
समाज को विषाक्त कर रही जातीय आधार पर गलत बयानबाजी
नई दिल्ली/लखनऊ/जयपुर। किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर पूरन सिंह ने नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल के डीएनए को लेकर बयान क्या दे दिया कि राजपूत और जाट आमने सामने आ गए। हालांकि इस विवाद में बड़े चेहरे बचने का प्रयास कर रहे हैं। ठाकुर पूरन सिंह और हनुमान बेनीवाल का यह विवाद राजपूत और जाट समाज को बड़े टकराव की ओर ले जा रहा है। जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि को दबाए बैठा प. उत्तर प्रदेश कभी भी जातीय संघर्ष के रूप में उबल सकता है। पूरन सिंह के आवास पर सभी जातियों की पंचायत भी हुई जिसमें हनुमान के बयान की निंदा की गई। इस पंचायत में पूरन सिंह का कहना था कि उनकी नाराजगी खाप और किसी जाट नेता से बल्कि सांसद हनुमान बेनीवाल से है। देखने की बात यह भी है कि हाल ही में जब भ्र्ष्टाचार के विरोध में पूरन सिंह का संगठन किसान मजदूर संगठन मेरठ में धरने पर बैठा।
पूरन सिंह जब अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए तो भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने धरना स्थल पर पहुंचकर पूरन सिंह की भूख हड़ताल तुड़वाई। दरअसल हनुमान बेनीवाल ने कहा था कि यदि महाराणा प्रताप और राजा सूरजमल को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर राजा मुगलों से समझौता कर लेते थे। हनुमान बेनीवाल के इस बयान का जवाब देते हुए ठाकुर पूरन सिंह ने बेनीवाल के डीएनए पर ही उंगली उठा दी। पूरन सिंह के इस बयान को लेकर जाट नाराज देखे जा रहे हैं और बड़ी पंचायत करने की बात कर रहे हैं। मुजफ्फरनगर में ज्यादा बवाल देखने को मिल रहा है। पूरन सिंह को सात दिन की चेतावनी दे दी गई है। इस मामले को लेकर जाट और राजपूत आमने सामने आ गए हैं। हालांकि काफी जिम्मेदार लोग मामले को निपटाने की बात कर रहे हैं।
पूरन सिंह का मामले को लेकर साफा वाला बयान भी आया है। हनुमान बेनीवाल का एक और बयान वायरल हो रहा है। इस वीडियो में बेनीवाल जाटों गुर्जरों के बाद राजपूतों को क्षत्रिय मान रहे हैं। दरअसल हनुमान बेनीवाल लोकसभा चुनाव को देखते हुए जातीय समीकरण बैठाने में लगे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय संघर्ष देखा जा रहा है। कभी सम्राट मिहिर भोज को गुर्जरों और राजपूतों में तो कभी पुरुषोत्तम रुपाला के बयान को लेकर बीजेपी के खिलाफ राजपूतों की लामबंदी और अब हनुमान बेनीवाल के बयान को लेकर जाटों और राजपूतों में टकराव। क्या इन संघर्षों में कहीं भी मुसलमान है क्या ? नहीं न। यह नफरत को लेकर बनाया गया जातीय संघर्ष का माहौल ही है कि अब हिन्दू आपसे में ही लड़ रहे हैं।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय संघर्ष एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जो ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित है। यह क्षेत्र, जिसमें सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, और बुलंदशहर जैसे जिले शामिल हैं, विविध जातीय और धार्मिक समुदायों का घर है, जैसे जाट, गुर्जर, राजपूत, दलित, और मुस्लिम। इन समुदायों के बीच तनाव और संघर्ष समय-समय पर सामने आए हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान, भूमि सुधारों और जमींदारी प्रथा ने कुछ जातियों (जैसे जाट और राजपूत) को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत किया, जबकि अन्य (जैसे दलित और कुछ पिछड़ी जातियों) हाशिए पर रहीं। इससे असमानताओं की नींव पड़ी।
स्वतंत्रता के बाद: हरित क्रांति ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और गुर्जर जैसे कृषक समुदायों को समृद्ध किया, लेकिन दलित और अन्य भूमिहीन समुदायों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी। शायद यही वजह रही कि इस क्षेत्र में किसान मजदूर संगठनों को काफी बढ़ावा मिला।
जातीय संघर्ष के प्रमुख कारण
भूमि और आर्थिक संसाधन: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूमि एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जाट और गुर्जर जैसे प्रभावशाली समुदायों और दलित या अन्य कमजोर समुदायों के बीच जमीन के स्वामित्व और उपयोग को लेकर अक्सर विवाद होते हैं।
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: जाति-आधारित राजनीति ने तनाव को बढ़ावा दिया है। राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए जातीय समीकरणों का लाभ उठाते हैं, जिससे समुदायों के बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ती है।
सामाजिक असमानता: दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों पर उच्च जातियों द्वारा सामाजिक भेदभाव, जैसे मंदिरों में प्रवेश, पानी के स्रोतों तक पहुंच, और अंतर-जातीय विवाहों पर विवाद, संघर्ष का कारण बनते हैं।
धार्मिक ध्रुवीकरण: कुछ मामलों में, जातीय तनाव धार्मिक तनाव (विशेष रूप से हिंदू-मुस्लिम) के साथ जुड़ जाते हैं, जैसे कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे, जहां जाट और मुस्लिम समुदायों के बीच हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए।
उल्लेखनीय घटनाएं
मुजफ्फरनगर दंगे (2013): यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय और धार्मिक हिंसा का सबसे बड़ा उदाहरण है। एक छोटे विवाद ने जाट और मुस्लिम समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा को जन्म दिया, जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए और 50,000 से अधिक विस्थापित हुए। इस घटना ने क्षेत्र में गहरे सामुदायिक विभाजन को उजागर किया।
दलित-उच्च जाति तनाव: सहारनपुर में 2017 में दलितों और ठाकुरों (राजपूत) के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जब दलित समुदाय ने महाराणा प्रताप की शोभायात्रा का विरोध किया। इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हुए।
हाल की घटनाएं: 2025 में, अलीगढ़ में मांस ले जाने के आरोप में चार मुस्लिम व्यक्तियों पर कथित तौर पर बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों के सदस्यों द्वारा हमला किया गया, जिससे जातीय और धार्मिक तनाव फिर से उभर आया।
वर्तमान परिदृश्य
सामाजिक तनाव: हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया और राजनीतिक बयानबाजी ने जातीय और धार्मिक विभाजन को और गहरा किया है। कुछ दावों के अनुसार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू समुदाय को जातियों में बांटने की कथित साजिशें सामने आई हैं, जिसे कुछ लोग राजनीतिक और सामुदायिक हितों से जोड़ते हैं।
कानून व्यवस्था: इन घटनाओं ने सरकार और पुलिस प्रशासन पर दबाव बढ़ाया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने का दावा किया है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि कानून का कार्यान्वयन पक्षपातपूर्ण रहा है।
आर्थिक प्रभाव: जातीय संघर्षों ने क्षेत्र में सामाजिक सद्भाव और आर्थिक विकास को प्रभावित किया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां कृषि और छोटे उद्योग प्रमुख हैं।
समाधान के उपाय
सामुदायिक संवाद: विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देना आवश्यक है।
आर्थिक समानता: भूमि सुधार, शिक्षा, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाकर आर्थिक असमानता को कम करना।
कानूनी कार्रवाई: निष्पक्ष और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना, ताकि हिंसा और भेदभाव के दोषियों को दंडित किया जा सके।
जागरूकता अभियान: जाति और धर्म आधारित भेदभाव के खिलाफ शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम चलाना।