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यूक्रेन समस्या: कौन दोषी ? रूस या अमेरिका या फिर पिछलग्गू देश

यूक्रेन समस्या
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निर्मल कुमार शर्मा 
प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के चलते करोड़ों निरपराध लोग मारे गए, और करोड़ों बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को अपना बाकी का जीवन बेहद गरीबी, भुखमरी एवं अभाव में जीने को अभिशप्त होना पड़ा था। इन दो महायुद्धों की विभीषिका को देखते हुए दुनिया के विभिन्न देश एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के गठन के लिए आगे आये, जिसे हम सभी संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम से जानते हैं। इसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी। इसका उद्देश्य, विश्वयुद्ध से पूर्व वाली विकट स्थिति उत्पन्न होने से पूर्व ही वैश्विक तनाव को कम करने, ताकि किसी भी बड़े युद्ध में जाने की स्थिति से यह दुनिया बची रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इस वैश्विक संगठन ने वैश्विक तनाव को कम करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की भरसक कोशिश भी की, लेकिन वर्तमान समय में यह कटु सच्चाई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी यह संस्था अब अमेरिका जैसे कुछ शातिर व सैन्य तौर पर ताकतवर देशों की एक जेबी संस्था बनकर रह गई है।
आज रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, इस तनाव से यूरोप के देश बेहद चिंतित और घबराए हुए हैं, इन देशों की चिन्ता यह है कि अगर यह युद्ध बड़ा रूप ले लेता है तो उस स्थिति में उसकी आग पूरे यूरोप में दावानल की तरह फैल सकती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार दुनिया की हालत इतनी खराब है और जोखिम भरी हो रही है। इन देशों की खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन की सीमा पर एक लाख रूसी सेना टैंकों और तोपों के साथ डटी हुई है। अमेरिकी सूत्रों के अनुसार जनवरी 2022 के अंत तक इस रूसी सेना में सैनिकों की संख्या 1 लाख पचहत्तर हजार तक हो जाने की उम्मीद की जा रही थी। अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूस को पहले ही गंभीर चेतावनी दे चुके हैं कि ‘यूक्रेन पर रूस के किसी भी हमले की स्थिति में रूस को गंभीर आर्थिक परिणाम झेलना पड़ सकता है’, लेकिन रूस इन धमकियों को सीधे-सीधे नजरंदाज कर रहा है।
यूक्रेन अपने पड़ोसी देश रूस के हमले की आशंकाओं और अनिश्चितताओं के बीच रूस के अगले कदम की सावधानी पूर्वक प्रतीक्षा कर रहा है। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि  ‘उन्हें लग रहा है कि उनके रूसी समकक्ष ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में दखल देंगे, लेकिन एक मुकम्मल लड़ाई से बचना चाहेंगे, किंतु रूसी सेना की छोटी दखल की आशंका है।’ अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान की दुनिया भर में कटु आलोचना हो रही है, विशेषकर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने जो बाइडन के उक्त बयान की इन शब्दों में जोरदार भर्त्सना की है कि ‘कोई छोटी सी दखल नहीं है, इसलिए कि कोई हताहत नहीं हुआ है या परिजनों के खोने की कोई शिकायत नहीं मिली है। ‘
अमेरिका, यूक्रेन को बार-बार यह आश्वस्त कर देना चाह रहा है कि यूक्रेन के साथ वह चट्टान की तरह खड़ा है। उसने रूस को चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया है कि ‘रूस के पास एक तरफ कूटनीति और बात-चीत का रास्ता है तो दूसरी तरफ संघर्ष और उसके दुष्परिणाम का विकल्प ही बचा है ! ‘
यूक्रेन के इस बेहद तनावपूर्ण माहौल में आशंका है कि कहीं रूस और अमेरिका आमने-सामने न आ जाएं। लेकिन उम्मीद की किरण यह है कि इन दोनों देशों के राष्ट्रपति इस तनाव को कम करने के लिए विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी आपसी बातचीत को जारी रखने के लिए सहमत हो गए हैं। रूसी प्रवक्ता की तरफ से बयान जारी करके बताया गया है कि रूसी राष्ट्रपति अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात करना चाहते हैं। वैसे सच्चाई यह है कि रूस और अमेरिका के रिश्ते शीतयुद्ध के बाद सबसे खराब दौर में हैं। यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेना की तैनाती ने इस तनाव को और भी चरम पर पहुंचा दिया है। अभी पिछले दिनों अमेरिकी और रूसी राष्ट्रपतियों के बीच हुई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग में हुई बातचीत में समाचार एजेंसी रायटर्स के अनुसार जो बाइडन ने ब्लादिमीर पुतिन को यह कड़ा संदेश देते हुए कहा कि ‘अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो अमेरिका उस पर सख्त आर्थिक व अन्य प्रतिबंध लगाएगा।’
यूक्रेन के इस तनाव को यूरोप के देश एक और संकट के रूप में देखते हैं कि ‘अगर रूस से गैस नहीं आई तो पूरा यूरोप ठंड से जम जाएगा। ‘ इसलिए यूरोप के देश रूस पर गैसवॉर का आरोप लगा रहे हैं,जबकि रूस इसे सिरे से खारिज कर रहा है। यूरोप के लगभग सभी देश अपनी आबादी और उद्योग-धंधों दोनों को ही बचाने के लिए युद्धस्तर पर जी-जान से कोशिश करते दिख रहे हैं, लेकिन स्वार्थी और कुटिल अमेरिकी नीति-नियंताओं को इस बात की खुशी है कि अगर यूक्रेन समस्या की वजह से यूरोप में रूसी गैस की आपूर्ति बाधित होती है, तो उस स्थिति में उन्हें ऊंची और मनमानी कीमत पर अपना कोयला और गैस बेचने का सुनहरा मौका मिल जाएगा। वर्तमान समय में वैश्विक उर्जा संकट अपने चरम पर है। गैस और पेट्रोलियम की कीमतों में आग लगी हुई है, यूरोप में उर्जा संकट इतना विकट है कि वहां आम जनता से लेकर उद्योगों तक की बिजली और गैस की कीमत बेहिसाब बढ़ गई है।
आज रूस यह चाहता है कि अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों का संघ, नॉर्थ ऍटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन संक्षेप में नाटो (NATO) के विस्तार की एक सीमा हो। वह रूस की सीमा तक नाटो के विस्तार की अमेरिकी कुटिल नीति के बिल्कुल खिलाफ है, जबकि सोवियत संघ के एक राज्य रहे यूक्रेन को अमेरिकी कर्णधार नाटो संघ में शामिल करने के लिए उतावले हो रहे हैं। और यही रूस के लिए सबसे कष्टदायक स्थिति है।
रूस इसके लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय लब्ध-प्रतिष्ठित संस्था ‘इंटरनेशनल फॉरेन साइट ऐंड एनालिसिस फर्म जियोपॉलिटिकल फ्यूचर्स’ के संस्थापक जॉर्ज फ्राइडमैन स्पष्ट रूप से बताते हैं  “रूस चाहता है कि रूस और यूरोप की सीमाएं ठीक वैसी ही हों, जैसी शीतयुद्ध के समय थीं।’ ठीक इसी बात को वर्जीनिया के टेक यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का कथन है कि रूस की यह नीति है कि वह अपने देश की ठीक सीमा पर बन रहे ख़तरनाक सैन्य गठबंधन के प्लेटफार्म को, जो उसके ही एक भूतपूर्व यूक्रेन राज्य में बन रहा है, वह यूक्रेन को नाटो का एक सदस्य देश बनने से हर हाल में रोकना चाहता है, ताकि यूक्रेन को नाटो के सदस्य देशों से मिसाइल व अन्य घातक हथियार न मिल सके।
यूक्रेन रूस के पश्चिमी सीमा पर स्थित है, जब रूस पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हमला हुआ था, तब इसी यूक्रेन के विस्तृत क्षेत्र ने उसकी रक्षा की थी। वहां से रूस की राजधानी मास्को की दूरी 1600 किलोमीटर है, लेकिन अगर यूक्रेन राज्य नाटो की जकड़ में चला जाता है, तब वहां से मास्को की दूरी घटकर महज 640 किलोमीटर रह जाएगी ! इसीलिए रूस यूक्रेन रूपी अपने बफर और सिक्यूरिटी जोन को हर हाल में अपने साथ रखना चाहता है। यह भी ऐतिहासिक सच्चाई है कि यही यूक्रेनी बफर जोन रूस को नेपोलियन बोनापार्ट और एडोल्फ हिटलर के अति विध्वंसक आक्रमणों से बचाने में सहायक सिद्ध हुआ था। रूसी जनता में यह धारण सर्वत्र व्याप्त है कि उनका देश दुश्मनों के एक महागठबंधन से घिरा हुआ है, जो उनके अस्तित्व के लिए अत्यंत चिंता की बात है। यूक्रेन संकट के संदर्भ में रूस की जवाबी कार्यवाही के रूप में क्यूबा और वेनेज़ुएला में 1962 की तरह अपने सैन्य बलों और मिसाइलों को फिर से लगाकर, अपने पड़ोस में नाटो द्वारा उत्पात मचाने का जोरदार तरीके से जबाब दे सकता है, जिसे अमेरिका कतई नहीं होने देना चाहेगा, लेकिन यह कदम रूस के लिए बिल्कुल न्यायसंगत और समयोचित भी है। रूस के अनुसार बेलारूस, रूस और यूक्रेन तीनों देशों के पूर्वज एक समान थे। रूस यूक्रेन को एक अन्य देश के रूप में न मानता है, न देखता है, अपितु उसके दृष्टिकोण में यूक्रेन एक बहुस्लाविक राष्ट्र है, जिसके चलते वह उसे अपना दिल मानता है। इसलिए रूस जैसा देश हर हाल में यूक्रेन को अमेरिकी पाले में जाने से रोकने के लिए कृतसंकल्प और प्रतिबद्ध है। लेकिन जब यूक्रेन स्वयं को रूस के एक विरोधी देश के रूप में प्रदर्शित और चिन्हित करता है, तब रूसी जनता में उसके इस व्यवहार को लेकर भयंकर गुस्सा और निराशा होती है, जैसे एक परिवार में एक भाई के विश्वासघात से दुःस्थिति पैदा हो जातीं हैं। रूस के अनुसार अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने उसके एक पड़ोसी राज्य यूक्रेन को एक रूस विरोधी मंच बनाकर रख दिया है, इसलिए रूस को इस फोड़े रूपी समस्या का स्थाई हल निकालना अत्यंत आवश्यक हो गया है। रूस के अभिन्न मित्र और समर्थक चीन के अनुसार ‘अमेरिका और उसके समर्थकों की तरफ से संघर्ष शुरू करने की अधिक संभावना है, और उस परिस्थिति में जबाब देना रुस की मजबूरी है। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस एक हमलावर देश नहीं, अपितु अपने स्वयं का रक्षक या डिफेंडर देश बन गया है। परन्तु अमेरिका और उसके पिछलग्गू यूरोप और अन्य देश उसकी एक हमलावर देश के रूप में छवि बनाकर पेश कर रहे हैं, यह बिल्कुल गलत है। इन पश्चिमी देशों को रूस पर इतना दबाव नहीं डालना चाहिए कि वह रक्षक देश हमला करने पर मजबूर हो जाय।’ अभी चार दिन पूर्व 5 फरवरी 2022 को रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक संयुक्त बयान आया, जिसमें इन दोनों देशों ने अमेरिका और उसके दुमछल्ले देशों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा गया कि ‘कुछ ताकतें, जो कि दुनिया के एक बहुत ही छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करतीं हैं, वे अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिए एकतरफा तरीकों से ताकत की, राजनीति की, दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी, उनके वैधानिक अधिकारों और हितों को नुकसान पहुंचाने, भड़काने, असहति और टकराव का समर्थन कर रहीं हैं। ‘
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुसार यह  मानना सर्वथा अनुचित होगा कि यूक्रेन समस्या के हल के लिए वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन द्वारा उठाए गये कदम गलत या पागलपन भरे हैं। वास्तविकता यह है कि पुतिन की भावनाएं वास्तविक हैं, क्योंकि यूक्रेन रूस का एक भू-राजनैतिक और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। इसलिए वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन की जगह रूस का कोई भी अन्य नेता होता तो वह भी यही कदम उठाता। यूक्रेन पर रूसी जज्बात वास्तविक हैं, ये कतई नहीं कह सकते कि यह केवल वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के व्यक्तित्व का एक हिस्सा मात्र है। ‘
इसलिए उक्त वर्णित तथ्यों से यह शीशे की तरह साफ है कि अमेरिका सहित उसके सभी दुमछल्ले पूंजीवादी देश रूसी राष्ट्रराज्य के एक अभिन्न पड़ोसी और राज्य यूक्रेन के कुछ अलगाववादी और देशहंता नेताओं को भड़काकर रूसी राष्ट्रराज्य की अस्मिता और उसके स्वाभिमान पर कुटिल चोट कर रहे हैं। इसलिए इस कुकृत्य को नेस्तनाबूद करने के लिए रूस द्वारा उठाया गया हर कदम बिल्कुल न्यायसंगत और सर्वथा उचित कदम है, इस बिषम परिस्थिति में  अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को रूस का पुरजोर तरीके से समर्थन करना ही चाहिए ।
(निर्मल कुमार शर्मा लेखक और टिप्पणीकार हैं।)