो आए पर ये किसान चुनाव में क्या गुल खिलाएंगे यह तो समय ही बताएगा। चौधरी जयंत के लिए भी यह पहला चुनाव है जो अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के बिना लड़ रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले-दूसरे और तीसरे चरण में चुनाव संपन्न हो जाएगा। चुनाव के पहले चरण में 10 फरवरी को वेस्ट यूपी के 11 जिलों शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा आगरा और अलीगढ़ की 58 सीटों पर मतदान होगा तो  दूसरे चरण में  नौ जिले सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर की 55 सीटों और तीसरे चरण में वेस्ट यूपी के जिलों कासगंज, हाथरस, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा समेत प्रदेश के दूसरे जिले औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, ललितपुर, फर्रुखाबाद, कन्नौज की सीटों पर वोट पड़ेंगे।
2017 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर कमल खिला था। वेस्ट यूपी में मेरठ, सहारनपुर अलीगढ़, मुरादाबाद और बरेली मंडल माना जाता है। 2017 में मेरठ मंडल में 28 में से 25 सीटें बीजेपी जीती थी और सपा, बसपा, रालोद के हिस्से में तीन सीटें आई थीं। सहारनपुर मंडल में 16 सीटों में से 12 बीजेपी, कांग्रेस और सपा के हिस्से में चार सीटें आई थीं। मुरादाबाद मंडल में 27 सीटों में से 14 पर बीजेपी जीती थी, 13 पर सपा, बसपा और अन्य ने जीत दर्ज की थी। बागपत जिले में रालोद विधायक छपरौली से जीता था, लेकिन बाद में वह भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।
दरअसल, 2014 और 2019 के लोकसभा साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बीजेपी का गढ़ माना जाने लगा था।  2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव  की अगुआई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सका। इसके अलावा प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी  और भाजपा  के बीच माना जा रहा है। सपा अखिलेश यादव के चहेरे पर तो भाजपा  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीके चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है।
यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिर से 2017 जैसी जीत हासिल करने के लिए भाजपा पूरा जोर लगा रही है। हाल ही में पीएम मोदी ने शाहजहांपुर में एक महत्वाकांक्षी 594 किलोमीटर गंगा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखी थी। सीएम योगी भी कुछ हफ्ते पहले उन विधानसभा सीटों का दौरा किया जहां 2017 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेरठ रैली और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अलीगढ़ और सहारनपुर रैली पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बनाने के लिए की गई थी। हालांकि भाजपा के दिग्गज दिल्ली से लेकर लखनऊ तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों को लेकर मंथन कर रहे हैं।

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