-डॉ सत्यवान सौरभ
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ’ शाम ।
कीच-गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम ।।
लालच-नफरत का रहा, असर सदा प्रतिकूल ।
प्रेम-समर्पण-त्याग है, रिश्तों के अनुकूल ।।
पद-पैसों की दौड़ में, कर बैठे हम भूल ।
घर-गमलों में फूल है, मगर दिलों में शूल ।।
होता नेक गुलाब से, ‘सौरभ’ पेड़ बबूल ।
सीरत इसकी खार की, जीवन के अनुकूल ।।
ये कैसी नादानियाँ, ये कैसी है भूल ।
आज काटकर मूल को, चाहे कल हम फूल ।।
बिखरे-बिखरे सुर लगें, जमें न कोई ताल ।
बैठे कौवे हों जहाँ, सभी एक ही डाल ।।
सूरत फोटो शॉप से, बदल किया प्रचार।
पर सीरत की एप अब, मिले कहाँ से यार।।
तुम से हर को चाहिए, कुछ ना कुछ तो भोग।
राई भर भी है नहीं, बेमतलब के लोग।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )