चरण सिंह
पहले चरण में कम मतदान किस ओर इशारा कर रहा है ? यह तो साफ है कि मतदाताओं में इन चुनाव के प्रति खास कोई उत्साह नहीं है। मतलब मतदाताओं में निराशा सत्ता से है या विपक्ष से है ? या फिर दोनों से है। यह प्रश्न न केवल सत्ता पक्ष में बैठे लोगों से है बल्कि विपक्ष के नेताओं से भी है। मतलब साफ है कि जो अपनी महिमा मंडित करते प्रधानमंत्री घूम रहे हैं जनता वह भी नहीं सुनना चाहती है और विपक्ष के नेता जो राग अलाप रहे है वह भी जनता को बर्दाश्त नहीं। जनता अपने स्तर से सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को सबक सिखाने के लिए तैयार दिखाई दे रही है।
उत्तर प्रदेश में जिस तरह से पहले चरण में 8 सीटों पर चुनाव हुआ है। इन सीटों पर कोई खास मतदान नहीं हुआ है। पहले चरण के मतदान से ही लग रहा है कि देश की जनता न तो सत्ता पक्ष को इतना बहुमत देना चाहती है कि वह पगला जाए और न ही विपक्ष का भाव बढ़ाना चाहती है। पहले चरण के चुनाव से लग रहा है कि जनता एनडीए को सत्ता तो सौंपना चाहती है पर बहुमत इतना नहीं देना चाहती है कि वह आदमी को आदमी ही न समझे।
चिंता की बात यह है कि राजनीति की जननी बिहार में सबसे कम मतदान हुआ है। मतलब यदि बिहार के लोग इन चुनाव के प्रति उदासीन हैं तो समझ लीजिए लोग सरकार और विपक्ष दोनों से नाराज हैं। इन नेताओं के लिए वह घर से निकलना नहीं चाहते हैं। हां ऐसा संदेश जरूर देना चाहते हैं कि सत्ता पक्ष और दोनों को सबक मिल सके। कल यानी १९ अप्रैल को २१ राज्यों की १०२ लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ है। देखने की बात यह है कि उत्तर भारत मध्य प्रदेश में ६४.७७, छत्तीसगढ़ ६३.४१, उत्तर प्रदेश ६०.२५ उत्तराखंड ५४.०६ तो बिहार में ४८.५० प्रतिशत मतदान हुआ है। मतलब उत्तर भारत के मतदाता इस बार उदासीन नजर आये, जबकि देखा यह जाता रहा है कि उत्तर भारत के मतदाताओं में ज्यादा जागरूकता देखी जाती है। इसके उल्टे त्रिपुरा में ८०.१७, बंगाल में ७७ प्रतिशत मतदान हुआ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहे राजपूतों के आंदोलन का भी असर चुनाव में देखने को मिल रहा है। भले ही बीजेपी ने राजपूतों की पंचायतों को गंभीरता से न लिया हे पर पहले चरण के चुनाव समाप्त होते ही बीजेपी की समझ में राजपूतों के वोट का महत्व समझने में आने लगा है। यह वजह रही कि ननौता, खेड़ा सरधना, नोएडा के सदरपुर गांव, गाजियाबाद के हापुड़ में हुई पंचायतों में कोई हस्तक्षेप पुलिस प्रशासन ने नहीं किया। पहले चरण के मतदान के बाद अब जब शनिवार को नोएडा के घोड़ी बछेड़ा गांव में राजपूतों ने पंचायत रखी तो जिला प्रशासन ने राजपूतों की यह पंचायत नहीं होने दी। मलतब बीजेपी के पास भी फीडबैक है कि राजपूतों की नाराजगी का असर पहले चरण के चुनाव पर पड़ा है। यही वजह है कि राजूपतों की पंचायतें नहीं होने दी जा रहंी हैं। हालांकि कल बुलंदशहर में होने वाली पंचायत हर हाल में करने की बात राजपूत समाज ने की है।