रवीश कुमार
आज के दैनिक जागरण में ख़बर छपी है कि प्रयागराज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अड़ानी की कंपनी चला रही है। इस कंपनी के साथ सरकार ने जो करार किया है, उसमें यह लिखा है कि अगर पानी क्षमता से अधिक आएगा तो उसे साफ़ करने की ज़िम्मेदारी कंपनी की नहीं होगी। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे करार से तो गंगा साफ़ होने से रही।
ऐसे करार से तो गंगा साफ़ होने से रही- हाई कोर्ट। यह जागरण की हेडलाइन है। मगर जागरण ने इसमें अडानी का नाम नहीं जोड़ा है जबकि उसकी ख़बर के अनुसार अडानी की कंपनी से जो करार हुआ है,अदालत ने टिप्पणी की है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में गंगा की सफ़ाई को लेकर बहस चल रही है। जागरण और उजाला में छपी दोनों ख़बरों को पढ़ कर लगा कि यूपी सरकार इतना तक नहीं बता सकी कि उसे नमामि गंगे प्रोजेक्ट के लिए कितना पैसा मिला है और किस तरह से खर्च हो रहा है?
इलाहाबाद हाई कोर्ट में गंगा की सफ़ाई को लेकर बहस चल रही है। जागरण और उजाला में छपी दोनों ख़बरों को पढ़ कर लगा कि यूपी सरकार इतना तक नहीं बता सकी कि उसे नमामि गंगे प्रोजेक्ट के लिए कितना पैसा मिला है और किस तरह से खर्च हो रहा है?
यूपी के जलशक्ति राज्य मंत्री दिनेश खटीक ने आरोप लगाया था कि नमामि गंगे में भयंकर भ्रष्टाचार हो रहा है।
बताया जाता है कि भारतीय गंगा को लेकर काफ़ी भावुक हैं इसलिए जब माँ गंगा ने प्रधानमंत्री मोदी को बुलाया तो लोग और भावुक हुए। आज नमामि गंगे प्रोजेक्ट के सात साल बाद भी बुनियादी सवालों के जवाब नहीं है। लोग अब भावुक नहीं होते।
चूँकि अडानी की कंपनी पुलिस भिजवा देती है, केस कर देती है इसलिए बताना ज़रूरी है कि जागरण ने छापा है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह बात आई है तो जवाबदेही जागरण की है। मैंने यह पंक्ति खुद नहीं लिखी, जैसे मोदी जी को माँ गंगा ने बुलाया था वैसे ही माँ गंगा ने मुझसे यह लाइन लिखवा दी है। गंगा तेरा पानी अमृत। हम ट्रक पर स्लोगन लिख देते हैं मगर गंगा को ही ईमानदारी से नहीं बचा सके।
(साभार : फेस बुक से)