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Udham Singh’s Mission : जब जिंदगी का मकसद ही हो गया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेना

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Udham Singh’s Mission : लंदन में जनरल डायर को मौत के घाट उतारकर आजादी की दीवाने ने पूरा किया अपनी मिट्टी से किया वादा

चरण सिंह राजपूत 

Udham Singh’s Mission : भले ही देश में देशभक्त होने का दावा कितने लोग करते हों पर देशभक्ति का जज्बा अक्सर गुदड़ी के लाल में ही देखने को मिलता है। यही वजह है कि देश की सीमा पर लड़ने वाले अधिकतर सैनिक किसान और मजदूर के ही बेटे हैं। आजादी की लड़ाई में भी किसान और मजदूरों के बेटों ने आगे बढ़कर कुर्बानी दी थी। 21 साल के संघर्ष के बाद लंदन में जाकर जनरल डायर को मौत के घाट उतार कर Jallianwala Bagh हत्याकांड का बदला लेने वाले उधम सिंह भी एक किसान के ही बेटे थे। वह वीर देशभक्त जिन्हें पूरा देश सरदार उधम सिंह के नाम से जानता है, दरअसल उनका असली नाम शेर सिंह था और कलेजा भी शेर जैसा।

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26 दिसम्बर 1899 को पंजाब में जन्मे Farmer’s Son Udham Singh के पिता सरदार तहल सिंह जम्मू रेलवे फाटक पर चौकीदार थे। उधम सिंह को अपनी जिंदगी में कितना संघर्ष करना पड़ा। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह की परवरिश अमृतसर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में हुई। वह अमृतसर का अनाथालय ही था जिसने शेर सिंह को उधम सिंह की उपाधि दी थी। उधम सिंह ने उन्होंने 1918 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1919 में अनाथालय छोड़ दिया। सरदार भगत सिंह की तरह ही उधम सिंह के जीवन पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बड़ा असर पड़ा था।

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Jallianwala Bagh हत्याकांड का बदला लेने के लिए उधम सिंह ने 1924 में गदर पार्टी की सदस्यता ले ली। यह उनका अपने देश की मिट्टी से किया वादा ही था कि वह अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप तक घूम कर आये। Udham Singh ने औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए विदेशों में भारतीयों को संगठित करने का काम किया। Farmer’s Son उधम सिंह ने भगत सिंह के बहुत करीबी थे यही वजह थी कि 1927 में भगत सिंह के आदेश पर वो 25 सहयोगियों के साथ रिवाल्वर और गोला बारूद लेकर भारत लौट आये। भारत में उन्हें बिना लाइसेंस के हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। रिवाल्वर, गोला बारूद और गदर-ए-गंज, वॉयस ऑफ रिवॉल्ट नामक गदर पार्टी के निषिद पेपर की प्रतियां जब्त कर ली गई। इस मामले में उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पांच साल जेल की सजा हुई। यह उधम सिंह की प्रतिबद्धता ही था कि वह पांच साल की सजा के बाद भी विचलित न हुए।

Udham Singh कई साल तक वेशभूषा बदल कर विदेश में रहे। इस दौरान एक तरफ दूसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा था और दूसरी ओर साउथैम्पटन में उधम सिंह आजाद के नाम से रह रहे थे। उध सिंह यहां पर सेना के लिए कैंप बनाने वाली कंपनी में काम करते थे। यहां पर उधम सिंह ने Also acted in Films। उधम सिंह के अभिनय की गवाह एलिफेंट बॉय और द फोर फेदर्स नाम की दो ब्रिटिश फिल्में थी। फिल्मों में उधम सिंह को भले ही पहचाना न गया हो पर अंग्रेजों की ज्यादतियों का विरोध करने पर वह पुलिस की नजरों में आ गये। हालांकि वह किसी के हाथ नहीं आये। उधम सिंह के पीछे ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां भी लगी हुई थी पर वह इन एजेंसियों की पहुंच से बाहर रहे।

वह 1940 की 13 मार्च तारीख थी जिस दिन उधम सिंह ने अपने Promised to the soil of the Country पूरा किया। दरअसल 13 मार्च की सुबह को ही उधम सिंह अपनी योजना को अंजाम देने की पूरी तैयारी कर ली थी। दरअसल माइकल ओ डायर को एक सभा में हिस्सा लेन के लिए तीन बजे लंदन के कैक्सटन हॉल में जाना था। उधम सिंह अपनी योजना के अनुसार समय से पहले ही वहां पहुंच गये।  उधम सिंह अपने साथ एक किताब ले गये थे, जिसके पन्नों को काटकर उन्होंने बंदूक रखने की जगह बनाई थी।

उधम सिंह ने बड़े धैर्य के साथ कैक्सटन हॉल में आयोजित सभा में सभी वक्ताओं के भाषण बड़े धैर्य के साथ सुने और आखिर में मौके पाते ही किताब से बंदूक निकालकर उन्होंने डायर के सीने में धड़ाधड़ गोलियां दाग दीं। डायर की दो गोलियां लगीं और मौके पर वह परलोक सिधार गया। उधम सिंह ने अपने Promised to the soil of the Country पूरा कर लिया था। उधम सिंह का २१ साल का लंबा इंतजार को खत्म हो गया था। उन्हें तुरंत पकड़ कर हिरासत में ले लिया गया।गिरफ्तार होने पर तब शहीद उधम सिंह ने कहा था कि अब इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं है, उन्हें मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

बुढ़ापा आने तक इंतजार करने से क्या फायदा ? उन्होंने कहा था बुढ़ापे में मरना अच्छा नहीं है। वह युवा होते ही मरना चाहते थे और यही कर रहे हैं। उन्होंने कहा था मैं अपने dying for the country. सरदार उधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया और उस आजादी के दीवाने को मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940  को उधम सिंह को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।  यह भी जमीनी हकीकत है कि 1974  में विधायक साधु सिंह थिंक के अनुरोध पर उधम सिंह के अवशेषों को खोदा गया और भारत वापस लाया गया। इसके बाद पंजाब में स्थित उनके जन्म स्थान सुनाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को सतलज नदी में प्रवाह कर दिया गया।

शहीद उधम सिंह की कुछ बची हुई राख को Jallianwala Bagh में एक सीलबंद कलश में रखा गया है। देश को अपने इस सपूत पर हमेशा नाज रहेगा।  दरअसल 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन के पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में एक जनसभा आयोजित की गई थी। Jallianwala Bagh कांड की सैकड़ों मौतों का जिम्मेदार माइकल ओ डायर जलियांवाला कांड के वक्त पंजाब का गवर्नर था। इस दौरान वह जनसभा में अपने सैनिकों के साथ पहुंच गया। जनसभा देख जनरल डायर ने अपने सैनिकों को जनसभा पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया। इस घटना में सैकड़ों की संख्या में निहत्थे लोगों की मौत हो गई। निर्दोष भारतीयों को जब अंग्रेज गोलियों से भून रहे थे तो उधम सिंह ने अपनी मिट्टी से वादा किया था कि वो इस नरसंहार का बदला लेकर ही रहेगा और जनरल डायर को मारकर उन्होंने इसका बदला लिया। Udham Singh’s Mission पूरा हो चूका था।