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वस्त्र उतारे पीढ़ियां

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अभिनेताओं में बची, किंचित नहीं तमीज।
इनको नंगा देखकर, सौरभ आती खीज।।

वस्त्र उतारे पीढ़ियां, पड़ी आज मदहोश।
अस्थियों में जम गया, क्यों सौरभ आक्रोश।।

करे अहिल्या द्रौपदी, नंगेपन पर नाज।
खड़े दुशासन शिखण्डी, भरे शर्म से आज।।

लाज शर्म को बेचते, देते अजब दलील।
खुलेपन के नाम पर, करे काम अश्लील।।

साधन बन अश्लीलता, बिके बीच बाजार।
बड़ी गज़ब की बात है, देख रहा संसार।।

माला फेरे हाथ में, करते बाला ध्यान।
थामे लकुटी भोग की, ये कैसे सोपान।।

सरे आम बिछने लगी, नंगेपन की सेज।
जो थी कल अश्लीलता, आज वही है क्रेज।।

प्रसिद्धि की चाह में, गए शील को लील।
फिल्में नंगी हो गई, दर्शक अश्लील।।

टीवी फिल्मों में बजे, पश्चिम के हर साज।
खुद को नंगे देखकर, करते है अब नाज।।

 

डॉ. सत्यवान सौरभ